फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |
मंदिर जैसे श्राप हो गया,
ध्वज फहराना पाप हो गया |
” हर एक हिंदू आतंकी है ”
यह नारायण जाप हो गया |
आरक्षण की लौह श्रृंखला में बंदी संगम का तट है |
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |
जिसने रक्त पिलाकर पाला,
देह जलाकर किया उजाला |
इंद्रप्रस्थ के सिंहासन ने
उसपर आज हलाहल डाला |
सीमा के इस ओर प्रलय को आमंत्रण गुपचुप, खटपट है|
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |
सूरज की किरणों को गाली,
ग्रसने को आतुर है लाली
राहू केतु ने मुंह फैलाया
संग शक्तियां काली काली|
रोज नया नाटक रचता है, यह कैसा मायावी नट है ?
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |
जमी हुई है तट पर काई,
तलछट में फैली चिकनाई|
हुआ प्रदूषित पूर्ण सरोवर,
पुण्य माघ की बेला आई |
चाहे जितना गंदला हो जल, डुबकी को आतुर जमघट है |
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |
जनहठ पर नृपहठ है भारी,
निर्वाचित होते व्यापारी |
हुई निरर्थक राष्ट्र चेतना,
भूखी, नंगी जनता सारी |
पापगान में गम कान्हा का सामगान और वंशीवट है |
फिर संकट घनघोर विकट है, सावधान अब मृत्यु निकट है |
जिसने कूल्हों को मटकाया |
कोटि कोटि पण उसने पाया |
वही राजनेता है भारी -
जिसने जनता को भटकाया |
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2 comments:
mayankji, satyamewa jayate .
आदरणीय डॉ साहब
इसी बात की प्रतीक्षा है...देखिये क्या होता है
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