क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या
ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन
और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं।
मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में
विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें
से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो
मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी
हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग
ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात
यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे
न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और
उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले
रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह
जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि
उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से
मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता
है। .............
................. थ्रोम्बोलाइटिक
उपचार -
थ्रोम्बोलाइटिक दवा (खून के थक्कों
को घोलने वाली दवा) इस्केमिक स्ट्रोक में मस्तिष्क का रक्तप्रवाह पुनर्स्थापित करती है और
रोगी को लक्षण-मुक्त करने में बहुत सहायता करती है। लेकिन दुर्भाग्य से यह कुछ
रोगियों के मस्तिष्क में रक्तस्राव कर सकती है। इसलिए चिकित्सक सारे पहलुओं को
ध्यान में रख कर बहुत सूझबूझ और विवेक से निर्णय लेता है कि रोगी को थ्रोम्बोलाइटिक
दवा देनी चाहिये या नहीं।
स्ट्रोक
के लिए रिकोम्बिनेन्ट डीएनए तकनीक से बनी सिर्फ एल्टीप्लेज
(rTPA) ही अनुमोदित की गई है। यह rTPA स्ट्रोक के
रोगी के लिए मूर्छित लक्ष्मण का जीवन बचाने के लिए वीर हनुमान द्वारा द्रोणगिरि पर्वत
से लाई गई संजीवनी बूटी के समान है। इसे स्ट्रोक होने के तीन घन्टे (ताजा शोध के नतीजों के
अनुसार साढ़े चार घन्टे तक दी जा सकती है) के भीतर ही स्ट्रोक से होने वाली क्षति
को प्रभावशून्य करने और अपंगता को रोकने के लिए दिया जाता है। यह खून के थक्कों को
घोल देती है। इसे जितना जल्दी दिया जायेगा,
स्वास्थ्य-लाभ उतनी जल्दी और अच्छा होगा। यह बहुत महँगी दवा है, 50
मिलीग्राम की शीशी की कीमत 40,000 रुपये है। इसे
हेमोरेजिक या रक्तस्रावी-स्ट्रोक में कभी
नहीं दिया जाता है। क्योंकि
इससे मस्तिष्क में रक्त-स्राव हो सकता है और लेने के देने पड़ सकते हैं। इसे बाँह
की शिरा में छोड़ा जाता है। इसे देने के बाद रोगी को कम से कम 24 घन्टे आई.सी.यू.
में रखा जाता है और एहतियात रखी जाती है कि रक्तस्राव न हो। इसका सबसे घातक
दुष्प्रभाव रक्तस्राव है।
जमाने से जो डरते
हैं, जलीलो–खार होते हैं
बदल देते हैं
जो माहौल वो
खुद्दार होते हैं,
हजारों डूबते हैं
नाखुदाओं के भरोसे
पर
चलाते हैं जो खुद चप्पू वो अक्सर पार होते हैं।
शब्दार्थ : जलीलो
-खार – बर्बाद,
नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
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