टूटकर चाहा, मगर टूटा नही हूं
जहां छोडा था अभी भी मैं वहीं हूं
जब नहीं है प्यार फिर क्यों आंख नम है?
छोड दो संसार अपना कब कहा है?
हर तरह का दर्द हंसकर के सहा है
स्वीकार करने मे नहीं मुझको शरम है
साथ मेरे आज भी मेरा अहम् है
जो लगा सच बेहिचक कहता रहा हूं
सत्य कहने की सजा सहता रहा हूं
हूं बहुत निष्ठुऱ ,प्रिये तुमको भरम है
साथ मेरे आज भी मेरा अहम् है
प्यार मे मनुहार करना नही आया
क्या करूं अभिनय जरा भी नहीं भाया
मेरा वज़ुद तेरे अहसास से अब भी गरम है
मैं अकेला हूं तुम्हे,नाहक वहम है
केला हूं तुम्हे,नाहक वहम है
11.9.11
मैं अकेला हूं तुम्हे,नाहक वहम है
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1 comment:
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अपनी टिपण्णी से हमारा मार्गदर्शन कीजिये.
जन सुनवाई jansunwai@in.com
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