कल की ही बात है कि एक हैल्थ मैगजीन में बहुत पहले प्रकाशित हुआ अपने डा.रूपेश का एक लेख पढ़ रही थी कि गर्भवती स्त्री का गर्भावस्था के दरम्यान आचरण कैसा होना चाहिए । चूंकि मैं ठहरी उर्दू स्कूल की टीचर और जनाब डा.रूपेश का लिखना तो बस ऐसा रहता है कि जब वो आयुर्वेद पर लिख रहें ओं तब हमें तो डिक्शनरी ही लेकर बैठना पड़ता है । इस लेख में एक शब्द दिखा - "मैथुनोदरपरायण",
अर्थ देखा तो समझ में आया कि यह तो बड़ा सार्थक शब्द है जिसका मतलब होता है ऐसे लोग जो को बस पेट और पेट से नीचे की ही हमेशा फ़िक्र में रहते है । अपने एक भड़ासी भाई ने एक ब्लाग बनाया है इस तरह के लोगों के लिए ,जाइए और विद्वान बन जाइए । मैं एक औरत होने के नाते से यह बात कहना चाहती हूं कि जो कथित जिस्म के जानकार यह कहते हैं कि गर्भावस्था में सातवें माह तक सुरक्षित तरीके से सम्भोग किया जा सकता है वे बस "मैथुनोदरपरायण" ही हैं जब ऐसी अवस्था में औरत को उठना-बैठना और सोना तक मुश्किल होता है तो ऐसे में यह सलाह कि ओरल सेक्स या आहिस्ते से सम्भोग कर लेना चाहिए कितनी कमीनेपन से भरी प्रतीत होती है
ऐसे में औरत के दिल में पति के प्रति जो यह भाव डाला जाता है न कि शौहर खुदा होता है शर्तिया टूट जाता है कि अगर खुदा ऐसा है तो बड़ा घटिया सा है जो बस खटिया की ही बात सोचता है हमेशा । जनाब से जब इस विषय पर बात करी तो उन्होंने तो सारा का सारा दोष परमात्मा को ही दिया और बताया कि शरीर में जो एण्डोक्राइन सिस्टम है उसमें आदमियों में सेक्स हार्मोन सामान्यतः औरतों की बनिस्पत लगभग पचास गुना बनता है इसीलिए मर्द हमेशा इसी फ़िराक में रहते हैं , तो क्या यह दोयम दर्जा औरतों को दुनिया बनाने वाले ने ही दिया है ? खुदा को सवालों के कटघरे में खड़ा किया जाए ।
भड़ास जिन्दाबाद
5.3.08
पेट और पेट से नीचे की ही ........
Posted by मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ
Labels: ओरल सेक्स, औरत, गर्भावस्था, दोयम दर्जा, मैथुनोदरपरायण
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7 comments:
आयुर्वेद तो नहिं मालूम पर विग्यान तो यहि केह्ता है कि पेनेट्रेशन से गर्भ को हानि हो सकति है........ और यह भि सही है कि अधिकतर लोग ८-९ महीने तो क्या एक सप्ताह ब्रम्ह्च्र्य धारण नहिं कर सकते, उनका मस्तिष्क उसे नहिं करने देगा....... वैसे एन्डोक्राइन ज़्यादा सक्रीय होने की बात मेडीकल साइंस का स्थापित सत्य है......... मनोविग्यान की इस बात को हमें अब मान ही लेना चाहिये कि मनुश्य मूलतः एक पशु ही है। और स्त्री इन्कार करने की स्थिती में नहिं होती (अगर वो इन्कार करे तो मर्द का सिस्टम कहिं और सुख तलाशेगा)। यह स्थिती कमाऊ/ग्रहिणी दोनों तरह कि स्त्रीयों को असुरक्षा में डाल सकता है। पुरुष जो भी गलत करता है उसमें उसकी साज़िश कम और उसके endocrine system ;mainly testosterone and androgen का दोष ज़्यादा है। अगर कभी समय मिले तो अपने मनुष्य के श्रेश्ठ होने के सनस्कार को एक तरफ़ रख नीचे लिखी किताबें पढ़ें आप दुबारा पह्ले की तरह नहीं सोचेंगी
1. Men Are From Mars Women Are From Venus-------- John Gray
2. The naked ape------ Desmond Morris
3. Why men dont listen and women cant read maps------ Allen and Barbara pease
4. The human zoo-------- Desmond Morris
5. The naked woman------ Desmond morris
Note: Desmond Morris' books have been banned in some islamic/catholic nations for their provocative rationalism and strong feminist theme.
