Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

6.1.10

हार से हुई साल की शुरूआत


हैप्पी नहीँ इयर 20टेन


अपनी किस्मत की कहानी अगर कोई लिखना चाहता है तो वो उसी वक्त हार की ओर चल देता है । जीत उनके कदमों से कोसों दूर हो जाती है और मंजिल का तो अता-पता ही नहीं होता। मैं ये लाइन इसलिए लिख रहा हूं कि टीम इंडिया ने दावा किया था कि साल 20टेन की शुरूआत जीत के साथ करेंगे और दावा मजबूत भी दिखा क्योंकि बांग्लादेश में ट्राईसीरीज के दौरान टीम इंडिया अपना पहला मैच उस टीम के खिलाफ खेल रही थी जिसे 2009 के अंत में करारी शिकस्त दी थी। सबकी उम्मीदें भारत श्रीलंका के खिलाफ मुकाबले पर टिक गई। पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया ने अच्छा खासा स्कोर भी खड़ा कर दिया। 279 रन बनाकर टीम इंडिया ने श्रीलंका को हराने का ख्वाब भी देख लिया लेकिन माही की सेना ये भूल चुकी थी की पिछला सीरीज उन्होंने बल्लेबाजों के दम पर जीता था न कि गेंदबाजों की बदौलत। 280 रनों का पीछा करने उतरी श्रीलंकाई टीम दिलशान,जयवर्धने जयसूर्या,मेंडिस और मुरलीधरन के बगैर ये मैच आसानी से जीत ले गई। और सेनापति धोनी के अलावा उनके रणवीर खिलाड़ी देखते ही रह गए। ये थी साल 20टेन की शुरूआत में ही मिली करारी शिकस्त। मैच से पहले क्रिकेट फैंस से जीत का दावा करने वाले धोनी मैच के बाद अपनी गलतियों पर ध्यान न देकर हार के लिए ड्यू फैक्टर को जिम्मेदार ठहराने लगे । ये वही धोनी की वाणी है जिनके बारें में कहा जाता है कि किस्मत उनके दरवाजे पर सजदा करती है। तो क्या धोनी की किस्मत साल के शुरूआत में उनसे रूठ गई। या फिर धोनी उस लम्हें को भूल गए जब माही ने अपनी सेना के साथ न जाने कितने किले फतह किए। खैर हमारे एमएस साहब को भी समझ आ गया कि किस्तम के वो कब तक खाते रहेंगे कभी तो किस्मत उनसे आगे निकलेगी और हुआ भी वही हैप्पी न्यू ईयर अभी शुरू हुआ भी नहीं होगा कि माही की किस्मत उनसे आगे निकलना शुरू कर दिया। साल की पहली हार पर एक कहावत याद आ जाती है जिसे खासकर ग्रामीण इलाके में काफी बोली जाती है-बोहनी ही अच्छा नहीं हुआ तो दिन क्या खाक बेहतर गुजरेगा। ये कहावत खासकर बनिया समाज के लोग ज्यादा उपयोग में लातें है । यही हाल टीम इंडिया का हुआ है जीत से बोहनी नहीं हुई तो क्या खाक आगे की कहानी पहले से बताएंगे। खैर टीम इंडिया को जो होना था सो हो गया लेकिन पलटवार करने में माहिर माही के मतवाले का भरोसा भी नहीं होता क्योंकि सेनापति महेंद्र सिंह धोनी कभी भी अपनी रणनिती की धार दिखा सकतें है। लेकिन हम तो टीम इंडिया के रणबांकुरों से यही उम्मीद करतें है कि वो भारतीय फैंस का मनोबल यूं न तोड़ें ।


रजनीश मेहता
स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट

No comments: