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15.9.11

दुर्गापूजा - महंगाई की मार से त्रस्त मूर्तिकार

शंकर जालान



पश्चिम बंगाल के मुख्य पर्व पांच दिवसीय दुर्गोत्सव के लिए दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की मूर्तियों के निर्माण में जुटे उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकार इस बार महंगाई से त्रस्त हैं। इसके अलावा मजदूर व मेघ (बारिश) ने भी मूर्तिकारों की परेशानियों में इजाफा किया है। मूर्तिकारों ने शुक्रवार को बताया कि उन्हें इनदिनों बारिश का भय सता रहा है। इस कारण वे सही ढंग से अपना काम नहीं कर पा रहे हैं। एकचाल (एक साथ पांचों मूर्ति) के मूर्ति बनाने वाली महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि बारिश के दौरान उन्हें अन्य मूर्तिकारों की तरह पॉलीथीन के नीचे काम करना पड़ता है। वे बताती हैं कि इस बार वे कुल 32 मूर्तियां बना रही हैं। अब तक दस प्रतिमाओं के आर्डर मिले चुके हैं। पाल ने बताया कि जगह की कमी व बारिश के दौरान उन्हें काम करने में काफी असुविधा हो रही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से मूर्तिकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण यह समस्या प्रतिवर्ष रहती है। उन्होंने मांग की कि इस समस्या के समाधान के लिए शहर में मूर्तिकारों के लिए एक जगह आबंटित की जानी चाहिए, जिससे वहां पर मूर्तिकार अपना काम कर सकें।
चंदन दास नामक मूर्तिकार ने शुक्रवार से कहा कि उनके पास छोटी-बड़ी 15 प्रतिमाओं के निर्माण का आर्डर है। हालांकि महंगाई और बारिश के कारण काफी काम बाधित हुआ है। समयपर काम पूरा करने के लिए बारिश के दौरान पॉलीथीन लगाकर काम करना पड़ रहा है। एक मूर्तिकार ने बताया कि पांच दिनों तक धूमधाम से मनाए जाने वाले पश्चिम बंगाल के विश्व प्रसिद्ध दुर्गापूजा उत्सव क लिए मूर्तियां गढ़ने वाले मूर्तिकार इस बार महंगाई, मजदूर व बारिश की मार से पीड़ित हैं। मूर्तिकार बासुदेव रुद्र ने बताया कि कच्चे माल की कीमत पिछले साल की तुलना में
दोगुनी हो चुकी है। मूर्ति बनाने में काम आने वाली हर एक वस्तु की कीमत आसमान छू रही है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए प्रमुख रूप से बांस, बिचाली, रस्सी, मिट्टी, रंग, नकली बाल और कपड़ों की जरूरत होती है।
रुद्र कहते हैं- बीते कुछ महीनों में बांस समेत मूर्ति निर्माण के काम आने वाली अन्य चीजों की कीमत में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बीते साल जिस बांस की कीमत 25 से 30 रुपए हुआ करती थी, आज उसकी
कीमत 45 से 60 रुपए तक पहुंच चुकी है।
कालीपद दास नामक मूर्तिकार बताते हैं कि मंदी के कारण दुर्गापूजा आयोजन समितियों का बजट भी काफी कम हो गया है। उनके शब्दों में मंदी के कारण लोग अपने बजट में कटौती कर रहे हैं। जो आयोजक कभी 20 फुट ऊंची मूर्ति बनाने के लिए आर्डर देते थे। इस साल उन्होंने 12 से 15 फीट की मूर्ति का ही आर्डर दिया है। वे कहते हैं कि महंगाई के साथ-साथ मजदूरों की कमी और बीते दो दिनों से हो रही लगातार बारिश ने उनके लिए आग में घी डालने का काम