मुनव्वर आपा,आपने तो खुदा को भी भड़ास के दायरे में ला दिया । भड़ास पर और पता नहीं क्या-क्या होना बचा है.....
जय जय भड़ास
और एक बात......... अगर जनता मैथुनोदरपरायण हैं तो उसे ऐसे ही रह्ने दो........ पुरुशों में पाये जाने वाले हारमोन खासकर टेस्टास्टोरोन ही उन्हे आक्रामक बनाता है...... इस हारमोन के प्रभावों को कम करने का सबसे सरल रास्ता मैथुन ही है....... अगर इनकी गर्मी मष्तिष्क में रह जाए तो आदमी औरों को मारता है, तरह तरह की खुफ़ारातें करता है......... अगर ज़रा तेज़ दिमाग हुआ तो विनाश के हथियार बनाता है या उन्हे इस्तेमाल करता है....... फ़ौजियों को दमित यूं ही नहिं रखा जाता..... यकीन ना आये तो किसी भी दिमाग के डॅक्टर या मनोवैग्यानिक से पूछ लें........ सड़ने दो लोगों को इस नर्क में अगर इससे हटा लिया तो अभी जितनी शान्ती धरती पर बची हुई है उसे भि ये लोग बचने नहिं देन्गे..... ये हारमोन काफ़ी खतरनाक है और सारे फ़साद की जड़ भी
यह सही है कि गर्भावस्था में सातवें माह तक सुरक्षित तरीके से सेक्स किया जा सकता है लेकिन गर्भावस्था में महिला को सेक्स के लिये या दौरान हमेशा 'न' कहने का अधिकार है. विस्तार से यहां देखें http://sexkya.blogspot.com/2007/10/blog-post.html
प्रभु,अगर नौंवे महीने में जब आगे से बच्चा निकल रहा हो और आप मुंह में ठूंसे पड़े हों तो भी क्या दिक्कत है बस बात तो न या हां कहने के अधिकार की ही है । एक बात जान लीजिए कि न कहने का अधिकार बस गर्भावस्था तक ही सीमित नहीं है...
ज्यादा अंदर तक चले गए तो कुछ हाथ नहीं आता बल्कि टहलते हुए मुंह के रास्ते बाहर आ जाते हैं ।
जय जय भड़ास
मुनव्वर सुल्ताना जी बेशक इस तथाकथित खुदा को कधघरे में खड़ा किया जाना चाहिए... मगर आपने कभी ये सोचा है की एक आदमी पे क्या बीतती है... आखिर हमें ऐसा बनाया किसने?? और क्यों?? और आदमी अगर सेक्स के बारे मैं हर ३० मिनट सोचता है तो क्यों??? सच तो यह है की हमारी Biology हमारे इस समय के साथ मेल नहीं खाती है.. पहले क समय में it was a world of High Mortality and High Fertility... Men were expected to copulate more and more with different partners... ताकि हमारी दुनिया हमारी नस्लें बनी रहे.. क्या आपको पता है की एक बैल किसी भी गाय के साथ सात बार से ज्यदा मैथुन नहीं कर सकता चाहे आप गाय के पुरे शरीर को ढक दें.. Mind You... आपका बैल (मुझे नाम नहीं पता, छमाप्राथी हूँ...) ज्यादा समय आपके आगे पीछे बिताता है अपनी प्राकृतिक / स्वाभाविक प्रतिक्रियाव से हर पल लड़ता हुआ... आपको लगता है ये आसान है??? क्या आप लड़ पाएंगी अपनी natural instincts से, कभी सोचा है आपने कैसा होगा एक सुन्दर साड़ी या सुइट देखकर उसपर comment किये बिना आँखे फेर लेना, या एक सुन्दर फूल देखकर उसकी खुशबु / तारीफ बैगैर आगे बढ़ जाना.. for men sex is as natural as praising a good dress (though they seldon notice & do that...) or smelling a flower or lusting on a chocolate candy (though the taste might last only 5 - 10 seconds...) what the heck... why not question the act of sexual union itself... why is it that the sex is 'so complicated in humans (& a few other species....)', why is it nor designed in a way bacterias or plants do... ???? NO... Thats not to be... Coz humans are to be taught... sex is surrender not a power game or a quest to pleasure alone... U need to surrender yourself in order to have great sex... if that 'level of surrender and mutual feelings are there then sex is good any time and in any condition... BUT THE FEELINGS GOTTA BE MUTUAL....
kya striyon ko garvawatee rahane ke dauraan sex kee awashyakata naheen padatee?
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