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15.3.21

धर्मांधता और जातिवाद दोनों ही मानवता के दुश्मन हैं


DharamVeer-


जो वर्ग देश के दलित हिंदू राष्ट्रपति को भी जाति के कारण मंदिर में प्रवेश नहीं करने देता वह मंदिर परिसर में हिंसा को भी जायज़ ठहरा देगा । जो लोग मंदिर के अंदर दलित हिंदुओं तक को प्रवेश नहीं करने देते वही एक मुस्लिम को मंदिर में बर्दाश्त कैसे कर पाएँगे ..? धर्मांधता और जातिवाद एक संक्रामक रोग है । प्राथमिकता के आधार पर इसको रोकने की बजाय ज़्यादातर लोग इस आग को भड़काने में लगे हैं । जिन लोगों ने पहले जातिवाद के आधार पर ख़ुद को एलीट क्लास में रखा आज वही लोग धर्म आधारित व्यवस्था के सिरमौर बने रहना चाहते हैं और यह पूरा हिंसक माहौल हिंदू धर्म या हिंदुओं  के कारण नहीं बल्कि उस एलीट क्लास के द्वारा सत्ता और समाज़  पर क़ब्ज़े की लड़ाई के कारण है ।


सेकडों वर्षों से करोड़ों हिंदुओं को ही हिंदू मंदिर में जाने से रोका गया है । हिंदुओं के हज़ारों मंदिर ऐसे हैं जहां दलित हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है । ख़ुद को सच्चा हिंदू कहने वाले करोड़ों लोग दलित हिंदुओं के हाथ का बनाया या उनके द्वारा परोसा गया भोजन ग्रहण नहीं करते है । ज़्यादातर घरों में दलितों के इस्तेमाल में लाने के लिए टूटे फूटे बर्तन आज भी सम्भाल कर रखे जाते हैं और काम वाली बाई से लेकर खेतों में मज़दूरी करने वाले दलितों को खाना उन्हीं बर्तनों में परोसा जाता है । समाज में व्याप्त छुआछूत का आलम यह है कि लोग होटेल - रेस्टौरेंट और ढाबे तक में खाना खाने से पहले सवर्ण रसोईया और सर्विस स्टाफ़ के बारे में जाँच पड़ताल कर लेने में भी नहीं शर्माते । मेरे साथ के कुछ मित्रों ने एक रेस्टौरेंट में भोजन करने से केवल इसलिए इनकार कर दिया था क्यूँकि जो लड़का खाना परोस रहा था वह लड़का उन्हीं के गाँव का दलित था । नियम से होना उल्टा चाहिए था । मेरे मित्रों को अपने गाँव के दलित को काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए था पर उन्होंने किया इसके ठीक उल्टा । उन्होंने उस रेस्टौरेंट के मालिक को यह अहसास करवाया कि भविष्य में इस वेटर की वजह से उनके रेस्टौरेंट को व्यावसायिक नुक़सान हो सकता है ।
हमारे समाज में व्याप्त जातिवाद का एक और विद्रूप चेहरा तब सामने आता है जब यही दलित हिंदू अपने साथ होते छुआछूत और शोषण से तंग आकर अपना धर्म बदलकर ईसाई अथवा बौद्ध बन जाते हैं । ऐसे सभी लोगों को धर्म बदलने के कारण खूब बुरा भला कहा जाता है लेकिन उस एलीट क्लास के द्वारा किया जाने वाला छुआछूत वाला व्यवहार तब भी नहीं बदलता है । एलीट क्लास पर क़ब्ज़ा किए हुए तथाकथित सच्चे हिंदू उन सभी मिशनरियों और बौद्ध भिक्षुओं को तो निशाना बना लेते हैं जो दलितों के द्वारा किए जाने वाले धर्मान्तरण को सम्भव बनाते हैं लेकिन कभी ख़ुद के कारण पूरे हिंदू समाज़ में व्याप्त छुआछूत और भेदभाव के बारे में एक शब्द नहीं कहते । आजकल एलीट क्लास के लोगों के द्वारा सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट्स में यह भी पढ़ने को मिलता है कि वह जातिवाद में विश्वास नहीं करते और उनके लिए हर हिंदू एक समान है लेकिन उनके घरों में अलग बर्तन रखे जाने की और मंदिरों में दलितों को प्रवेश ना दिए जाने की व्यवस्था यथावत बनी रहती है ।शादी विवाह से सम्बंधित जातीय प्रकरण  तो आए दिन अखबारो की सुर्ख़ियाँ बने रहते हैं । पिछले वर्ष पुष्कर यात्रा के दौरान मंदिर प्रवेश को लेकर देश के माननीय राष्ट्रपति के साथ हुए व्यवहार ने तो पुलिस केस तक की नौबत ला दी । कुल मिलाकर कहने का अर्थ यही है कि हिंदुओं के अंदर एक ख़ास क़िस्म की इनटोलरेंस हमेशा  मौजूद रही है लेकिन  पहले यह जातिवाद के रूप में बाहर आती थी और आज यह धार्मिक कट्टरता के रूप में बाहर लाई जा रही है ।

मंदिर के अंदर पानी पीने के कारण जिस मासूम बच्चे को पीटा गया है वह अनोखा इसलिए है कि अपराधी ने इसका वीडियो बना लिया और राजनैतिक लाभ पाने के उद्देश्य से उसको वायरल भी कर दिया बाक़ी उसमें नया कुछ भी नहीं है । वर्तमान समय में धार्मिक आधार पर पनपने वाली नफ़रती राजनीति का इसमें स्पष्ट योगदान है लेकिन तथाकथित सच्चे हिंदुओं के द्वारा दूसरों को ख़ुद से कमतर आंकने की यह घटना ना तो पहली है और ना ही आख़िरी । हाँ जैसे जैसे हिंदुओं में कट्टरता बढ़ती जाएगी वैसे वैसे इस तरह की हिंसा को भी जस्टीफ़ाई करने वालों की संख्या भी बढ़ती जाएगी ।

अगर आप इस तरह  के हिंसक लोगों को हिंदुओं का प्रतिनिधि समझते हैं तो आप भी एक गम्भीर गलती कर देते हैं । हिंदू धर्म का सबसे ज़्यादा बेड़ा इसी वर्ग ने ग़र्क किया है और अब यही वर्ग ख़ुद की हिंसा को जस्टीफ़ाई करते हुए  बाक़ी हिंदुओं को हिंसा करने के लिए उकसा रहा है । लेकिन सच यही है कि हिंदू धर्म किसी भी सूरत में दूसरे लोगों से नफ़रत करना नहीं सिखाता । “ सर्वे भवंतु सुखिन “ केवल वाक्य नहीं बल्कि हिंदू धर्म की आत्मा है । हिंसक और नफ़रती तत्व इस आत्मा को ख़त्म करने के लिए प्रयासरत हैं और राजनैतिक परिस्थितियों के कारण वह जीतते भी नज़र आने लगे हैं लेकिन भरोसा रखिए । यह फ़्रिंज ऐलीमेंट हैं सच्चे हिंदू नहीं । सच्चे हिंदू तो आज भी “ वसुधैव कुटुम्बकम “ की भावना को दिल में समेटे पूरी दुनिया को प्रेम का संदेश दे रहे हैं । चूँकि वह शांति पसंद हैं सो उनकी संख्या कम जान पड़ती है।

( लेखक का  Dharam Veer  Live  के नाम से अपना YouTube चैनल है । आप ज़रूर जुड़ें ।  )

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