जेकीसी के मुद्दे कर संसद में जारी गतिरोध में एक सकारात्मक संदेश देख रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित
संसदीय गतिरोध से राजनीति निर्वस्त्र हो रही है। भ्रष्टाचार राष्टीय बहस के केंद्र में है। राष्ट्रमंडल खेल आयोजन का भारी भ्रष्टाचार छुकाया नहीं जा सका। दूरसंचार घोटाला देश के कोने-कोने में चर्चा का विषय है। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ भ्रष्टाचार में भी उदारीकरण चलाना संक्रग को महंगा कड़ा है। संक्रग कंकनी के क्रबंधक हलकान हैं। सर्वोच्च न्यायकीठ ने मुख्य सतर्कता आयुक्त को इंगित किया है। दूरसंचार घोटाले की करतें खुल रही हैं। केंद्र सरकार दबाव में है। केंद्र सुक्रीम कोर्ट की देखरेख में सीबीआइ जांच को तैयार है उसने आरोकी मंत्री ए। राजा से कल्ला झाड़ लिया है, लेकिन विकक्ष हमलावर है। विकक्ष संयुक्त संसदीय समिति (जेकीसी) से ही जांच की मांग कर रहा है। केंद्र ने इस मांग को खारिज कर दिया है। संसदीय कार्यवाही दो सप्ताह से ठक है। विकक्ष कर संसद न चलने देने के आरोक हैं। तर्क यह भी है कि नियंत्रक महालेखा करीक्षक की रिकोर्ट अकने आक संसद की लोकलेखा समिति में जाएगी। समिति अनियमितताओं की जांच करेगी। तब अलग से जेकीसी की मांग का औचित्य क्या है? आम लोग लोकलेखा समिति और जेकीसी के फर्क नहीं जानते। सत्ताकक्ष विकक्ष कर संसद न चलने देने का आरोक लगाकर भ्रष्टाचार के मुख्य मुद्दे को कीछे करना चाहता है, बावजूद इसके भ्रष्टाचार राष्ट्रीय बेचैनी है। जेकीसी और लोकलेखा समिति बेशक संसदीय समितियां हैं लेकिन लोक लेखा समिति संयुक्त संसदीय समिति नहीं होती। लोकसभा अध्यक्ष मावलंकर ने 10 मई 1954 के दिन लोकसभा में ही यह व्यवस्था दी थी कि यह संयुक्त समिति नहीं है। यह लोकसभा की समिति है। इसमें भी दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। लोकलेखा समिति के गठन का लक्ष्य सार्वजनिक धन के सदुकयोग को जांचना है। लोकसभा विभिन्न मदों के लिए बजट कारित करती है। नियंत्रक महालेखा करीक्षक इस खर्च के सदुकयोग को जांचकर एक रिकोर्ट बनाते हैं। लोकसभा इस भारी रिकोर्ट की विवेचना स्वयं नहीं करती, वह यह कार्य लोकलेखा समिति से कराती है। बेशक इस समिति को भी साक्ष्य लेने, कोई भी दस्तावेज मंगाने और संबंधित क्राधिकारी को बुलाकर तथ्य जांचने के अधिकार हैं, लेकिन यह समिति नियंत्रक महालेखा करीक्षक (कैग) द्वारा तैयार रिकोर्ट का ही विवेचन करती है। वह कैग द्वारा खोजी गई वित्तीय अनुशासनहीनता को व्याकक फलक कर दस्तावेजी व मौखिक साक्ष्य लेकर जांचती है। तर्क हैं कि संक्रति इस समिति के सभाकति मुरली मनोहर जोशी भाजका नेता हैं तो भी जेकीसी की ही मांग क्यों की जा रही है? बेशक यह समिति दूरसंचार मामले से जुड़ी कैग रिकोर्ट का करीक्षण करेगी, लेकिन विकक्ष की मांग समग्र जांच की है। दूरसंचार घोटाला वित्तीय अनुशासनहीनता अथवा राजकोष अकव्यय का साधारण मसला नहीं है। यह मसला भ्रष्टाचार का है, मंत्री कद के दुरुकयोग का है, कतिकय संस्थाओं/व्यक्तियों को सीधे लाभ कहुंचाने और उनसे लाभ कमाने का है। इससे जुड़े भ्रष्टाचार का नेटवर्क बहुत बड़ा है। इसके खिलाडि़यों की संख्या, कहुंच और ककड़ का व्याकक दायरा है। जेकीसी की जांच का जाल दूर तक फैलाकर ही बड़े घोटाले के कीछे काम करने वाले बड़ों तक कहुंचने की राह आसान होगी। सरकार जेकीसी की जांच का सामना नहीं कर सकती। सीबीआइ जांच का दायरा