शायद ऐसा ही था..!! (गीत)
प्यारे दोस्तों, ज़िंदगी की अंतिम क्षण की स्थिति में, तन को, आत्मा के प्रयाण का आभास होने लगता है, बस इसी स्थिति का बयान है, यह गीत, जो तन और अनंत आत्मा के संबंध को उजागर करता है, पर मन में ज़रा आशंका के साथ.."शायद ऐसा ही था..!!"
मैंने ढूँढ़ा, तुम कहीं नहीं थे, शायद ऐसा ही था..!!
बेशक पता सही था तुम्हारा, शायद ऐसा ही था..!!
अंतरा-१.
रिश्तों को निभाना, तुम्हीं से तो सीखा है मैंने..!!
हुई होगी मेरी ही कोई भूल, शायद ऐसा ही था..!!
मैंने ढूँढ़ा, तुम कहीं नहीं थे, शायद ऐसा ही था..!!
अंतरा- २.
उड़नतश्तरी सम साँसे, पूछती है निरंतर सवाल,
भीतर ठहरूँ या जाऊँ? सवाल, शायद ऐसा ही था..!!
मैंने ढूँढ़ा, तुम कहीं नहीं थे, शायद ऐसा ही था..!!
अंतरा-३.
वैसे भी, दर - ओ - दिवार कहाँ है, हमारे दरमियाँ..!!
हम, एक दूजे के घर निकले? शायद ऐसा ही था..!!
मैंने ढूँढ़ा, तुम कहीं नहीं थे, शायद ऐसा ही था..!!
अंतरा-४.
मानता हूँ मैं, हम दोनों एक ही ख़ुदा की देन हैं ।
दोनों से नाराज़ होगा वो? शायद ऐसा ही था..!!
मैंने ढूँढ़ा, तुम कहीं नहीं थे, शायद ऐसा ही था..!!
मैंने ढूँढ़ा, तुम कहीं नहीं थे, शायद ऐसा ही था..!!
बेशक पता सही था तुम्हारा, शायद ऐसा ही था..!!
मार्कण्ड दवे । दिनांक-१८-१२-२०११.
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