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25.12.11

पू.वि.वि. से पुलिस वाले चले गये !

पू.वि.वि. से पुलिस वाले चले गये !
(अपने प्रशिक्षण स्थलों से रवाना हुये और प्रदेश को मिले हजारों सिपाही)

शुक्रवार, 23 दिसम्बर 2011


लगभग एक वर्ष की शिक्षा - दीक्षा के बाद आज हमारे विश्वविद्यालय से तकरीबन 550 प्रशिक्षु पुलिस वाले (सिपाही) चले गये । उनसे बात करके पता चला कि इस दल से सिपाही बने लगभग 400 सिपाहीयों को एक हफ्ते की छुट्टी के बाद जौनपुर के थानों में ही तैनाती मिल गयी है । बाकी सिपाही सूबे के अन्य जिलों में तैनाती के लिये कूच करेगें ।

आपकी यादों को ताजा करने के लिये बताते चलें कि यह वही पुलिस वाले हैं जिन्होंने मुलायम सिंह सरकार के जमाने में अपनी लिखित और शारीरिक परीक्षा पास की थी । फिर मायावती सरकार ने आते ही इस परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुये कई जांचे बैठाई । फिर मुकदमे लड़ते हुये जब अन्तत: सफल अभ्यर्थी अपनी बात मनवाने में सफल हुये तो सरकार को इनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी ।

इतनी बड़ी संख्या में सिपाहियों को ट्रेन करने के लिये मुरादाबाद और सीतापुर के पुलिस ट्रेनिंग कालेज नाकाफी साबित होने लगें तो वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में कई स्थानों पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी । जौनपुर स्थित पूर्वांचल विश्वविद्यालय में भी लगभग 550 रंगरूट प्रशिक्षण के लिये जनवरी 2011 में आये थे ।

जब मुझे इसका पता चला था की हमारे विश्वविद्यालय में पुलिस वालों के ट्रेनिंग होगी तो मन में अच्छे भाव नहीं आये । क्योंकि, पुलिस वालों की जो सार्वजनिक छवि है वो आखों के सामने आ गयी । जब एक - एक पुलिस वाले की वीर गाथाएं ही मानस पटल पर उभर रही थी तब मन यह सोंच करके ही उद्वेलित हो गया कि जहाँ एक साथ 550 पुलिस वाले होंगे तो क्या हाल होगा । मन मसोस कर रह गया कि अब एक साल तक वि.वि. के वातावरण का बंटाधार होना निश्चित था । रोज नये किस्से सामने आने की आशंका से चिंतित हो उठा । लूट, अवैध वसूली, हफ्ता वसूली और छेड़-छाड़ आदि की घटनाओं में इजाफा होना मानों तय सा लग रहा था ।

पर इनकी ट्रेनिंग का समय जब पूरा हुआ तो लग रहा है कि सारी की सारी आशंकाएं निराधार साबित हुयी । एक भी घटना नहीं हुयी । अलबत्ता यह समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला । कब कौन सी ट्रेनिंग हुई पता ही नहीं चला । वि.वि. के किसी काम में व्यवधान पड़ा हो, मुझे याद नहीं । किसी छात्र - छात्रा ने इनके होने से किसी प्रकार की समस्या जाहिर कि हो, ऐसा कभी नहीं हुआ । इस दौरान आस - पास के दुकानदार, चाय वाले, ढ़ाबे वाले आदि सब इनके अनुशासन के कायल हो चले हैं । दस मिनट - मतलब दस मिनट और वापस फील्ड में हाजिर होना है । नहीं तो ट्रेनर की लताड़ और दण्ड भी ।

कभी - कभार, सुबह - सवेरे की सैर के दौरान इन रंगरूटों से भेंट हो जाती तो वे वि.वि. के प्रति जिम्मेदार व्यवहार करते नजर आये । वि.वि. के प्रति इनका एक बड़ा योगदान यह है कि वि.वि. एक बड़ा मैदान जो उजाड़ खण्ड पड़ा था उसे समतल कर इस पर ट्रेनिंग करायी गयी । अभी हाल में वि.वि. के शिक्षकों ने एक क्रिकेट मैच भी इसी मैदान पर खेला ।

पर अब रूखसती का समय है और फिर तैनाती !

अब यह सभी रंगरूट नहीं, वरन उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही बन चुके हैं । जिन पर प्रदेश की जनता की जान - माल की रक्षा का भार है । देखना यह है कि क्या अपने आगामी जीवन में जब यह लोग सिस्टम का हिस्सा होगें तो क्या इनकी सहजता और सहदृयता ऐसे ही बनी रहेगी । क्या यह सभी ऐसे ही ईमानदार बने रहेंगे और तारीफे़ पाने लायक काम करते रहेगें ।

यकीन तो नहीं है पर फिर भी दिल खुशफहमी पाले ले रहा है ।

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