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5.1.11

ख़ुशी में “बेटे” की बली !


बात त्योहार की हो या फिर ख़ुशी के मौके की आज बहुतेरे मौकों पर बेहतरीन ब्रांडेड लाजबाब गरम मशालों के बिच मुर्गे या बकरी के मांस को उबलते कहीं भी आसानी से देखा जा सकता है यानि हम इन्शान कितने स्वार्थी हैं की अपनी एक छोटी सी ख़ुशी में उन बेजुबानो की बली चढ़ा देते है,आखिर उनका दोष क्या रहता है? उन्होंने हम इन्शानों का क्या बिगाड़ रख्खा है? क्या सिर्फ इस लिए की वो बेजुबान हैं या फिर जानवर? जो हम कभी भी उनके घर को उजाड़ देने के साथ-साथ उनके बच्चो को अनाथ कर देते है आखिर वो भी तो किसी के माँ-बाप,भाई-बहन,या फिर प्यारे बच्चे होते हैं!
और फिर बात अगर बकरी और मुर्गे की की जाय तो ऐसा लगता है की किसी जन्म में इस प्रजाति ने हम इन्शानों का कुछ ज्यादा ही बिगाड़ रख्खा है जिसका बदला लेने को इन्शान हमेशा तैयार दिखता है क्योंकि हर जगह केवल पानी को पीकर अपने जीवन को जीने वाली अनेकों प्रजाति के मछलियों के साथ-साथ सिर्फ इन्ही दो प्रजातियों का बोलबाला दिखता है अब तो शहरों में इसके लिए किनारे एक अलग मंडी(बाजार) का स्थान निर्धारित कर दिया जा रहा है जहाँ इन बेजुबानों को बड़ी आसानी से बेजान कर दिया जाता है और अगर गलती से कोई सुद्ध शाकाहारी इनके मंडी के तरफ पहुँच जाये तो कुछ दिनों तक तबियत ख़राब होना तो तय ही है! हाँ तो बात हो रही थी अदद सी ख़ुशी के मौकों पर इन बेजुबानों की आसानी से बली चढ़ा देने की,आखिर क्यों हम इन्शानों के लिए इनकी जान इतनी सस्ती होती है? जबकि इस धरती पर दिखने और जीवन यापन करने वाले हर एक प्राणी,जीव,जंतु सबको जन्म देने वाला भगवान ही है और उसने जब बिना किसी भेद-भाव के सिर्फ रूप रंग और आकारों को अलग अलग करते हुए सबके अन्दर के मांस को एक सामान ही बनाने के साथ साथ इस धरती पर जीने के लिए सबको सामान अधिकार भी दिए है तो फिर ऐसे में इस धरती पर इन जानवरों की जान और मांस का ये हाल क्यों? क्यों नहीं आखिर इन सबका मांस एक जैसा ही होता है और फिर सब इसी धरती पे ही तो निवास करते हैं,सब अपने माँ के पेट से ही जन्म लेते हैं और सब इस लम्बे चौड़े आकाश के निचे ही घूमते फिरते रहते हैं,यहाँ तक की इन सबके साथ-साथ सबके अन्दर एक ही रंग का खून दौड़ता है जिससे यह सभी जिव अपने-अपने बच्चों को सींच कर बड़ा करते व हमेशा खुश रहने की लालशा अपने अन्दर रखते हैं! आखिर हर माँ-बाप अपने बच्चे को अपने जान से ज्यादा प्यार करते हैं अब वो चाहे जानवर हों या फिर मनुष्य! आखिर जहाँ एक तरफ एक मुर्गा या बकरी जो अक्सर इन्शानों के ख़ुशी के मौके पर महफ़िल के अन्दर थाली की शान को बढ़ातें है वहीँ दूसरी तरफ वो भी तो उस दिन अपने परिवार से बिछ्द्ती होंगे और उस दिन से लेकर कई दिनों तक उनके परिवार वालों के साथ-साथ उनके मित्रगण की आँखे टक-टकी लगाये उनके आने के इंतजार में बैठी रहती होंगी इस आस में की उसके बिच रहने वाला आज अचानक कहाँ चला गया लेकिन ऐसे ही आस में बैठे एक कई दिन को बिताते हुए उसे क्या पता रहता है की एक दिन सबसे बिछड़ने का नंबर उसका खुद का आने वाला है! जरा सोचिये अपने प्रियजनों जैसे बेटे-बेटी,माँ-बाप,भाई-बहन व अन्य परिवार जनों के साथ-साथ किसी भी रिश्तेदार के तनिक भी जख्मी होने का समाचार सुनते ही हम इन्शानों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और फ़ौरन उसके स्वस्थ होने की कामना करना सुरु कर देते हैं आखिर यही हाल उन बेजुबानो का भी तो होता होगा जिसका एक सदस्य उसके बीच से जब गायब होता होगा और फिर वो बेजुबान अपने अंतिम शांश तक सिर्फ इसी का बात उत्तर ढूंढते रहते होंगे की आखिर उनका गुनाह क्या है जो उनके जान के साथ इन्शान हर वक्त जब चाहे निर्दयता के साथ पेश आता है!

6 comments:

Ajit Kumar Mishra said...

Nakkar Khaney main Tuti kee Abaaz.

Shalini kaushik said...

marmik abhivyakti.ye to insani fitrat hai aur kahne ko insan ka hridaya bhavpoorn hota hai kintu ve bhi insan hi hain jo in bhavon ki hansi udate hain aur anya praniyon ko khud se neech samjhte hain jabki durga saptshati me bhi kaha gaya hai ki anya prani bi vaise hi samjhdar hote hain jaise insan.par insan aisa nahi manta aur aise vibhats kritya karta rahta hai...

Minakshi Pant said...

बेजुबानो के प्रति आपका ये प्यार , लगाव देख कर बहुत ख़ुशी हुई क्युकी आजकल तो इन्सान ही इन्सान से प्यार नहीं करता और आपका इन बेजुबानो के प्रति प्यार देख कर बहुत अच्छा लगा दोस्त ! काश सभी एसा सोचते क्युकी आज का इन्सान तो जुबाँ वालो से नहीं डरता फिर ये तो बेजुबान हैं !
सार्थक पोस्ट बधाई ! नव वर्ष मंगलमय हो !

Anonymous said...

THIK KAHA APNE . AGAR MANAV BHAGWAN KA BANYA HUA SABSE BUDHIMAN PRANI HAI TO JANWARO KI BHALAI KE LIYE KUCH KAR KE DIKHYE. ITS MY CHALLENGE TO ALL HUMAN BEING.

Unknown said...

आपने तो बस मेरे दिल की बात कह दी है।

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

अजित कुमार जी से मैं भी सहमत हूँ किन्तु हाँथ पर हाँथ रख कर भी तो नहीं बैठा जा सकता...जिनके मुंह रक्त लग चूका हो उन्हें दूध नहीं रास आ सकता