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6.1.11

अप्राकृतिक आदमी
   प्रथ्वी की सुगंध ,आकाश के  नाद ,अग्नि के स्वरुप, जल के रस और वायु के स्पर्श का जब एक विशेष अनुपात में समिश्रण  हुआ तो प्रकृति जन्मी !प्राण का उदभव हुआ !जीवन का प्रादुर्भाव हुआ !मनुष्यता ने आँखें खोलीं और एक प्राकृतिक घटना घटी -मनुष्य होने की !एक प्राकृतिक मनुष्य !मनुष्य के अंतर्मन में प्रेम उपजा तो मनुष्यता ने आकार लिया !लेकिन विडम्बना आज वही मनुष्यता खतरे के निशान से बहुत ऊपर उठ चुकी है !आज मनुष्य अपने पतन की पराकाष्ठा में जी रहा है !मनुष्य  का मौलिक स्वभाव कहीं खो गया है ! कारण -मनुष्य प्रकृति से दूर हो गया है !अपने प्राकृतिक स्वभाव से विमुख हो गया है !जीवन प्राणमय है अगर प्राकृतिक है !प्रकृति ही है जो मनुष्य को मनुष्य होने का बोध कराती है !प्रकृति के साथ सहज भाव से जीने का नाम है मनुष्यता !साक्षी भाव से प्राकृतिक अनुसरण ही जीवन है !प्रकृति के साथ संबंधों में जीवन का रस है,क्यों की अनुबंधों में जीवन का फूल कुम्हला जाता है !लेकिन मनुष्य ने प्रकृति के साथ भी अनुबंध बना लिए हें !मनुष्य अप्राकृतिक हो गया है ! कल के किसी विदेशी अखबार में एक चौकाने वाली घटना पढ़ी !एक पत्नी ने अपने पति के विरुद्ध मुकद्दमा दायर किया ! आरोप-पत्र में लिखा था की उसका पति उसे रोबोट के साथ हम-बिस्तर होने के लिए कहता है !और पति का तर्क भी कम चौकाने वाला नहीं था ! पति ने ज़ज़ को दलील दी की वह हारा थका घर आता है ,रोज़ रोज़ संसर्ग के आमंत्रणों को वह परिणाम नहीं दे सकता ,अतः वह एक रोबोट खरीद लाया ! यह क्या अनैतिक है ?
                              
           यह मात्र घटना नहीं , एक दस्तक है आने वाले कल की घटनायों की !एक इशारा है मनुष्य के मशीन होने का !और हो सकता है कल पश्चिम का सविधान इसे मान्यता भी दे दे ! लेकिन प्रकृति का संविधान अप्राकृतिक क्र्त्यों  को कभी स्वीकार नहीं करता ! निसर्ग के नियम सदैव धनात्मक होते हैं !गहरे अर्थों में देखें तो मनुष्य भी रोबोट ही है !क्यों की प्रेम नहीं तो क्या अर्थ ऐसे संसर्ग का !सूत्र को अगर गहराई से ले तो ऐसे मनुष्यों से रोबोट बहतर है !धनात्मक आकर्षण न सही ,ऋणात्मक आवेश तो नहीं होगा !स्वीकृति न सही ,बलात्कार तो नहीं होगा !प्रेम न सही ,द्वेष तो नहीं होगा !करुणा न सही ,घ्रणा तो नहीं होगी ! समर्पण न सही ,आक्रमण तो नहीं होगा !
                              
          मनुष्य को मनुष्य के प्राकृतिक स्वभाव में लोटना होगा ! तुम्हें ऐसे गुरुओं को तलाशना होगा जो तुमसे तुम्हारा तथा-कथित धर्म छीन लें ! वो धर्म जो तुम पर बाबा और बापुओं ने थोपा है !ऐसी आध्यात्मिक प्रयोगशालाओं को तलाशना होगा जिनके प्रवेश द्वार से तुम हिन्दू ,मुस्लिम या ईसाई बन कर प्रवेश तो कर सको लेकिन निकास द्वार से निकलो तो विशुद्ध मानव बनकर ! अब लामा  ,पादरियों , मुल्लाओं  और पंडितों के आवरण को उतारने  का वक़्त आ गया है ! नकली जीवन जिए तो अपने प्राकृतिक स्वभाव को भी भूल जायोगे !
                              
