दोस्तों, अन्ना हजारे के जादुई दिमाग का ही एक फल है
राईट टू रिकौल।इस कानून के तहत जनता को पाँच वर्षों के बीच में ही अपने
द्वारा चुने गए सांसद को वापस बुलाने का अधिकार है।पर अभी तक सरकार ने इसे
गंभीरता से नहीं लिया है।कहने के लिए तो सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी
पार्टी में हमेशा जंग ही चलते रहती है पर जहाँ सांसदों को वापस बुलाने की
माँग आई तो लगभग सभी सांसद एक हो गए।क्या पक्ष और क्या विपक्ष सभी ने एक
सूर में राईट टू रिकौल की आलोचना की।अभी तक देश में एकमात्र बिहार के
माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार जी ने इस कानून का समर्थन किया है।
अब सांसदों का लक्ष्य आम जनता की सेवा करना रह ही नहीं गया।वो तो संसद तक जाना चाहते हैं सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए।अपने क्षेत्र में कुछ काम-धंधा तो करते नहीं है सिर्फ सांसद क्षेत्रीय विकास योजना का गलत इस्तेमाल करते हैं।कुछ सांसद तो इस लायक भी नहीं होते हैं कि सांसद क्षेत्रीय विकास योजना को समझ सके।कुछ सांसदों को सरकारी कार्यों की कुछ जानकारी भी नहीं रहती है तो वो क्या खाक अपने क्षेत्र का विकास करेंगे।पूरे देश में बिहार ही ऐसा एकमात्र राज्य है जहाँ के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार जी ने विधायक क्षेत्रीय विकास योजना को खत्म कर दिया और भारत सरकार से सांसद क्षेत्रीय विकास योजना को भी हटाने की माँग की है।सांसद क्षेत्रीय विकास योजना बिलकुल खत्म होनी चाहिए।सांसद इसका इस्तेमाल आम जनता के लिए कम और अपने निजी स्वार्थ के लिए ज्यादा करते हैं।भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है सांसद क्षेत्रीय विकास योजना। आखिर सभी सांसद करते क्या हैं कि एक बार संसद में चुने जाने पर उनके देश-विदेश में कारोबार फैल जाते हैं।
सेवक महीने भर मालिक से जितना भी जी चुराए पर महीने के अंत में पगार लेने मालिक के पास आएगा ही क्योंकि वह पगार ही उसके जीने का एकमात्र जरिया है, भले ही उसने महीने भर मालिक का कोई काम नहीं किया हो।उसी तरह नेताओं को भी पाँच वर्षों तक आम जनता से कोई मतलब नहीं रहता है।एक बार संसद में चुना जाने पर वो बस अपना संपत्ति देश-विदेश में बढ़ाने लग जाते हैं।पाँच वर्षों तक उद्योग और उद्योगपतियों को ही वो सर्वोपरि मानते हैं जैसे उन्हीं के बदौलत वो संसद तक जाते हैं।लेकिन चुनाव के वक्त उन्हें आना ही पड़ता है आम जनता के पास।
अब सांसदों का लक्ष्य आम जनता की सेवा करना रह ही नहीं गया।वो तो संसद तक जाना चाहते हैं सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए।अपने क्षेत्र में कुछ काम-धंधा तो करते नहीं है सिर्फ सांसद क्षेत्रीय विकास योजना का गलत इस्तेमाल करते हैं।कुछ सांसद तो इस लायक भी नहीं होते हैं कि सांसद क्षेत्रीय विकास योजना को समझ सके।कुछ सांसदों को सरकारी कार्यों की कुछ जानकारी भी नहीं रहती है तो वो क्या खाक अपने क्षेत्र का विकास करेंगे।