राजनीति के इस जंगल में
कैसे कैसे नाम बिक गए।
अच्छे खासे दाम ले गए,
कहते हैं बेदाम बिक गए।।
मन था जो वो मौन हो गया
संसद की गलियों में खो गया
मंहगाई के आगे देखो
शास्त्र बचा है अर्थ सो गया।
यह दस जनपथ है बाबू जी
बड़े- बड़े बलवान बिक गए।।
गांधी के अनुयायी हो तुम
देश के कैसे सिपाही हो तुम
सबकी गर्दन काट रहे हो
कितने बड़े कसाई हो तुम
ऊंची थी दुकान तुम्हारी
फीके भी पकवान बिक गए।।
एक बूढ़े को गरियाते हो
आवाज देश की झुठलाते हो
नौटंकी करने वालों को
देश की संसद में लाते हो
तुम तो क्या हो इस धरती पर
गद्दाफी-सद्दाम बिक गए।।
खुद भूखे - नंगे लगते हो
जनता को भूखा कहते हो
जिसके सेवक हो तुम सालों
से उसको धोखा देते हो
मालिक सोया रहा आज तक
घर के सारे धान बिक गए।।
जनता जब उल्टी बहती है
उलट पुलट सब कर देती है
जितना खाया है उगला कर
बाद एनीमा देती है
वक्त है समझ जाओ अच्छा है
फिर कहोगे, हे राम ! बिक गए
26.12.11
बिक गए
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment