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4.1.10

नया साल मुबारक?

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर की शपथ युक्त-
मैं धारक को वचन देता हूं कि

केंद्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूत

सड़े गले काग़ज़ी नोट
नहीं छोडेंगे पीछा तुम्हारा
ये वादा रहा हमारा।

सड़ांध, विद्रूपता नियति है जिनकी

खो चुकी अस्मिता जिनकी

नए साल में उन्हें ऐसे कैसे छोड़ा जा सकता है?

आर.टी.ओ. पी. डब्ल्यू. डी. के

अधिकारियों द्वारा दुत्कारी गई

गलाकाट प्रतियोगिता के धनी लुटेरे ट्रांसपोर्टरों द्वारा

नल बिजली टेलीफोन उद्योग जनित

बेरहम खुदाई की मार से पीड़ित

टूटी-फूटी, जर्जर, आहत सड़कों

आंसू बहाते नलों

झपक-झपक करती दफ्तरों कारखानों

मकानों-दुकानों की लाइट

छिपा है इसमें चंद लोगों का भविष्य ब्राइट

आप तमाम अंधेरों के बीच

नए साल का स्वागत करें।

भय-भूख शोषण-अत्याचार

लूट-हिंसा विलासिता बलात्कार

बहरा गूंगा शहर अंधी डगर

अंधेरी राहों पर सीवर लाइन का बेखौफ विस्तार

रस लेकर छापते अखबार

मजे में मक्कार, पिटते पत्रकार

बेकारी, बदहाली के व्योम में-

वोट का अंतरिक्ष शटल तलाशती पार्टियां

मत करो चीत्कार हाहाकार

सत्य से आंख चुराएं और

नए साल का स्वागत करें।

गरियाना, कोसना, बाल नोचना

कवियों का काम हो गया

जमाने को, शासन को, किस्मत को

दोष देना सुधियों का काम हो गया

बदहाल पाठशालाएं- विकृत निर्माता

बदरंग सृष्टि- निज़ाम सुरा से सराबोर

जवानी मद में चूर

अंधेरी सीलन भरी कोठरी में

सर्वेंट क्वाटरों में, कुओं में

सुनाई देती आहट जिजीविषा की

धनमत्त-उन्मत्त जवानी द्वारा

धकियाये गये अतीत की

सहिष्णुता-अनुशासन

पकड़ से कोसों दूर चलो सारा इंतज़ाम हो गया

नए साल का स्वागत करें।

हाइवे पर मारुति

मारुति में डनलप की सीट

सीट पर बगल में

सोने की ईंट, सुंदरी वारांगना

जिसकी गोद में कुतिया का पिल्ला

पिल्ले की गर्दन पर जर्मन पट्टा

बालों में फ्रांसीसी इत्र

मुंह में अमेरिकन बिस्किट

शिमला, उंटी, दार्जिलिंग-

महाबलेश्वर के फर्स्ट क्लास टिकिट

कसारा घाट चढ़ती कारें

युगल बाहों में बाहें डालें

सौ मील प्रति घंटा की रफ्तार से

ज़माने की सुध-बुध खोयें, और

नए साल का स्वागत करें।

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-श्रीराम तिवारी,

संयोजक, जन काव्य भारती, इंदौर

राष्ट्रीय संगठन सचिव, बीएसएनएल इम्पलॉइज़ यूनियन

(लेखक यूनियनिस्ट है और लंबे समय से मज़दूरों के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। खालिस ग्रामीण पृष्ठभूमि और सतत संघर्षों की झलक उनके जनवादी काव्य और लेखों में भी मिलती है। हिन्दी पर कई संगोष्ठियों में अभिभाषणों के साथ-साथ देश के कई प्रतिष्ठित अख़बारों के लिए सतत लिखते रहे हैं। जनकाव्य भारती नामक संस्था के संयोजक के तौर पर नई प्रतिभाओं और युवाओं को जनवादी काव्य के लिए प्रेरित कर रहे हैं। “अनामिका” और “शतकोटिमंजरी” नाम से दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं।)

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