हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह अच्छा बने । यही आध्यात्मिकता है । इसे प्राप्त करने के लिए वह पुरानी किताबों , संस्कारों के कहने से पहले पूजा पाठ में जुटता है । कुछ मूर्तियों का सहारा लेता है । चलते - चलते मूर्तियाँ छूट जाती हैं , तो निराकार की पूजा करने लगता है । लेकिन अध्यात्म की राह में चलने वाले को इससे संतुष्टि नहीं प्राप्त होती । नतीजा यह होता है कि ईश्वर भी पीछे छूटने लगता है । तब वह धर्म की राह पकड़ता है । पहले अपने धर्म , फिर सारे धर्मों से वह अच्छाईयाँ ग्रहण करने के काम में पड़ता है । पर धीरे धीरे उसे धर्मों में अच्छाईयों से ज्यादा बुराईयाँ , मानवता से ज्यादा अमानवता , प्रेम से ज्यादा तो घृणा , दया से अधिक हिंसा दिखाई देने लगती है । और तब वह सारे धर्मों को छोड़ कर अपने विवेक की शरण में आ जाता है । और वह अपने बल-बूते पर अच्छा आदमी बन जाता है । उसे , फिर भी पछतावा होता है कि कि उसके जीवन का अमूल्य समय बाहर भटकने में व्यर्थ गया । किसी ने अगर बताया होता कि अच्छा आदमी बनने के लिए ईश्वर ,धर्म, पूजा पाठ ज़रूरी नहीं , केवल आत्मनिष्ठ होकर अपने आप को समझना होता है , तो मैं कितना अच्छा , और अच्छा आदमी बन सका होता ! यह सबके लिए सरल है और साध्य । कठिन तपस्या की आवश्यकता नहीं । यही अध्यात्म सबके लिए है , अध्यात्म बस यही है ही । मोटी मोटी किताबों , संतों , प्रवचनों , तीर्थ यात्राओं हवन यज्ञ सब निरर्थक है यदि आप में अच्छा आदमी बनने की चाह है । और यदि इसकी चाह नहीं है तब तो ये सब बेकार हैं ही । अब हर अच्छे आदमी का काम है कि यह अच्छी बात सबको बताये कि तुम , केवल तुम चाहो तो , और तभी तुम अच्छे बन सकते हो । तुम्हारी इच्छा के बगैर किसी धर्म ,किसी गुरु , किसी देवी देवता , किसी ईश्वर मई के लाल में यह ताक़त नहीं है कि वह तुम्हे अच्छा बना सके ।[SPIRITUALITY FOR ALL] ##
10.9.11
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2 comments:
सरल भाषा मे गहरी बात बता गए, धन्यवाद.
प्रिय रेखा प्रहलाद जी, आप अच्छे हैं , इसलिए यह सीधा सादा कमेंट आप को अच्छा लगा । एक और बात केवल आप से शेयर कर रहा हूँ कि मैने अपनी संस्था या घर या कार्यमंच के रूप में जो शब्द नाम सोचा है , वह है आसान हिंदी i.e. SIMPLE PHILOSOPHY. courtesey banaye rakhen .
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