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26.4.10

लोग क्या क्या सोचते हैं प्यार के बारे मे?

पिछले कुछ समय से मैं ढूंढ रहा था की ये प्यार क्या चीज होती हैं और इसको कैसे शब्दो मे बांधा जा सकता हैं।
क्योंकि कुछ महान विध्यवानों का मानना था और शायद अभी भी मानते हैं की प्यार असीम होता हैं और इसकी व्याख्या शब्दो मे नहीं की जा सकती हैं।
आप क्या सोचते हैं इसके बारे मे ?
मैंने तो इसके ऊपर काफी कुछ तलाशा और मुझे कुछ ऐसे तथ्य मिले जिनको पढ़ने के बाद लगा की शायद प्यार का सछ अर्थ यही हैं।

आप भी देखे की लोग क्या क्या सोचते हैं प्यार के बारे मे?


" प्यार एक संबंध और स्नेह का एक मजबूत सकारात्मक भावना हैं। "

 किसी भी वस्तु या व्यक्ति के लिए स्नेह या भक्ति ही प्यार का दूसरा रूप हैं।

बहुत ही बड़ी मात्र मे किसी चीज या किसी व्यक्ति को पसंद करना भी प्यार कहलाता हैं

शारीरिक सम्बन्ध बनाने की इच्छा और आकर्षण की गहरी भावना भी प्यार का एक रूप हैं.

अब आप ही बताए मैं किसे प्यार की सच्ची परिभाषा समझु और क्या सच्चे प्यार का मतलब इन्ही मे छुपा हैं?
वैसे भी जिसने प्यार किया हैं वहीं जनता हैं इसका मतलब लकीन ये बात भी क्या सहीं हैं ?
क्योंकि प्यार को क्या सिर्फ एक लड़के और लड़की के बीचे मे हुए संबंध के रूप मे ही समझा जाना चाहिए?
अगर हाँ तो फिर वो कौन सा प्यार होता हैं जो हमारे माँ-बाप, दोस्त-बंधु, परिवार वाले, मोहल्ले वाले हमसे करते हैं.
वैसे ये कहना गलत नहीं होगा की प्यार के अर्थ को हमे व्यापक रूप मे देखा जाना चाहिए। क्योंकि जहाँ तक मैं इसके बारे मे जनता हू वहाँ से मेरी सोच तो यही कहती हैं की प्यार सिर्फ वो नहीं जो एक लड़का एक लड़की से करता हैं या एक लड़की एक लड़के से करती हैं ये तो वो स्नेह और आकर्षण हैं जो आपके परिवार वालों, आपके मित्रो और दोस्तो को आपसे हो जाता हैं.
ये तो मेरी राय थी लकीन आपकी इससे अलग अवधारणा भी हो सकती हैं क्योंकि हर व्यक्ति की अलग दुनिया होती हैं उसके व्यक्तित्व के हिसाब से और वो अपने प्यार को किसी और रूप मे समझता हो।
चलिये मैंने तो अपनी राय बता  दी आपलोगो का क्या खाना हैं इस बारे मे।।।।

4 comments:

Maanv said...

bhai ye jo pyar hain badi hi bakwas cheej hoti hain aisa mera manna hain
samjhe aur jo bhi likha hain wo aur bakwas likha hain apne
itna faltu ka time apke paas aa kahan se jata hain
lagta hain aap bhi pyar ke chakkar se nahi bach paye hain aur isi ka raag alap rahe hain

Pawan Mall said...

ye aap kya kah rahe hain maanv jee


mujhe to ye lagta hain ki aap isse gujar chuke hain

aur aisi bekar tipaniya karke mere lekh ko badnam karne ki koshish kar rahe hain

waise bhi maine pahle hi lekh me ullekhit kar diya tha ki ye sirf meri soch ka natija hain


na ki aap sab ki

har insan ka cheejo ko dekhne ka najariya bilkul alag hota hain aur aap ka bhi isi liye alag hain

lakin main apko dhanyawad dena chahunga ki apne apne vichar to rakhe


Pawan Mall
http://pawanmall-thoughts.blogspot.com

कविता रावत said...

प्यार को संकुचित अर्थ में कदापि नहीं लिया जाना चाहिए .... इसका क्षेत्र आसमान और पृथ्वी से भी व्यापक है........ इसे कैसे सिर्फ दो प्राणियों तक सीमित कहा जा सकता है ...
.... सार्थक पहल प्यार को समझने ...समझाने की.....
हार्दिक शुभकामनाएं

कविता रावत said...

प्यार को संकुचित अर्थ में कदापि नहीं लिया जाना चाहिए .... इसका क्षेत्र आसमान और पृथ्वी से भी व्यापक है........ इसे कैसे सिर्फ दो प्राणियों तक सीमित कहा जा सकता है ...
.... सार्थक पहल प्यार को समझने ...समझाने की.....
हार्दिक शुभकामनाएं