Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

2.9.11

गिरते मानवीय मूल्य और हम



गिरते मानवीय मूल्य और हम 

जब भी पौराणिक कथाये पढता हूँ तब अपने पूर्वजों पर गर्व होता है लेकिन जब वर्तमान में झांकता हूँ तो गिरते 
मानवीय मूल्यों पर मन आहत हो जाता है .

१.दिल विचलित हो जाता  है तब जब समाचार पत्रों में, गाँव -शहर में, दूर- नजदीक के नाते रिश्तो में भ्रूण -हत्या के बारे में
पढता हूँ ,सुनता हूँ . गर्भस्थ प्राणी की हत्या और वह भी उनके हाथों जो उसके सर्जक हैं .

२.दिल तडफता है तब जब निरीह बाला पर कुकर्म किये जाने की खबर पढता हूँ, सुनता हूँ.

३.आँखे नम हो जाती है तब जब वृद्ध माँ- बाप को तिरस्कृत कर घर छोड़कर वृद्धाश्रम का रास्ता खुद की संताने 
  ही दिखाती है या उनसे घृणित व्यवहार किया जाता है.

४.दिल आहत होता है तब जब धर्म के ठेकेदार धर्म की आड़ में वासना का खेल खेलते हैं और जाहिर में सत्कर्मों 
के उपदेश देते हैं.

५.दिल बैठ जाता है तब जब लेखनी के धनी पारिवारिक कहानी के नाम पर सामाजिक व्यवस्था को चुनौती 
   देते हैं.

६.दिल को ठेस लगती है तब जब भारतीय नारी  को स्वतंत्रता के नाम पर कामुक प्रदर्शन के लिए संघर्ष 
   करते सड़कों पर देखता हूँ .

७.दिल टूट जाता है तब जब क्षणिक आवेश में धीरज खोते भारतीय को आत्महत्या करके जीवन लीला समाप्त 
    करने की बात सुनता हूँ.

८.दिल दिशा शून्य हो जाता है तब जब तीन साल से भी कम उम्र  के मासूम किताबों का बौझ ढ़ोते सुबह -सुबह
   सडको पर दीखते हैं

९. दिल चिंतित होता है तब जब सुबह से दोपहर तक इन्वेस्टमेंट और व्यापार  के नाम पर युवाओ को वैधानिक 
सट्टे पर दांव लगाते देखता हूँ, हारते देखता हूँ.

१०. दिल फट जाता है तब जब मित्रता को कलंकित करते, भगवा परिधान के तार तार बिखेरते ,दौमुहे सांप 
    अग्निवेश जैसे धूर्त मित्र के बारे में सोचता हूँ.

No comments: