* बड़ी उम्मीदें हैं अभी दलितों से । या फिर कुछ कायस्थों से ,यदि जाति के सन्दर्भ में सोचें तो । दलितों से क्रांति की उम्मीद तो स्वतः स्पष्ट है । पर कायस्थों से उम्मीद इसलिए है कि वे परंपरागत रूप से शिक्षित , कथित प्रगतिशील और आधे मुसलमान कहे जाते हैं, जो उन्हें भारतीय सेकुलरवाद के अनुकूल बनाता है । लेकिन यह क्या ? ये तो आजकल ब्राह्मणों का भी कान काटने में जुटे हैं । जितना पूजा -पाठ , तीर्थ यात्रायें , धार्मिक कर्म कांड , ढकोसलों का पालन , गुरुओं की चेलाही , चन्दन टीका की पाबंदी , और तमाम हिन्दू दकियानूसी और पोंगा पंथी को वे ढो रहे हैं , क्या कोई ब्राह्मण उतना करता होगा । तिस पर उन्हें अपने कायस्थ होने पर झूठा गर्व भी है । कायस्थ बने रहने के लिए उन्हें वैज्ञानिक मिजाजी होना , और जड़ता , पाखण्ड , अंधविश्वास , जादू टोना , भूत प्रेत , गृह नक्षत्र ,हस्तरेखा , भविष्य वाणी , पूजा -पाठ के दिखावे से दूर रहना होगा । सारांशतः उन्हें थोड़ा अँगरेज़ , थोड़ा मुसलमान बनना होगा , जिस गुण के बल पर इन्होने दोनों के शासन कालों में खूब तरक्की की , और समाज - राज्य के शीर्ष पर रहे । इसके साथ उन्हें एक बात और माननी पड़ेगी कि वे दलित श्रेणी से ही सम्बंधित हैं , भले उनका दावा न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया । अतः उन्हें दलितों के साथ पूर्ण साथ और सामंजस्य बनाकर रहना होगा । #
24.9.11
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9 comments:
madherchod , sun bhosadi ki aulad :-
Brahamno ne jitni pustake likhi unme dusari jatiyo ko hamesha niche dikhaya , durvyavhar kiya , koi bhi brahaman neta aaj tak sahi nahi hua , sab madherchod hain.
kshatriyo me to sab varn sankar bache hain , asli to parsuram ne mar diye ,
tu bhi koi varn sankar ki aulad hai jo aisi posting kar raha ,bhosadi ke tere bap dada ne kaystho ke yaha gulami ki hai , pata laga le ,, aur apna address de teri ka balatakar karne aata hu mai
भारत में जब मुस्लिम शासन आया तो ज्यादा से ज्यादा उच्च पदों वाले हिन्दुओ ने डर के वजह से , धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गए उनमे ब्राहमण ,क्षत्रिय को मियां ,सेख कुरैशी ,आदि नाम दिए गए ,
कुछ कायस्थ भी उनमे ही थे , सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बनने वालो में दलित ही रहे और आज भी धर्म परिवर्तन कर रहे हैं | लेकिन कुछ तेरे जैसे माधरचोद लोगो के वजह से हिन्दुओ में फुट है , ब्राहमण तो भेदभाव करने में इतने माहिर निकले की दलितों ने खुद को हिन्दू मानना ही छोड़ दिया ,
लेकिन ये सब बाते तेरे समझ नहीं आएगी क्यों की तू वर्ण संकर (अवैध तरीके से पैदा हुआ ) है |
kayastho के bare में कुछ jan le madherchod
चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु ।
पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ ऋगवेद ८/२१/१८