पूरे देश में बिहार ही ऐसा एकमात्र राज्य है जहाँ के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार जी ने विधायक क्षेत्रीय विकास योजना को खत्म कर दिया और भारत सरकार से सांसद क्षेत्रीय विकास योजना को भी हटाने की माँग की है।सांसद क्षेत्रीय विकास योजना बिलकुल खत्म होनी चाहिए।सांसद इसका इस्तेमाल आम जनता के लिए कम और अपने निजी स्वार्थ के लिए ज्यादा करते हैं।भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है सांसद क्षेत्रीय विकास योजना। आखिर सभी सांसद करते क्या हैं कि एक बार संसद में चुने जाने पर उनके देश-विदेश में कारोबार फैल जाते हैं।
सेवक महीने भर मालिक से जितना भी जी चुराए पर महीने के अंत में पगार लेने मालिक के पास आएगा ही क्योंकि वह पगार ही उसके जीने का एकमात्र जरिया है, भले ही उसने महीने भर मालिक का कोई काम नहीं किया हो।उसी तरह नेताओं को भी पाँच वर्षों तक आम जनता से कोई मतलब नहीं रहता है।एक बार संसद में चुना जाने पर वो बस अपना संपत्ति देश-विदेश में बढ़ाने लग जाते हैं।पाँच वर्षों तक उद्योग और उद्योगपतियों को ही वो सर्वोपरि मानते हैं जैसे उन्हीं के बदौलत वो संसद तक जाते हैं।लेकिन चुनाव के वक्त उन्हें आना ही पड़ता है आम जनता के पास।
कितने भी बड़े उद्योगपतियों से नेता पाँच साल
कितनी भी नजदीकी बढ़ा लें पर वो उद्योगपति नेताओं को देश की सर्वोच्च
संस्था की सदस्यता नहीं दिला सकते हैं.वो सदस्यता इन्हें सिर्फ और सिर्फ आम
जनता ही दिला सकती है जिनसे नेताओं को पाँच सालों तक कोई मतलब नहीं रहता
है.चुनाव के वक्त अपने क्षेत्र के दरवाजे-दरवाजे भटक के वोट मांगते हैं पर
ये भी नहीं सोचते कि वो इसके लायक भी हैं या नहीं.जिस जनता के दरवाजे पर
वोट मांगने जाते हैं, चुनाव ख़त्म होने के कुछ दिनों बाद उसी जनता को ऐसा
भूलतें हैं कि एक फ़ोन नहीं उठाते हैं.जिस जनता के आशीर्वाद से चुनाव जीतते
हैं, चुनाव के बाद वही जनता कोई काम लेकर उनके पास आए तो उन्हें बेवकूफ
समझते हैं.पांच सालों तक अपना चेहरा क्षेत्र में नहीं दिखाते हैं और चुनाव
के वक्त दरवाजे-दरवाजे जाते हैं, नेताओं के जनता के प्रति इसी नजरिए को
खत्म करने का हथियार है राईट टू रिकौल.राईट टू रिकौल से नेताओं की असलियत
सबके सामने आ जाएगी इसलिए नेताओं को कभी नहीं भायेगा यह कानून.कोई भी नेता
जो राईट टू रिकौल के पक्ष में नहीं हैं क्या वो बता सकते हैं कि ऐसी क्या
खराबी है इस कानून में.जो भी नेता इस कानून का विरोध करेंगे समझ लीजिए कि
जनता की सेवा करने के लिए उनकी मंशा ठीक नहीं है.जनता को अगर अपना
प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है तो उसे वापस बुलाने का भी अधिकार है.सांसद
बनते तो हैं पांच सालों के लिए लेकिन हर छः महीने पर उनकी जांच होनी चाहिए
कि आखिर उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए क्या किया, और अगर वो अपने क्षेत्र
की समस्या का निदान करने में अक्षम पाए गए तो उनकी सदस्यता ख़त्म कर देनी
चाहिए.राईट टू रिकौल आने से नेताओं को जनता और उद्योगपतियों के बीच का अंतर
पता चल जायेगा.
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