किया है। दास ने बताया कि बीते साल 80 से एक सौ रुपए के बीच देहाड़ी मजदूर मिल जाते थे, लेकिन इस वर्ष रोजाना डेढ़ सौ रुपए देने पर भी मनमाफिक और इस काम के जानकार मजदूर नहीं मिल रहे हैं, लिहाजा वे कई आयोजकों का आर्डर नहीं ले पा रहे हैं।
बासठ वर्षीय साल अरुण पाल नामक मूर्तिकार को इनदिनों नींद नहीं आ रही है। वे कहते हैं कि २७ सितंबर से महालया और २ अक्तुबर से पूजा आरंभ होगी। इस बीत उन्हें २२ प्रतिमाओं को फाइनल टच देना है। लेकिन मुसीबत यह है कि कुम्हारटोली में मजदूर नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि मनरेगा की वजह से मजदूरों ने अलग राह पकड़ ली है। इस बात से दुखी वे कहते हैं कि 'मैने इस साल ६ मजदूर रखे हैं और उन्हें भोजव व आवास की सुविधा के साथ रोजाना एक हजार रुपए दे रहा हूं। पाल ने बताया कि बीते साल उन्होंने साढे़ तीन सौ रुपए रोज पर मजदूर रखे थे। यही हालत कुम्हारटोली के ज्यादातर मूर्तिकारों की है। हर मूर्तिकार सात सौ से एक हजार रुपए के बीच प्रतिदिन की मजदूरी दे रहा है, जबकि पिछले साल इन लोगों से ३५०-४०० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया था।
कुम्हारटोली मृदशिल्पी समिति के अध्यक्ष निमाई चंद्र पाल कहते हैं कि 'मजदूरों की संख्या ४० प्रतिशत तक कम है। इससे हमारे उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है और हम और ज्यादा ऑर्डर नहीं ले रहे हैं। हम अभी इस बात को लेकर
ही चिंतित हैं कि वर्तमान ऑर्डर किस तरह से पूरे किए जाएं। अगर पिछले साल किसी ने 35 ऑर्डर लिए थे तो वह इस साल 20 मूर्तियों की परियोजना पर काम कर रहा है। साथ ही उन्होंने कच्चे माल की बढ़ी कीमतों को भी लेकर चिंता जताई, जिसे आखिर में खरीदारों पर ही डालना है। बांस, सीसे, पेंट्स और पिथ की कीमतों में पिछले साल की तुलना में ३० प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
कुम्हारटोली मृदशिल्पी समिति के सचिव मोंटू पाल ने कहा कि इस साल मैं सिर्फ 2 मूर्तियां ही विदेश भेज रहा हूं। एक कैंब्रिज जा रही है और दूसरी ऑस्ट्रेलिया। हर साल मैं ज्यादा मूर्तियां बेचता हूं, लेकिन इस साल ऑर्डर
ज्यादा मिले हैं। मुनाफे में भी 15-20 प्रतिशत की कमी आई है।
मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में रहने वाले हर परिवार को दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है। पूजा के मौके पर शहर में हर तरफ उत्सव का माहौल छा जाता है जिससे यहां की रौनक में चार चांद लग जाते हैं। लोगों को इसका इंतजार तो है ही साथ ही यहां दुर्गा पूजा के मौके पर निकलने वाली ढेर सारी पत्रिकाओं का भी लोगों को
बेसब्री से इंतजार है।
इसी तरह यंग ब्यावज क्लब के प्रमुख राकेश सिंह बताते हैं कि महंगाई के कारण मूर्तियों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। साथ ही पंडालों को तैयार करने में भी ज्यादा खर्च आ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल जिस पंडाल को बनाने में पांच लाख रुपए खर्च हुए थे। इस साल वैसा पंडाल बनाने में आठ लाख रुपए की लागत आ रही है। साथ ही पिछले साल हमने जिस आकार की मूर्ति जिस कीमत पर ली थी। इस बार मूर्तिकार लगभग वैसी मूर्ति के लिए 50 हजार रुपए अतिरिक्त मांग रहे हैं।

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