श्री चित्रगुप्त उत्पत्ति भविष्य पुराण - आधारित
पुलस्त्य - भीष्म पितामह संवाद |
भीष्म - पितामह ने पुलस्त्य जी से प्रशन किया कि हे महाप्रज्ञ अब मै निश्चय सुनना चाहता हूँ कि कायस्थ तीनो लोक में विख्यात और दानी, माता - पिता कि भक्ति परायण, ज्ञान वान और सर्व शास्त्रों, कविता, अलंकार के जानने वाले, अपनी जाति और ब्राह्मणों के पालक किसने रचे है आप मेरे से कहिए ? पुलस्त्य जी ने कहा कि हे गंगा पुत्र भीष्म, जिस अव्यक्त पुरुष से लोक पितामह ब्रह्माजी हुए, उन्होंने जैसे वैश्य को रचा वह सुनो | ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मण, भुजाओ से क्षत्री, जंघा से वैश्य व पादों से शुद्र रचे | द्विपदा, चतुष्पदा, षट- पदा, पक्षी पशु आदि शरीर से रचे | चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह नक्षत्रादी से सृष्टि कि रचना की तब अपने ज्येष्ठ पुत्र कश्यप जी को प्रजा रचने को कहा एवं स्वयं ११ हज़ार वर्ष कि समाधि लगाकर कतल पर बैठ गए | जब ब्रह्माजी ने समाधि भंग कि तो उनके सम्मुख जल में से निकल कर पुरुष श्याम-स्वरुप, कमल नयन, शंख-ग्रीव, पुष्ट शरीर, चन्द्रमा की सी कान्ति मुख वाला, हाथ में लेखनी, दवात, खड़िया कि डली लिए हुए सव्यथ्त जन्म ब्रह्माजी के सम्मुख खड़ा हुआ | उसने अपनी उत्पत्ति ब्रह्माजी के शरीर से बतायी एवं अपना नामकरण करने की प्रार्थना की तब ब्रह्माजी ने कहा कि हे पुत्र | तू जो पुण्य रूप होकर मेरी काया में स्थित रहा इससे तेरी कायस्थ जाति संसार प्रसिद्ध हो | और विचित्र रूप से मेरे शरीर में छिपे रहने के कारण तेरा नाम चित्रगुप्त प्रसिद्ध होगा | तू धर्मराज के पुर में धर्माधर्म का विचार करने के लिए वास कर |
पदुमपुराण-आधारित
पूर्ण-प्रलय के पश्चात मूल प्रकृति के सिवाए कुछ भी नहीं रहता जो सत्यम कहलाती है | समय आने पर स्वयं भू परमात्मा विष्णु तपोलोक को पधारे | यही शक्ति महा-ब्रह्मा कहलाई जो जनः लोक पानी है, मह लोक जहाँ वायु है पर स्थापित होकर "क्षीर सागर" में शेष सैय्या पर शयन कर रहे हैं | उन्ही परमात्मा नारायण, जिनका पानी में घर है के नाभि प्रदेश केंद्र से एक कमल "पृथ्वी" पैदा हुआ उस पर उसी महाब्रह्मा कि अंश नाम शक्ति कहलाई जिसके चार मुख, (चारों ओर प्रकाशित होने से) हुए | उसी सशक्ति के संकल्प से १४ मनु, रूद्र और धर्म आदि हुए | इन्ही मनुओं में श्री चित्रगुप्त हुए और सारी प्रजा भी उत्पन्न हुई |
कुछ काल पर्यंत चारो वर्ण धर्म से गिरे तो धर्मराज जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि श्रृष्टि में मनुष्य अनेक कुकर्मो में फंस गए हैं उनका धर्म कर्म लिखना मेरी सामर्थ्य के बहार है अतः कोई मंत्री दीजिये |
ब्रह्माजी ने ग्यारह हज़ार दिव्य वर्ष समाधि लगायी | तब ब्रह्मा जी के शरीर से बड़ी भुजा, कमल के से नेत्र, शंखाकार गर्दन व चन्द्रमा की सी आभा वाला लेखनी, पट्टी, दवात लिए पुरुष उत्पन्न हुआ | ब्रह्मा जी ने उनका नाम चित्रगुप्त रखा और कहा की तुम सबके धर्मा-धर्म जानने वाले होगे, काल की गति जानने वाले होगे | मेरी काया में स्थित रहने के कारण कायस्थ कहलाओगे | तुम्हारा वर्ण यम होगा, लेखनी शस्त्र दिया जिससे छत्तर धारी कहलायेगा |
