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13.8.11

जनक्रांति या भ्रांति?????

अन्ना आंदोलन को पूरा देश टकटकी लगा कर देख रहा है। ऐसा लग रहा है, मानो लोकपाल बिल पारित होते ही, संपूर्ण संसार में सतयुग आ जाएगा। देश का हरेक व्यवस्था का बंदा बेईमान है। हर अधिकारी, नेता, चापलूस मालामाल हैं। कुछ-कुछ फ्रांस की क्रांति से माहौल हैं। फेसबुक में लेट्स सपोर्ट अन्ना, एंटी गवर्नमेंट माहौल देखा जा रहा है। देश के विभिन्न प्रांतों में टीवियों के माध्यम से क्रांति सुगबुगा रही है। ऐसा लगता है, कि अब तो बस अन्ना अनशन करेगा और सरकार मान जाएगी।
कुल मिलाकर सरकार बन गई विलैन और अन्ना बन गए हीरो। वाकई अन्ना हीरो हैं, वे अच्छे काम के लिए अच्छे प्रयास कर रहे हैं, बाबा की तरह ओवर रिएक्टिव सेना नहीं बना रहे। उनकी इन भावनाओं की कद्र की जानी चाहिए। मगर अफसो है, कि इस जनक्रांति में एक भ्रांति सतत चल रही है। अन्ना के इस आंदोलन को उन लोगों का सपोर्ट है, जो थिंक वोट हैं, न कि ईवीएम बटन दबाने जैसे छोटे काम करने वाले लोग। इस क्रांति में ड्रॉइंग रूप के प्लानर्स हैं। जमीन पर जमीन के लिए जमीन से काम करने वाले लोग इस पर अपना साफ सुथरा मत जाहिर नहीं कर पा रहे हैं, या फिर नहीं कर रहे हैं। सीधी सी बात है, अन्ना के इस आंदोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस जो भी कर सकती है, करेगी और कर रही है। अभी क्या है, हो सकता है कोई ऐसा मुद्दा सामने आए जो इस पूरे आंदोलन से मीडिया का ध्यान हटाए और सूरत पूरी बदल जाए। कुछ भी हो सकता है। बहरहाल अन्ना के इस आंदोलन को नीचे बिंदुओं से होकर देखना चाहिए।-
क्यों सही है आंदोलन: अन्ना का आंदोलन मुख्य रूप से भ्रष्टाचार की बात करते हुए, वास्तव में व्यवस्थी की पोल सी खोलता है। लोकतंत्र की आड़ में पल रहे दुनिया के इकलौते 10 जनपथ के राजतंत्र की बात कहता है। आम आदमी की तमाम मिनी रिश्वतों से सजी जिंदगी की कहानी है, अन्ना की भाषा और केजरीवाल का विज्ञान और प्रशांत, शांति का कानून भूषण। आम आदमी महंगाई, भ्रष्टाचार, बेईमानी और लाल बत्तियों के भीतर के भेडियों से कम सिविल सर्वेंट्स की सिंगापोर, यूएस, टूर से ज्यादा त्रस्त है। वहीं बाबुओं की टेबल टेनिस से भी परेशान है, जहां बिना पैसे के कोई फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल का सफर ही तय नहीं कर पाती। इसलिए इस आंदोलन को जन समर्थन मिल रहा है।
क्या होगा नतीजा: यह अहम प्रश्न है, कि नतीजा क्या होगा। केजरीवाल गीताई भाषा में कहते हैं, जन समर्थन मिला तो मानेंगे लोग साथ में हैं, नहीं तो हम जो कर रहे थे, वही करने लगेंगे। इस बात में एटीट्यूड है, घमंड और जनता पर अहसान है। लेकिन सब स्वीकार्य है, क्योंकि जनता परेशान है। नतीजे अच्छे होंगे। आंदोलन तेजी से ऊंचाई पर जाएगा। पूरे देश में जनाक्रोश बढ़ेगा। सियासी उल्लुओं काठों पर बैठ रजनी दर्शन करेंगे। जागते हुए, स्वप्न में जीने वाले मृग सी मारीच बढ़ेंगे। सब कुछ अन्ना के फेवर में ही होगा। सरकार हिल जाएगी, लेकिन कहां???
