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21.1.11

एक अभिन्न मित्र की कलम से........


एक अभिन्न मित्र की कलम से.....

मैं क्या हूँ....कब हूँ 
और क्यों हूं....??
मैं कौन हूं....
और आप हैं कौन....??
खिलौना है...मोबाइल है...
आलमारी है....झरोखा है....
मतलब क्या है....
और क्या नहीं है....??
कोई मेरा है.....
या मैं किसी का हूं.....??
अरबों मैं हैं यहाँ....
इसमें मैं कहाँ हूँ...??
खींचतान....उठापटक
समुद्र की उठती-गिरती लहरें....
मन समुद्र है या अनंत...??
जय...पराजय...
हार.....जीत....
ख़ुशी एवं गम....
हरी अनंत....
हरी कथा अनंता......
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******चिन्मय भारद्वाज 
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1 comment:

Kailash Sharma said...

बहुत गहन चिंतन..बहुत सुन्दर