तब ब्रह्मा जी ने आज्ञा दी की हे पुत्र अब तुम पृथ्वी पर जाकर अवंतिकापुरी (अदृश्यपुरी) में तपस्या करो जिसके पूर्ण होने पर तुमको वह शक्ति मिलेगी जिसके लिए तुम उत्पन्न हुए हो | तपस्या पूर्ण होने पर ब्रह्मा जी तैंतीस कोटि देवता अट्ठासी हज़ार ऋषियों सहित वहां पहुंचे और वरदान दिया की तुम अमर रहकर जीवों की काया में स्थित रहकर उनके कर्मा-कर्म जाने वाले होकर उसका हिसाब लिखने में समर्थ हो | श्री चित्रगुप्त पुनः ध्यान मग्न हो गए |
पद्मपुराण-उत्तराखंड, धर्म शास्त्र, अहिल्या कामधेनु एवं यम संहिता आधारित-
एक समय शिव पारवती कैलाश से विचरते हुए सूर्या मुनि के आश्रम पर पधारे | सूर्या मुनि ने आदर सहित आसन दे कर चरणामृत लिया |
यहाँ शिव जी ने सुशर्मा ऋषि की पुत्री शोभा मति को देख, सूर्य-मुनि से उसका परिचय प्राप्त किया एवं विचार किया की यह कन्या श्री चित्रगुप्त जी अवंतिकापुरी निवासी के योग्य है | उनकी यह सलाह सबको पसंद आई तब सूर्य मुनि को शिव जी ने आज्ञा दी कि वह सकुटुम्ब अवंतिकापुरी चलें | तब सब मिल कर अवंतिकापुरी सुशर्मा जी के आश्रम पर आये एवं सारा वृत्तांत कहा और कहा और विवाह का प्रबंध कराया |
श्री शिव जी ने गुप्त सन्देश द्वारा ब्रह्मादी देवताओं को याद किया एवं विवाह कि तैयारी की | इस प्रकार सानंद सुशर्मा ऋषि कन्या शोभामति (ऐरावती) श्री चित्रगुप्त जी को ब्याह दी गयी | उसी समय सूय-मुनि के पुत्र सिराद्ध-देव की कन्या एवं शोभामति की सखी नंदिनी (दक्षिणा)
भी चित्रगुप्त जी के साथ ब्याह दी गयी |
यह दोनों देवी दो शक्तियां हैं जो हर प्राणी की काय में स्थित रहकर कार्य करती हैं | शोभामती का स्थान बाएं है और हर पल यह प्राणी की नीयत (स्वभाव) को पहचानती है एवं लेखन करती है | नंदिनी जी दायें विराजमान हैं एवं हर प्राणी की स्वांस गिनती और हिसाब रखती हैं |
विवाहोपरांत सब देवताओं ने मिलकर सभा की जिसमे श्री चित्रगुप्त जी को आज्ञा दी गयी की वह कुछ काल पृथ्वी पर रहकर, गृहस्थ धर्म पालन करें व अपना वंश पृथ्वी पर छोड़कर धर्मराज की नगरी यमपुरी में पहुँच उनके मंत्री का काम करें | देवताओं ने वरदान दिया की तुम अमर रहोगे एवं अपने धर्म व ईश्वर आज्ञा का पालन करोगे | जो कोई यम-द्वितीय के दिन तुम्हारा पूजन करेगा उसको स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी |
श्री सुशर्मा ऋषि कन्या ऐरावत जी से आठ पुत्र, चारु, सुचारू, चित्रराख्य, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण एवं जितेन्द्री उत्पन्न हुए |
सूर्यमुनी पुत्र सिराद्ध देव की कन्या नंदिनी जी के चार पुत्र भानु, विभानु, विश्वभानु एवं वीरभानु उत्पन्न हुए |
bhadas t0 mai nikalta teri maa chod कर , sale यदि mil jata तू तो
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