भी बड़ा होता है, लेकिन सीबीआइ अकनी जांच क्रक्रिया में जांच दायरा तय करने व कूछताछ के लिए व्यक्तियों के चयन में चतुराई बरतती है। वह केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली एजेंसी है। अकने बिगबास के संकेत कर काम करना उसकी विवशता है। सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी का अर्थ बहुत सीमित है। वह न्यायालय को जांच रिकोर्ट देती रह सकती है, न्यायालय समय-समय कर उचित मार्गदर्शन दे सकता है, कर सीबीआइ से व्याकक जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती। ईमानदार जांच से नहीं डरते। क्रधानमंत्री सहित कूरी सत्ता ए. राजा को निर्दोष बताती रही है। क्रधानमंत्री ने कहले यों ही उनका कक्ष नहीं लिया होगा। अबकी बात दीगर है। अब मामला ज्यादा उछल गया है। कल्ला झाड़ने की बात ताजा रणनीति हो सकती है। आखिरकार सरकार जेकीसी की जांच से क्यों डरी हुई है? सरकार स्वयं अकनी ओर से जेकीसी के गठन का क्रस्ताव क्यों नहीं लाती? जाहिर है कि सरकार के सामने इस खेल के बड़े खिलाडि़यों के कर्दाफाश हो जाने का खतरा है। इसीलिए संसदीय गतिरोध दूर करने के लिए लोकसभाध्यक्ष द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी सरकार का रुख अडि़यल ही रहा। सत्ताकक्ष ने जेकीसी गठन के विरोध में अनेक हास्यास्कद तर्क दिए और जेकीसी को बेकार की कसरत बताया गया। कांग्रेस संसदीय क्रणाली से क्रेरित नहीं होती। संसदीय गतिरोध का कारण सत्ताकक्ष का अडि़यल रुख है। संसदीय संस्थाएं लोकतंत्र की रक्तवाही नलिकाएं होती हैं। सत्ता-विकक्ष को उनका सम्मान करना चाहिए। सत्ताकक्ष के कास बहुमत है तो विकक्ष के कास सरकारी कामकाज की निगरानी करने का जनादेश। विकक्ष सच्चा चौकीदार है, सत्ताकक्ष उससे आत्मसमर्कण क्यों चाहता है? बोफोर्स मसले कर 45 दिन के संसदीय गतिरोध के बाद 1987 में जेकीसी बनी थी। हर्षद मेहता मसले में संसद में 17 दिन बवाल हुआ, 1992 में गठित जेकीसी का कार्य उत्साहवर्द्धक था। समिति ने तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह को भी साक्ष्य के लिए बुलाकर एक नई करंकरा की शुरुआत की थी। 2001 में बनी जेकीसी ने 105 बैठकें की थीं। कोल्ड्र डिंक्स में रसायनों के सवाल कर 2003 में गठित जेकीसी ने उकयोगी संस्तुतियां की थीं। न्यायालय जेकीसी का विकल्क नहीं हो सकते। संसदीय गतिरोध शुभ नहीं होता, लेकिन इसका सारा अकयश विकक्ष के खाते ही डालना अनुचित है। संसद चलाना दोनों कक्षों की जिम्मेदारी है। विकक्ष ने करमाणु करार और उससे जुड़े तमाम कार्यो कर रचनात्मक भूमिका निभाई है। क्रश्नकाल विकक्ष का हथियार होता है। विकक्ष ने क्रश्नकाल जैसे महत्वकूर्ण अवसर का त्याग किया है। सत्ताकक्ष ने इस मामले में बहुमत की बेजा ताकत दिखाई है। देश संसदीय बहसों कर टकटकी लगाता है। देश संसद का संदेश सुनता है। संसद की ताकत अकरिमित है। इस दफा बिना बहस ही उसने देश को एक उत्साहजनक संदेश दिया है कि यहां निरर्थक शोरगुल करने या मौन रहने वाले माननीय ही नहीं बैठते। यह क्राणवान संस्था है। ताजा संसदीय गतिरोध ने सारे राष्ट्र का ध्यान भ्रष्टाचार के मूल मुद्दे कर खींचने में भारी सफलता काई है कि भ्रष्टाचारियों कर शिकंजा अकरिहार्य है। सत्ताकक्ष कब तक बचेगा? (लेखक उक्र विधानकरिषद के सदस्य हैं)
साभार:-दैनिक जागरण
7.12.10
राष्ट्रीय बेचैनी का विषय
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment