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31.12.11

नववर्ष में कहीं मोजमस्ती की तैयारी, तो कहीं बेबसी व लाचारी

शंकर जालान



कोलकाता महानगर के पांच सितारा होटलों व नामी-गिरामी रेस्तरां और विभिन्न क्लबों में युद्धस्तर पर अंग्रेजी नववर्ष यानी नए साल 2012 के स्वागत की तैयारी शुरू हो गई है। नए साल के आगमन में अब एक दिन बचा हैं। इस लिहाज से होटल, क्लब अपने ग्राहकों व सदस्यों के आकर्षित करने की फिराक में है। कहना गलत न होगा कि एक ओर महानगर के संपन्न परिवार के नवयुवक शनिवार देर रात व रविवार को नववर्ष कैसे मनाए इस सोच में डूबे हैं। वहीं दूसरी ओर महानगर में लाखों की संख्या में गरीब व मेहनतकश लोग हैं, जिनके लिए नए साल पर जश्न मनाने का कोई मतलब नहीं है। संपन्न परिवार के लोग जहां पांच सितारा होटलों में हजारों रुपए मांसाहारी भोजन व मदिरापान में पानी की तरह बहा देते हैं। वहीं, शहर के मुटिया-मजदूर और गरीब तबके के लोग भूख मिटाने के लिए दस-पांच रुपए का भोजन भी अपने पेट में डालने में असमर्थ रहते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि ज्यादातर मेहनतकश लोगों के यह पता ही नहीं होता कि अंग्रेजी नववर्ष क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है। उनके लिए तो पेट ही पहाड़ है। भर पेट भोजन मिलना उनके लिए किसी जश्न से कतई कम नहीं है। इस वर्ग में वे लोग भी शामिल है जो शहर के विभिन्न इलाकों में खुले आसमान के नीचे रहते हैं। उनके लिए धरती बिछावन और गगन चादर है। एक आंकड़े के मुताबिक राज्य के साठ फीसद से लोगों को दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं, करीब बीस फीसद ऐसे लोग हैं, जिनके घरों उजाला तब होता है, जब चौराहे पर लगे लैंपपोस्ट की बत्ती जलती है।
बड़ाबाजार चक्र रेल स्टेशन के पास झोपड़ी में रहने वाले दास परिवार के गौतम ने बताया कि वह अपनी विधवा मां, पत्नी और चार साल की बच्ची के साथ बीते छह सालों से रह रहे हैं। गौतम ने बताया कि वह राजा कटरा से थोक भाव में चनाचूर लाकर ट्रेन में बेचता है। दिन भर में चार-पांच किलो चनाचूर बेच कर किसी तरह 70-80 रुपए कमा पाता है। उन्होंने बताया कि इतने पैसे में खाना खर्च तो चलता नहीं, ऊपर से मां की दवा अलग से। दुखी मन से गौतम ने कहा कि हर महीने में दो-चार दिन तो मूढ़ी खाकर रहना पड़ता है। ऐसे में हमारे लिए नववर्ष के जश्न का कोई अर्थ नहीं है।
केलाबागान की रहने वाली शम्मी जहां के मुताबिक बड़ा दिन या फिर नया साल यह सब बड़े लोगों के चोचले हैं। फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के लिए इन दिनों का कोई महत्व नहीं है। उसने दुखी मन से कहा कि वैसे तो आम दिनों में उसकी दोनों लड़की व एक लड़का जो मिलता खा लेते, किसी प्रकार का जिद नहीं करते, लेकिन किसी विशेष दिन पर अन्य बच्चों को अच्छे कपड़े और अच्छा खाना खाते देख हमारे बच्चे के चोहरे मायूस हो जाते हैं। शम्मी ने बताया कि अगर सच कहूं तो नववर्ष का पहला दिन जहां संपन्न परिवार के लोगों के लिए जश्न मनाने का होता है, वहीं हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए अपनी बेबसी-लाचारी पर अफसोस करने का।

1 comment:

कविता रावत said...

नए साल की धुन में लाखों करोड़ों पैसा फुकने वालें काश यह बात समझ पाते..
बढ़िया जागरूकता भरी प्रस्तुति...
आपको सपरिवार नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!