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8.9.11

किसी का मख़मली अहसास मुझको गुदगुदाता है


किसी का मख़मली अहसास मुझको गुदगुदाता है
ख़यालों में दुपट्टा रेशमी इक सरसराता है

ठिठुरती सर्द रातों में मेरे कानों को छूकर जब
हवा करती है सरगोशी बदन यह कांप जाता है

उसे देखा नहीं यों तो हक़ीक़त में कभी मैंने
मगर ख़्वाबों में आकर वो मुझे अकसर सताता है

नहीं उसकी कभी मैंने सुनी आवाज़ क्योंकि वो
लबों से कुछ नहीं कहता इशारे से बुलाता है

हज़ारों शम्स हो उठते हैं रौशन उस लम्हे जब वो
हसीं रुख़ पर गिरी ज़ुल्फ़ों को झटके से हटाता है

किसी गुज़रे ज़माने में धड़कना इसकी फ़ितरत थी
पर अब तो इश्क़ के नग़मे मेरा दिल गुनगुनाता है

कहा तू मान दीवाने दवा कुछ होश की कर ले
ख़याली दिलरुबा से इस क़दर क्यों दिल लगाता है !
 

5 comments:

S.N SHUKLA said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना , बहुत सुन्दर प्रस्तुति , बधाई

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

'कहा तू मान दीवाने दवा कुछ होश की कर ले
ख़याली दिलरुबा से इस क़दर क्यों दिल लगाता है!'
ये तेरा दीवानापन है या मोहब्बत का कसूर| दिल को छू जाने वाले जज्बात बयान किये हैं | बधाई

Markand Dave said...

प्रिय श्रीअतुलजी,

नहीं उसकी कभी मैंने सुनी आवाज़ क्योंकि वो
लबों से कुछ नहीं कहता इशारे से बुलाता है।

बस..!! रचना से दिल बाग-बाग हो गया।

आपसे ऐसी ही नायाब, अभी और ढ़ेर सारी रचनाओं की अपेक्षा..!!

मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com

Maqbool said...

subhanallah. laajawaab peshkash ke liye haardik badhaai.
maqbool

bhagirath pryas said...

आप की यह रोमांटिक गजल वास्तव में किसी के भी मन मंदिर की घंटियां बजा देने में न केवल सक्षम है बल्कि मन के तारों को झकझोर देने वाली भै है ॥ बधाई स्वीकार करें॥ लवकुश तिवारी पत्रकार पुणे॥