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21.12.11

सारी दुनिया की सोच एक जैसी नहीं हो सकती।

दोस्तों, आप भी इंटरनेट से किसी न किसी तरह से तो जरूर ही जुड़े होंगे।चाहे ट्वीटर के जड़िये, या फेसबूक के, या ब्लॉगर के जड़िये या फिर किसी और माध्यम से।आप ही बताइए कि क्या सरकार की इंटरनेट पर सेंसरशिप की नीति किसी भी मायने में सही है।इंटरनेट तो आजकल लोगों की जान बन चुका है और उस इंटरनेट पर पाबंदी लगाना तो जैसे लोगों की साँसें रोकने के बराबर है।
    इंटरनेट ही तो वह माध्यम है जो समाज के हर लोग को अपनी बात खुलकर सबके सामने रखने का मौका देता है।इंटरनेट जात-पात के नाम पर मौका नहीं देता। इंटरनेट यह नहीं देखता कि कौन समाज के नीचे वर्ग से है और कौन ऊपरी तबके से।वह अमीर-गरीब का अंतर भी नहीं देखता।वह सबको बराबर का मौका देता है। समाज के हर वर्ग के लोगों को अपनी बात खुलकर सबके सामने रखने का मौका देता है इंटरनेट।वह किसी की भी बातों को प्रकाशित करने से पहले उसकी जाति नहीं देखता।देश में वही तो एक चीज बाकी रह गई है जिसमें अभी तक आरक्षण नहीं है। वरना इन नेताओं का क्या भरोसा कि कब संसद में इंटरनेट में भी आरक्षण की माँग उठा दे।ऐसे माध्यम पर पाबंदी लगाकर कम्युनिकेशन और आईटी मंत्री कपिल सिब्बल आखिर क्या साबित करना चाहते हैं?
    कपिल सिब्बल को आखिर इंटरनेट के किस कंटेंट से इतना जोरदार धक्का लगा कि उन्होंने इस पर पाबंदी लगाने की ही ठान ली।इंटरनेट से करोड़ों, अरबों लोग जुड़े होते हैं।जितने लोग होते हैं उतनी तरह की बातें होती है, और फिर सारी दुनिया की सोच एक जैसी तो नहीं होती है न।सभी की सोच अलग-अलग होती है।कुछ को सरकार का काम अच्छा लगता है तो कुछ को नहीं।कुछ को सोनिया-मनमोहन की टीम अच्छी लगती है तो कुछ को नहीं।किसी भी एक मामले पर सभी की अलग-अलग राय होती है।कपिल सिब्बल ने इंटरनेट पर सोनिया-मनमोहन की विरोधी तस्वीरें देख ली तो उन्हें मिर्ची लग गई और उन्होंने इस पर पाबंदी लगाने की ही ठान ली।तो फिर उन तस्वीरों और खबरों का क्या जो सोनिया-मनमोहन की सिर्फ तारीफें ही बयाँ करती हैं।कपिल सिब्बल साहब को तो वैसी खबरें बहुत अच्छी लगती होंगी।ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन्हें कि वो तस्वीरें और खबरें भी अच्छी नहीं लगी होंगी।तो क्या सिब्बल पूरे इंटरनेट पर नेताओं की चर्चा पर ही रोक लगा देंगे।इंटरनेट पर सेंसरशिप बेवकूफी के अलावा और कुछ नहीं है।कपिल सिब्बल आखिर चाहते क्या हैं कि सभी के सोच-विचार उनके जैसे ही हो जाएँ।सारी दुनिया के सोच-विचार सिब्बल और मनीष तिवारी जैसे नहीं हो सकते।सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह की तारीफें करना सभी के बस की बात नहीं है।वो काबिलियत सिर्फ वर्तमान के कांग्रेसी नेताओं में ही है।
    कपिल सिब्बल कहते हैं कि इंटरनेट पर धर्म का अपमान होता है।जात-पात के नाम पर धर्म का जितना अपमान नेता करते हैं उतना अपमान इंटरनेट नहीं करता।अल्पसंख्यक और जात-पात की राजनीति जितना नेता करते हैं उतना इंटरनेट नहीं करता।पाबंदी तो पहले उन नेताओं पर लगनी चाहिए जिन्होंने मुस्लिम वोट-बैंक की खातिर कसाब की फाँसी टाल रखी है।पाबंदी लगानी ही है तो पहले उन नेताओं पर लगाओ जिनके सुबह की शुरूआत भी होती है आरक्षण का नाम लेकर और दिन खत्म भी होता है आरक्षण का नाम लेकर, जो आरक्षण नाम के राक्षस से देश को जकड़ के समाज को बाँटने का काम कर रहे हैं हर मोड़ पर।इन नेताओं ने हद तो तब कर दी जब जन लोकपाल जैसे एक भ्रष्टाचार निरोधी कानून में भी इन्होंने आरक्षण की माँग उठा दी।पहले ऐसे ही कुछ नेताओं पर पाबंदी लगाने की जरूरत है।
    आखिर कपिल सिब्बल सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी पाबंदी क्यों लगा रहे हैं?क्या इसलिए कि अन्ना हजारे के आंदोलन को हिट करने में कुछ योगदान फेसबूक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भी था।अगर सचमुच वजह यही है तो सिब्बल जी ये न भूलें कि इन्हीं सोशल नेटवर्किंग साइट्स की मदद से अन्ना के आंदोलन के वक्त कुछ नेताओं ने अन्ना पर छींटाकशी की थी जिनमें मनीष तिवारी और खुद वो भी शामिल हैं।कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भी अन्ना हजारे और उनकी टीम पर बेतूकी बयानबाजी करने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स का ही इस्तेमाल करते हैं।तब क्यों नहीं कपिल सिब्बल इन पर पाबंदी लगाने की सोचते हैं।क्या देश भर में सिर्फ मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह सरीखे त्रिमूर्ति की ही बातें सही है, बाकी लोग जो भी सोचे, जो भी बोले सब गलत है?
    सरकार को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए।साइट के कंटेंट साइट्स के मालिकों पर ही छोड़ देना चाहिए।वैसे भी सरकार की ये पुरानी आदत रही है कि जो काम उन के मंत्रियों को करना चाहिए वो काम नहीं करेंगे या शायद उस काम के बारे में उन्हें पता भी न रहता हो और जो काम करने की जरूरत नहीं है, जिस काम से देश को कोई फायदा नहीं होने वाला है वही काम करते हैं जैसा कि वर्तमान में कम्युनिकेशन और आईटी मंत्री कपिल सिब्बल कर रहे हैं।भारत के नेता भले ही कुछ मामले में आगे हो लेकिन इंटरनेट के मामले में उन्हें मार्क जुकरबर्ग सरीखे इंटरनेट के दिग्गजों को उनके साइट्स के कंटेंट के बारे में फैसले लेने की कोई जरूरत नहीं है।इंटरनेट के मामले में तो वो जरूर भारतीय नेताओं से आगे हैं।      
 

1 comment:

तेजवानी गिरधर said...

सोशल नेटवर्किंग साइअ मन भी भडास निकालने का जरिया बन गया है, जो मन आता है वह बकवास की जा रही है, चरित्र हनन किया जा रहा है, धार्मिंक भावनाओं पर चोट पहुचाई जा रही है, इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता