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16.12.11

काश! दागी राजनेताओं का हुक्का पानी बंद हो जाये 
आज जिस प्रकार से हर राजनैतिक पार्टिओं में दागी नेताओं कि फेहरिश्त बढती जा रही है उसे देखकर लगने लगा है कि ऐसे नेता सिर्फ और सिर्फ राजनीति में इस वजह आना चाहता कि वो राजनीती की आड़ में अपने उन काले कारनामों को अंजाम देता रहे जो सिर्फ उसके निजी फायेदे के लिए हैं| जब कोई दबंग चुनाव लड़ता है तो उसे ये बात बहुत अच्छी तरह से मालूम होती है की ये चुनाव भोली भली जनता उसे कतई नहीं जिताने वाली अगर उसे जीतना है तो अपने ऊँचे रसूख,पहले से ही सत्तासीन उसके प्रिय नेता और धन-बल ही उसे सत्ता का स्वाद चखा सकते हैं|
जब उसे लगने लगता है की उसके ऊपर हाथ अब उसके आकाओं का आ गया है तो वो चुनावी मैदान में जनता को नकारते हुए क़ानूनी रूप से अवैधानिकता के साथ लोकतंत्र को जीभ चिड़ाता हुआ राजनीति के गलियारों में अपनी  शातिर चालों को कामयाब कर लेता है | फिर क्या? सिलसिला शुरू होता है वो सब ग़ैर क़ानूनी कामों को अंजाम देना का जिसके लिए उसने राजनीति में प्रवेश किया था और गाहे बगाहे उसके राजनितिक आका उसे उसके कामों को अंजाम देने के लिए उसे खुला राजनितिक संरक्षण देते दिखाई देते रहते हैं| 
और जब राजनितिक संरक्षण में उस दबंग के पापों का घड़ा भर जाता है यानि लोकतंत्र की पर्याय जनता जब खुदको उसके काले कारनामों से आजिज होने लगती है और जनता  द्वारा का उसका कड़ा विरोध किया जाने लगता है तो फिर वही घिसा पिटा राजनितिक डायेलोग होता है की उसकी विरोधी पार्टिया किसी षड़यंत्र के तहत  उसके नेता पर गलत आरोप लगा रहीं हैं जिसकी जाँच की जाएगी|
फिर क्या वही होता है जाँच की आड़ में उस दबंग को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त हो जाता है और फिर से वो अपने उन गैर क़ानूनी कामों को अंजाम देने लगता जिसे वो आरोप प्रत्यारोप के चलते कुछ समय के लिए बंद कर देता है | परिणामतः राजनीती के कालचक्र में जनता जनार्दन को अनिश्चित कालीन के लिए पिसता रहना पड़ता है और उसी दागी नेता की काली करतूतों को देख कर खून का घूँट पीते रहना पड़ता है|
काश ! ऐसा हो जाये कि इन दागी नेताओं का हुक्का पानी बंद कर दिया जाये जिससे आम जनता जो उनके कुचक्र में फंसी रहती है को छुटकारा  मिल जाये | हुक्का पानी बंद करने से तात्पर्य यही कि प्रतेक दागी राजनेता को चुनाव आयोग के द्वारा आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंद लगा दिया जाना चाहिए साथ ही स्वच्छ राजनीती चाहने वाले राष्ट्रीय दलों को चाहिए के वो ऐसे दागी नेता को दल बदलने यानि पहले किसी दल में फिर किसी दल में आने जाने से रोकने के लिए अपनी पार्टी में पूरी तरह से प्रतिबंद लगा देना चाहिए बल्कि ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कही उस दागी नेता के ही सगे सम्बन्धी दागी के कहे पर राजनीती में तो नहीं घुस रहे या कहिये कि उस दागी के कहे पर फिर से अपने प्यादे को राजनीती में घुसाकर वही मंशा तो पूरी करने का सपना तो नहीं देखा जा रहा  जिस मंशा से वो खुद राजनितिक गलियारों में कभी पहुंचा था| अब हमारी भी जिम्मदारी बनती है कि ऐसे  दागिओं पर निगेहबानी करके चुनाव आयोग को सूचना दें बल्कि राजनितिक दलों से भी पूछा जाये कि उसने आखिर क्यों फ़लाने दागी को अपना प्रत्याशी चुना अगर उस दल के पास संतुष्टि भरा जवाब नहीं है तो मान लीजिये कि खुद राजनैतिक दल चाहता है कि वो दागी व्यक्ति राजनीती में आये और जनता के साथ छल करे|अगर हम अपनी पर आ जाये तो यकीन मानिये कि वास्तव में ही ऐसे दागिओं का राजनीति में आने से तो रोका ही जा सकता है बल्कि दलों पर जनता का भारी दवाब भी दागिओं की राजनीती में घुसपेठ को रोक सकता है ऐसा करना किसी हुक्का पानी बंद करने से कम नहीं होगा|     राकेश कुमार सक्सेना rakeshsaxena76@gmail.com

2 comments:

जीवन और जगत said...

यह बात तो हम मतदाताओं को वोट देते वक्‍त देखनी पड़ेगी। चूँकि आजकल किसी राजनीतिक दल की कोई विचारधारा नहीं रह गई है, इसलिए किसी दल विशेष के नाम पर वोट देने के बजाय

अनिल कश्यप said...

'जितनी हानि इस राष्ट्र को दुर्जनों की दुर्जनता से हुई है, उससे कहीं अधिक हानि इस राष्ट्र को सज्जनों की निष्क्रीयता से हुई है'-आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य)