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12.6.11

सवाल नीयत का है


सवाल नीयत का है

विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने को लेकर नौ दिनों से अनशन कर रहे बाबा रामदेव ने भले ही श्री श्री रविशंकर, कृपालु महाराज और मुरारी बापू के अनुरोध के बाद अपना अनशन समाप्त कर दिया हो....लेकिन नौ दिनों तक चले बाबा के सत्याग्रह ने यूपीए सरकार की नीयत पर जरूर सवालिया निशान लगा दिया है...जो आने वाले दिनों में यूपीए सरकार की परेशानी का सबब बन सकते हैं। नौ दिन पहले दिल्ली के रामलीला मैदान से सत्याग्रह शुरू करने वाले योगगुरू बाबा रामदेव का अनशन पहले दिन से ही भारी उतार – चढाव भरा रहा। सत्याग्रह शुरू होने के साथ ही जहां रामलीला मैदान में बाबा के समर्थकों का जमावडा लगना शुरू हो गयी था....वहीं बाबा के सत्याग्रह से घबराई यूपीए सरकार ने बाबा को मनाने की हरसंभव कोशिश की....इस बीच सरकार औऱ बाबा में सहमति बनने के आसार भी दिखे....लेकिन बाबा रामदेव की चिट्टठी का हवाला देते हुए यूपीए ने बाबा के सत्याग्रह को ढोंग करार देने की भी कोशिश की....जिसके बौखलाए बाबा ने सरकार पर उनकी मांगों पर सहमति के नाम पर धोखा देने का आरोप लगाया....औऱ इसके बाद रात के अंधरे में रामलीला मैदान में जो हुआ उसे पूरे देश ने देखा। देशभर में जहां बाबा रामदेव व उनके समर्थकों पर रामलीला मैदान में हुई पुलिसिया कारवाई को लेकर यूपीए सरकार की तीखी आलोचना हुई....वहीं बाबा के विरोधियों ने भी बाबा पर जमकर शब्दों के बाण छोडे। अब जब बाबा ने अपना अनशन समाप्त कर दिया है....तो इन नौ दिनों तक अंदर ही अंदर घबराई यूपीए सरकार ने जरूर राहत की सांस ली होगी....लेकिन ये नौ दिन सरकार की नीयत को जनता के सामने उजागर कर गये....जिसका भारत की राजनीती पर दीर्घकालीन असर पडेगा।
सवाल ये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर भष्टाचारियों के खिलाफ कारवाई करने का दम भरने वाली यूपीए सरकार क्या वाकई में विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने को लेकर गंभीर थी....अगर हां तो क्यों सरकार ने अभी तक क्यों इसको लेकर कोई कारगर कदम नहीं उठाया....लेकिन लगता है कि शायद यूपीए सरकार को डर था कि अगर बाबा की मांगों पर अमल किया गया तो इसके छींटे उसके दामन में भी पडते....यानि कि सरकार की नीयत पहले दिन से ही काले धन को वापस लाने को लेकर साफ नहीं थी। अपनी नीयत में खोट के चलते पहले दिन से ही जहां यूपीए सरकार बाबा रामदेव के सत्याग्रह से डरी हुई थी....औऱ उसने इस सत्याग्रह को परदे पर आने से रोकने के लिए पुरजोर कोशिश भी की....औऱ जब वह इसमें सफल नहीं हुई तो जबरन रात के अंधेरे में सत्याग्रह का दमन कर दिय़ा गया।
इससे बडा उदहारण औऱ क्या होगा कि नौ दिनों तक चले बाबा रामदेव के अनशन के दौरान एक बार भी यूपीए सरकार को बाबा की सुध लेने की फुर्सत नहीं थी....हां यूपीए में शामिल कांग्रेस व उसके घटक दलों के नेताओं के पास मीडिया में बाबा के खिलाफ बयानबाजी करने की फुर्सत जरूर थी। इस दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए बाबा रामदेव को ही उनकी संपत्ति को लेकर उन्हें सवालों में घेरने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोडी। निश्चित तौर पर अगर बाबा रामदेव ने गलत तरीके से अपनी संपत्ति अर्जित की है तो उसकी भी जांच होनी चाहिए...लेकिन अपना – अपना दामन बचाने के चक्कर में असली सवाल पीछे छूटता दिखाई दे रहा है।  
बहरहाल काले धन को लेकर सत्याग्रह शुरू करने वाले बाबा अपने मिशन में कितने सफल होते हैं, ये तो समय ही तय करेगा...लेकिन सत्याग्रह के जरिए बाबा ने देशभऱ में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल तैयार किया....औऱ इसे आम लोगों का जो जनसमर्थन मिला इसने एक बात तो साफ कर दी कि भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त हो चुका है.....साथ ही इस मुद्दे को लेकर जिस प्रकार केन्द्र सरकार ने असंवेदनशीलता दिखाई है...उसने सरकार की नीयत पर से पर्दा उठा दिया है....ऐसे में फैसला जनता को करना है कि देश से भ्रष्टाचार को मिटाने के प्रति उसकी नीयत क्या है...     औऱ उम्मीद है जनता भष्टाचार औऱ भ्रष्टाचारियों को अपनी नीयत का अंदाजा लोकतंत्र के माध्यम से ही वाकिफ कराएगी।  

दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

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