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2.1.11

कला और कलाकार

कला और कलाकार
दिनांक – 31/12/2010
राज्य ललित कला एकाडमी लखनऊ मे दिनांक – 1 जनवरी 2011 से लगने वाली कला प्रदर्शनी मे भाग लेने वाले हमारे सभी कलाकार साथीयो को एवं राजिव तिवारी जी, राम बाबू , अनिल शर्मा (दैनिक हिन्दुस्तान) राजेन्द्र करन, को नव बर्ष की सुभकामनाओं के साथ, सादर समर्पित ।
एक कलाकार होना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपल्बधि है। कलाएँ भी बहुत तरह की होती हैं और कलाकार भी बहुत हैं लेकिन कला को समझने वालों की संख्या उसकी तुलना में कम हैं। कला का शाब्दिक अर्थ- कला- Arts , आकार- shape, जो व्यक्ति अपने अन्दर के कला और दृश्य को देख कर अनुभव होने वाली स्थिति या अवस्था को अपने अन्दर से उभार कर बाहर लाने वाला ही सही मायने में एक कलाकार है। एक कलाकार के प्रस्तुति में उसकी क्षमता के अनुसार प्रदर्शित करने का ढंग, प्रस्तुति को मूर्तरुप दे सकने की क्षमता एवं प्रस्तुति की जीवंतता उसके कला के स्तर का मापदन्ड होने के साथ ही साथ कलाकार को शीर्ष तक पहुँचाने का मार्ग प्रसस्थ करता है। दरअसल सभी कलाकारों में मुखतः एक अवस्था सामान्य सी पाई जाती है। वह है, सोचने समझने के स्तर की उच्चता में अन्तर, खुद समझ कर और अनुभव कर अपने कलाकृति के माध्यम से वैसे का वैसा ही उतार कर रख देने की क्षमता या उस स्तर तक अपने आप को पहुँचा पाने की क्षमता की कमी अधिक्तर कलाकारो में एक मुख्य कमी के रुप में एक जैसी है। किसी भी कला को जानने और सीखने के लिए सबसे पहली शर्त यह है कि धैर्य रखना। यह एक साधना है, जो निरन्तर एक ही काम को जब तक सही न बन जाये, सही न करने लगें या सही ना हो जाये तब तक निरन्तर जारी रखने का प्रयास करते रहना ही साधना है। इस तरह व्यक्ति के अन्दर धैर्य बनाये रखने की क्षमता का विकास होता है। दूसरी क्षमता बह है कि किसी भी दृश्य या किसी भी चीज को देख कर आपके सम्पूर्ण अदृश्य अर्न्तआत्मा उसमें प्रवेश कर नस-नस की जानकारी कर वापस पुनः अपनी अवस्था में लौट कर हूबहू वैसा का वैसा बना देना या पेश करना यह मनुष्य के उस कला का चर्मोत्कर्ष अवस्था है। यहाँ तक पहुँच कर एक कलाकार एवं उसकी कला, कला में विलीन होकर अमरत्व को प्राप्त करता है।
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