नई सदी का नया सवेरा नया वर्ष,नया उत्साह,नया हर्ष,नई उम्मीदें,आशा की नई किरण....जो कल था वो आज नहीं रहा,और जो आज समय है वो कल नहीं रहेगा...वक़्त तो अपनी रफ़्तार से दौड़ता ही रहता है....लेकिन जो वक़्त कि रफ़्तार के साथ कदम मिला के चला,वही तो बनता है सिकंदर... लेकिन पत्रकारिता विश्वविध्यालय का एक योद्धा दौड़ने के पहले ही कदम ठिठका कर खड़ा हो गया....दोस्तों ने कहा..तुझे चलना होगा....तुझे पत्रकारिता जगत को नया आयाम देना है...तुझे बोलना होगा...उठाना होगा...मौत से जीतना होगा....लड़ना है जमाने से....देखो पूरा विश्वविद्यालय बुला रहा है तुम्हे...उठो मनेन्द्र....चलो....परिक्षये ख़त्म हुई....घर पर सब इंतजार कर रहे है.......जाने नहीं देंगे तुझे...जाने तुझे देंगे नहीं....मां ने ख़त में क्या लिखा था...जिए तू जुग-जुग ये कहा था....चार पल भी जी न पाया तू........लेकिन वो ऐसे नीद के आगोश में सोया की फिर उठ नहीं पाया......
अभी कल की ही तो बात है,जब मैंने नई सदी का नया सवेरा की मंगल कामना की थी....मगर अफ़सोस की पत्रकारिता विश्वविद्यालय से समय ने एक ऐसा योद्धा छीना....जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता....
भोपाल के रेडक्रास अस्पताल में इलाज के दौरान पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एक होनहार छात्र हम सबको छोड़कर चला गया. वह विज्ञान पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था. छात्र के सहपाठियों ने इलाज करने वाले डाक्टर पर गलत इंजेक्शन लगाने का आरोप लगाया है. डाक्टर उक्त छात्र की मौत हार्ट अटैक के चलते होने की आशंका जता रहे है. पुलिस ने छात्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए हमीदिया अस्पताल भेज दिया है.
रचना नगर में रहने वाले छात्र मनेंद्र पांडेय (28 वर्ष) को अचानक सीने में दर्द हुआ. जिसके बाद उसे इलाज के लिए रेडक्रास अस्पताल में भर्ती कराया गया. दर्द तेज होने पर वहां मौजूद डाक्टर अजय सिंह ने उसे इंजेक्शन लगाया. इसके करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद मनेंद्र की मौत हो गई. मनेंद्र को इसके पहले भी सीने में दर्द हुआ था. जिसे कम करने के लिए उसने दर्द निवारक दवाएं ली थी.
पता नहीं इस नई सदी के आगाज में हम लोगो से कहाँ गलती हुई कि हमारा एक मित्र ऐसे रूठा....कि पूरा विश्वविद्यालय उसके कदमो में बैठा है...पर वह अड़ियल है....किसी कि बात नहीं मान रहा है.....वो हमसे दूर जाने की ठान चुका है....देखो कैसे हाथ छुड़ा के भाग रहा है.....कोई रोको उसे...कोई तो मनाओ.....कोई तो होगा जिसकी बात माने.....एकलव्य जी आप ही समझाए......पी.पी.सर आप ही आदेश दो इसे...आपकी बात नहीं काटेगा....
लेकिन शायद पी.पी.सर में भी अब मनेन्द्र को आदेश देने की ताकत नहीं बची....सबके गले रुंधे है....सबको मनेन्द्र से विछोह का दुःख है.....लौट आओ मनेन्द्र ...जुबान पर यही लब्ज है.....लेकिन वो जा रहा है...हम सबको अकेला छोड़कर.....
लौट आओ मनेन्द्र....हम चाय पीने चलेगे.....
-कृष्ण कुमार द्विवेदी
छात्र(मा.रा.प.विवि,भोपाल)
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