ग़म अगर्चे इस क़दर होता नहीं
शायरी का बीज मैं बोता नहीं।
ज़िन्दगी यूँ काट रहा हूँ तनहा
गर्दिशों में क़ाफिला होता नहीं।
क्यूं भला हालात को हम दोष दें
क्या कभी इन्सां बुरा होता नहीं।
मैं सदा ही साथ चला हूँ उस के
वो कभी मुझसे जुदा होता नहीं।
मक़बूल हर पल बोझ सा लगता है तब
गाँठ में जब रोकड़ा होता नहीं।
मक़बूल
17.12.11
ग़म अगर्चे इस क़दर होता नहीं
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