         एक बार लन्दन के थीएटर में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया !प्रतियोगिता में प्रतिभागियों को चार्ली चापलिन का अभिनय करना था ! इस प्रतियोगिता में स्वयंम चार्ली चैपलिन भी छदम वेश में प्रतिभागी बन गएँ ! दर्शक और ज़ज़ ,दोनों ही अनभिज्ञ थे क़ि इस प्रतियोगिता में चार्ली चैपलिन भी शरीक हैं ! निर्णय के बाद एक अदभुत परिणाम निकला ! अपनी ही नक़ल करने में चार्ली चैपलिन तीसरे नंबर पर आये ! मौलिकता को दोहराया नहीं जा सकता ! नक़ल को कितनी ही बार एक ही रूप में पेश किया जा सकता है लेकिन  प्राकृतिक स्वभाव देश काल और परिस्थितियों के अनुसार बदलता है ! प्रकृति में निरंतरता है ! नक़ल में ठहराव है !आज अगर कृष्ण उतर आयें तो शायद वो भी गीता को दोबारा उसका पूर्व स्वरुप न दे पायें ,क्यों कि गीता के लिए अर्जुन चाहिए ,महाभारत का युद्ध चाहिए !गीता कारण का परिणाम है !अकारण ऐसी प्राण-मय कृति का जन्म नहीं हो सकता !लेकिन आज के नक़ली गीता वाचक तो कृष्ण को भी गीता-वाचन प्रतियोगिता में हरा देंगें !गीता कि प्रकृति तो उसकी आत्मा में है !कंठों से निकली गीता आत्मा में गहरे नहीं उतर सकती !गीता तो तुम्हारे अंतर्तम का विषय है !आख्यान,व्याख्यान ,और टीकाएँ करके कोई बाबा या बापू अवश्य बन सकते हो ,लेकिन गीता से विमुख ही रहोगे !गीता आवरण में नहीं आचरण होनी चाहिए !
                              
      प्रकृति के संगीत में गहरे उतरे तो ध्यान अवश्य उपजेगा !प्रकृति जीवन का संगीत है जो तुम्हारे  ह्रदय के स्पंदन में गर्भावस्था से  प्रारंभ होकर आखिरी धड़कन तक बसता है !प्राकृतिक ब्रह्मनाद में डूबे तो चाहकर भी अजान और
शबद में अंतर न कर पायोगे !धारणायों और अवधार्णायों की मरीचिका से निकले तो राबिया में भी मीरा को देख पायोगे !प्रकृति के प्रेम का नाद सुनोगे तो बुद्ध में भी ईसा-मसीह  नज़र आयेंगे ! अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !
प्रशांत योगी ,यथार्थ मेडिटेशन इंटरनेश्नल ,धर्मशाला ( हि. प्र. ) 094188 41999

4 comments:

Shikha Kaushik said...

soye huye antarman ko jhakjhorne me safal post .aabhar

PRASHANT YOGI said...

ध्यान की धरती पर खड़े होकर, मैं बुला रहा हूँ सारी
मनुष्यता को ,कि धारणाओं और अव-धारणाओं के
बोझ को उतार कर वे यथार्थ के उस लोक की नागरिकता
लें जहां धर्म और सम्प्रदाय की कोई जंजीरें न हों !जहां
सिर्फ प्रेम के फूल खिलते हों ,करुणा के ह्रदय में !जहां अनु-
भूतियों के उपनिषद खुलते हों ,अभिव्यक्ति के आँगन में !
जहां आयतें और ऋचाएं बाहों में बाहें डाले शबद के घर
जाकर प्रेयर करती हों !जहां भक्ति के झूले पर बैठी मीरा
को राबिया झुलाती हो !जहां समाधिस्थ बुद्ध की चेतना
में क्राइस्ट की ज्योति उतर आती हो ! मेरे आध्यात्मिक
आमंत्रण !.............................................प्रशांत योगी

PRASHANT YOGI said...

ध्यान की धरती पर खड़े होकर, मैं बुला रहा हूँ सारी
मनुष्यता को ,कि धारणाओं और अव-धारणाओं के
बोझ को उतार कर वे यथार्थ के उस लोक की नागरिकता
लें जहां धर्म और सम्प्रदाय की कोई जंजीरें न हों !जहां
सिर्फ प्रेम के फूल खिलते हों ,करुणा के ह्रदय में !जहां अनु-
भूतियों के उपनिषद खुलते हों ,अभिव्यक्ति के आँगन में !
जहां आयतें और ऋचाएं बाहों में बाहें डाले शबद के घर
जाकर प्रेयर करती हों !जहां भक्ति के झूले पर बैठी मीरा
को राबिया झुलाती हो !जहां समाधिस्थ बुद्ध की चेतना
में क्राइस्ट की ज्योति उतर आती हो ! मेरे आध्यात्मिक
आमंत्रण !.............................................प्रशांत योगी

PRASHANT YOGI said...

DHANYAVAAD SHIKHA JEE
PRASHANT