शंकर जालान
कोलकाता । दक्षिण कोलकाता स्थित एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में बीते शुक्रवार तड़के घटी भीषण अग्निकांड में जहां 90 से ज्यादा लोग राम को प्यारे हो गए। वहीं शहर की कई नामी-गिरामी अस्पतालों वे बड़ी इमरातों की अग्निशमन व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा कर दिया। कहना कहना गलत नहीं होगा कि शहर में नियमों को ताक पर रख कर कई अस्पताल चल रहे तो कई महत्वपूर्ण इमारतों में भी आग बुझाने की माकुल व्यवस्था नहीं है। या यूं कहे कि शहर की कई अस्पतालें व इमारते राम भरोसे हैं। महानगर और आसपास के इलाके में चल रहे लघु उद्योग, भूतल (बेसमेंट) में संचालित नर्सिंग होम, गेस्ट हाउस, कोचिंग हब, होटल, कॉलेज व स्कूल के अलावा सिनेमा हॉल व शॉपिंग मॉलों को देखकर अग्निकांड की संभावना को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। अग्निशमन विभाग की माने तो शहर की कुछ बहुमंजिली इमारतें ही मानकों पर खरी हैं।
महानगर की 75 फीसद से ज्यादा बहुमंजिली इमारतें, अपार्टमेंट, मार्केट और नर्सिंग होम आदि में अग्निशमन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कुछ अस्पतालों में अग्निशमन उपकरण तो हैं, लेकिन वे खराब पड़े हैं। बेसमेंट में मानकों की अनदेखी की जा रही है। सोचने वाली बात यह है कि संबंधित विभाग के अधिकारी किसी आधार पर अनापत्ति पत्र (एनओसी) दे देते हैं।
आमरी अस्पताल में लगी भयानक आग के बात इससे चिंतित लोगों का कहना है कि कई अस्पतालों समेत विभिन्ना स्थानों के शासकीय व निजी इमारतों में आपदा प्रबंध की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। राज्य सरकार को इसके लिए कानून बनाना चाहिए। लोगों का कहना है कि पहले सिनेमा घरों, अस्पतालों में आग बुझाने का छोटा-सा सयंत्र व दो बाल्टी रेत भरी नजर आती थी, पर अब वह नहीं दिखती।
स्वयंसेवी संस्था के एक पदाधिकारी ने बताया कि अस्पतालों में अग्निशमन के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। इतना ही नहीं कोई बड़ा हादसा होने पर उस पर तत्काल काबू पाने के लिए कोई रणनीति भी तैयार नहीं है। रोजाना सरकारी समेत निजी अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा को लेकर न तो कोई तैयारी है और न ही कोई व्यवस्था...। उन्होंने कहा कि कुछ निजी अस्पतालों में जरूर कई स्थानों पर आग पर काबू पाने के लिए छोटे यंत्र लगे हैं, लेकिन उससे किस हद तक काबू पाया जा सकता है, यह प्रश्न बना हुआ है।
उन्होंने बताया कि आमरी हादसे के बाद मरीज, अस्पताल कर्मियों की सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार नए सिरे से सोचने पर विवश हैं। कारगर रणनीति की दरकार महसूस की जा रही है। इस घटना ने अस्पतालों में अग्निशमन के इंतजामों को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है।
जरा अतीत की ओर देखे तो पता चलता है कि महानगर कोलकाता समेत आसपास के जिलों में बीते दो दशक के दौरान आगजनी की दजर्नों घटनाएं घटी है, लेकिन आमारी की आग की लपटों ने सबको बौना कर दिया। बीते साल यानी 2010 में स्टीफन कोर्ट, 2008 में सोदपुर व नंदराम मार्केट, 2006 में तपसिया, 2002 में फिरपोस मार्केट, 1998 में मैकेंजी इमारत, 1997 में एवरेस्ट हाउस व कोलकाता पुस्तक मेला, 1996 में लेंस डाउन, 1994 में कस्टम हाउस, 1993 में इंडस्ट्री हाउस, 1992 में मछुआ फल मंडी, 1991 में हावड़ा मछली बाजार में भयावह आग की घटना घटी चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा मौते बीते साल 23 मार्च के पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट अग्निकांड में हुई थी, यहां 46 लोग आग की भेंट चढ़ गए थे। बीते 20 सालों में आग की 11 बड़ी घटनाओं में इतने लोगों की मौत नहीं हुई, जितने लोग आमरी अग्निकांड में मारे गए।
16.12.11
राम भरोसे हैं शहर की कई अस्पतालें व इमरातें
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