फेसबुक पर सरकारें औंधे मुंह गिर पड़ेंगी। अखबारों में नेताओं के बयान और नजरिए रंगे होंगे, टीवी पर अन्ना शादी का बन्ना होंगे। मगर...
क्या करेगी कांगे्रस: यूपीए की खाल में बैठी असली दागदार पार्टी कांग्रेस क्या करेगी। निश्चित रूप से सिब्बलिया सब्बल नहीं चलाएगी। शीलाई शिलाएं नहीं फेंकेगी, चिदंबरमिया भ्रम नहीं फैलाएगी। न अन्ना को मनाएगी, न अन्ना की मानेगी। बस चुप रहेगी। 2 दिनों बाद दबाव बढ़ेगा, तो कसाब को आर्थर से तिहाड़ शिफ्ट करेगी और वह बीच में भाग निकलेगा, या फिर अफजल पर सोनिया कुछ ऐसा बोलेंगी, जो कभी नहीं बोलीं, मनमोनह को इस इल्जाम के साथ हटा दिया जाएगा और राहुल जैसा का तैसा लोकपाल लाकर अन्ना के लोकपाल को लोकप्रियता का लोकपाल बनाकर पीएम बन जाएंगे, कोई विमान हाई जैक हो जाएगा, कहीं बॉम ब्लास्ट हो जाएगा, गस्से से तमातमाते हुए, सोनिया दो या तीन मंत्रियों की बली ले लेंगी, विदर्भ के किसानों, पुणे के किसान भट्टा परसौल के किसान एक होकर चिल्लाते हुए पीएमओ की सुरक्षा में सेंध लगाएंगे या फिर कोई दिज्विजय कहेगा हिंदुओं में है दम मुस्लिमों ने किया नाक में दम... और विपरीत होगी मीडिया की हवा, खत्म हो जाएगा अन्ना का धरना। रह जाएगा महज कुछ मुद्दों में बेदिशा उलझा मीडिया।
अगर सफल नहीं हुआ यूपीए तो क्या: कहीं किसी हाल में कोई चाल नहीं ठीक बैठी तो, राहुल भैया का पीएम बनना कांग्रेसियों का रुदनालाप, और बेचारे 8 सालों के सीधे, कठपुतली, विचारात्मक पुरुष की बली चढ़ जाएगी। संकल्प लेंगे राहुल, मैं बनवाऊंगा लोकपाल। सख्त लोकपाल ही देश की सच्ची आवाज है। और बात हो जाएगी आई-गई। मीडिया में जी न्यूज दिखाएगा बतौर पीएम राहुल के संकल्प, तो एनडीटीवी दिखाएगा गो ग्रीन कंट्री थू्र यंगर पीएम, वहीं इंडिया टीवी पर होगा राहुल बाबा का झाड़ फूंक मंत्र, स्टार न्यूज कराएगा पहली बार न्यूज रूम में पीएम। और इन सबके बाद भी नहीं बनेगा लोकपाल फिर क्या???
खेल खतम पैस हजम: थिंकवोटर टीवी देख-देख सरकारों को गालियां देगें, तो कहेंगे फेसबुक में हमने उखाडऩे की कोशिश तो की सरकार को लेकिन देश की जनता ही मूर्ख है। हां यह सब अपने पीसी, लैपटॉप या कैफे में बैठकर करेंगे। लेकिन ईवीएम वाले बूथ, कैफै में नहीं जाएंगे। वे सभी चित्रशाला में बैठकर मनाएंगे शोक।
फिर जीत जाएगा यूपीए: अन्ना के सच्चे शागिर्द थिंक वोटर्स हल्ला मचाएंगे, सडक़ों पर नहीं, सोशल साइटों पर। चिल्लाएंगे, मंचों पर नहीं अपने ड्रॉइंग रूम से। चीखेंगे चेंज। मगर मजाल कि वे वोट डालने जाएं। जिन थिंक वोटर्स के दम पर अन्ना बन्ना बने हैं, वह उनके साथ जिस्मानी तौर पर नहीं जेहनी तौर पर है। और ईवीएम में जिस्म की ही एक उंगली लगती है, दबाने के लिए।
-सखाजी

2 comments:

Remi said...

well said sakhaji..you inspire us not to be just think-tanks of our drawing rooms but to be vote-banks of booths.

S.N SHUKLA said...

बहुत खूबसूरत पोस्ट आभार
भारतीय स्वाधीनता दिवस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .