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7.6.11

हाथ से हाथ जुड़े तो बहार आए शायद ......

मेरी बस्ती के सारे  चिराग सोते है
कोई रौशनी के लिए खुद को जलाए शायद
भीड़ में गर्क हो गए है जिंदगी के निशान
कोई अँधेरे में उम्मीद जगाए शायद.

सब के सब सो रहे है अँधेरी गर्तों में
आए आकर कोई नींदों से जगाए शायद
बड़ी बैचैन सी रातें है बेक़रार से दिन
कोई आवाज़ उठे तो करार आए शायद

भरी बरसात में आंसू भी नहीं दीखते है
रूह जगे तो तो ये आंसू  भी दिख जाए शायद
सब अकेले है भीड़ में सभी मन बंजर हैं
हाथ से हाथ जुड़े तो बहार आए शायद ......






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