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27.12.11

वसुंधरा पर एकमत नहीं भाजपाई

प्रदेश में कांग्रेस सरकार की विफलता की दुहाई दे कर आने वाले चुनाव में सत्ता पर काबिज होने को आतुर भाजपा नेतृतव को लेकर अभी असमंजस में ही प्रतीत होती है। एक ओर जहां भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी बिलकुल खुले शब्दों में कह रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगए, वहीं दूसरी ओर संघ लॉबी से जुड़े पूर्व मंत्री गुलाब चंद कटारिया इस बात को पूरी तरह से नकार रहे हैं। हाल ही उन्होंने एक सार्वजनिक बयान में कह दिया कि पार्टी ने अब तक यह तय नहीं किया है कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो कौन मुख्यमंत्री होगा। उनका कहना था कि भाजपा विधायक दल ही तय करेगा कि किसे नेता के रूप में चुना जाए। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भले ही गडकरी व आडवाणी किसी राष्ट्रीय समीकरण के तहत वसुंधरा के पक्ष में हैं, मगर राज्य स्तर पर अब भी वसुंधरा के प्रति एकराय नहीं है।
ऐसा प्रतीत होता है कि यद्यपि गडकरी व आडवाणी को भलीभांति पता है कि वसुंधरा को लेकर राज्य में पार्टी के नेता एकमत नहीं हैं, बावजूद इसके उन्होंने जानबूझकर वसुंधरा पर हाथ रख दिया, ताकि यह पता लग सके कि उनका विरोध कितना है? अव्वल तो उनके बयान का कोई खुले तौर पर विरोध करने की हिमाकत नहीं करेगा और यदि बवाल होता भी है तो वे यह कह कर पैंतरा बदलने की कोशिश करेंगे कि उनकी नजर में वसुंधरा की लोकप्रियता काफी है, इस कारण उन्होंने उनके बारे में निजी राय दी थी, वैसे पार्टी मंच पर ही तय होगा कि विधायक दल का नेता कौन होगा?
सच्चाई ये है कि भाजपा की भले ही पार्टी स्तर पर वसुंधरा को ही स्वीकार करने की कोई मजबूरी हो, मगर पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को वसुंधरा फूटी आंख नहीं सुहा रही। चूंकि संघ खुले में कोई बयान जारी नहीं करता, इस कारण उसने अपने एक सिपहसालार पूर्व मंत्री गुलाब चंद कटारिया के मुंह से यह कहलवा दिया ताकि यदि गडकरी या आडवाणी को कोई गलतफहमी हो तो वह दूर हो जाए। हालांकि इतना तय है कि दोनों नेताओं को कोई गलतफहमी नहीं होगी, और यह भी तय है कि संघ भी जानता है कि दोनों नेताओं ने गलतफहमी में ऐसा नहीं कहा है, जानबूझकर कहा है, मगर कटारिया के जरिए यह इशारा करवा दिया है कि वसुंधरा के बारे में इस प्रकार के बयान देने से गड़बड़ होगी।
असल में पिछले दिनों जब आडवाणी अजमेर में आम सभा में खुल कर बोल गए तो वसुंधरा विरोधी खेमे को बड़ी भारी तकलीफ हुई, मगर पार्टी अनुशासन के कारण कोई कुछ नहीं बोला। जब बात कुछ ठंडी पड़ी तो कटारिया ने बयान जारी कर वसुंधरा खेमे में खलबली मचा दी है। ऐसा नहीं कि वसुंधरा को इसका अनुमान नहीं कि एक खेमा उन पर सहमत नहीं है। वे जानती हैं। मगर साथ वे इस बात से भी आश्वस्त हैं कि उनके मुकाबले का दूसरा कोई नेता सामने आने वाला नहीं है। वस्तुत: पार्टी में है भी नहीं। पार्टी को उनका चेहरा सामने रख कर ही चुनाव लडऩा होगा। उधर संघ भी जनता है कि चेहरा तो वसुंधरा का ही होगा, मगर उन्हें पूरी स्वच्छंदता नहीं दी जा सकती। इसी कारण कटारिया के जरिये इशारा कर दिया ताकि वे दबाव में रहें और टिकट वितरण के समय संघ को उसका जायज कोटा देने पर आनाकानी न करें। साथ ही मुख्यमंत्री बनने पर संघ खेमे के विधायकों के साथ भेदभाव न बरतें। इसके पीछे सोच यही है कि वसुंधरा भले ही कितनी भी लोकप्रिय क्यों न हों, धरातल पर संघनिष्ठ कार्यकर्ताओं की मेहनत से ही पार्टी को वोट मिलते हैं। इसी के बिना पर अपनी अहमियत किसी भी सूरत में खत्म नहीं होने देना चाहता।
वैसे एक बात है, ताजा घटनाक्रम के चलते विशेष रूप से विधानसभा टिकट के वसुंधरा खेमे के दावेदारों का मनोबल ऊंचा हुआ है। उधर चतुर्वेदी खेमे के दावेदारों को लग रहा है कि चतुर्वेदी के साथ-साथ वसुंधरा का देवरा भी ढोकना पड़ेगा। खुद चतुर्वेदी लॉबी के नेता भी दावेदारों से कहने लगे हैं कि वसुंधरा से भी थोड़ा लाइजनिंग बना कर चलो।
-tejwanig@gmail.com

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