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7.9.11

भ्रष्टाचारी या जग माही, सोते लम्बे पैर पसार,

भ्रष्टाचारी या जग माही,
सोते लम्बे पैर पसार,
भ्रष्टाचार से लड़ने वाले,
सरे राह दिए जाते मार.

सांच यहाँ पर झूंठ से लड़ते,
लड़ते जाता कुस्ती हार,
साधू संत यहाँ जिल्लत सहते,
पाखंडी की जय जय कार,

शेर ने अपनी पूँछ दवा ली,
कुत्ते जंगल देते दहार,
नया जमाना नया दौर है,
मर्द मर्द से करता प्यार,

सावन में पतझड़ का मौसम,
पतझड़ में छा जाती बहार,
मेहनतकश फाके को मजबूर,
सत्तानशीं को व्यंजन हजार,

सधवा को मुश्किल सिन्दूर बचाना,
विधवा नित करती सिंगार,
सती पति का कत्ल है करती,
गोद उजाड़ता पालनहार,

जननी कोख में मारी जाती,
नही देख पाती संसार,
मांझी नाव डुबाने खातिर,
ले जाता बीच मंझधार,

राय पर्वत बन हुंकारती,
चुटकी मसले जाते पहार,
सत्य का गला सदा ही कटता,
चहूँ और है हाहाकार,

यही फिजा गर रही देश में,
देश का होगा बँटाधार,
सत्य की सुनो ओ सत्तानशीनो,
झूंठ का बंद करो व्यापार,

अहिंसा का गला रेतने वालों,
रक्त क्रान्ति को रहो तैयार,
इक अन्ना गर भी गया तो,
अन्ना जन्मेंगे कई हजार,

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