भोपाली पत्रकार साथियो,
ये सभी वो पत्रकार हैं, जिन्होंने कुछ हटकर काम किया है। वे मिसाल बने, वे कमाल बने...सो स्वाभाविक है कि इनसे हम हर मोर्चे पर जीतने और सफलता का परचम फहराने का हुनर सीख सकते हैं।
ठाकुर हैं, सो रौब झाड़ते, लेकिन निर्मल मन।
सैल्यूट मारती खाकी उनको, फुर्तीला है तन।।
रीवा के वो रहने वाले, दफ्तर उनका घर।
रोज पूछतीं भाभी उनसे, कब लौटोगे प्रियवर।।
बच्चों-सा करते हैं, अधीनस्थों से प्यार...
शब्दों के ऊंचे हैं खिलाड़ी, बेहद शांत स्वभाव।
बात करें तो लगता ऐसे, हो वर्षों से लगाव।।
नाम में जिनके जीत छिपी है, ऊंचा है मुकाम।
प्रिंट-इलेक्ट्रोनिक दोनों में खूब किया है काम।।
शब्दों के सफर में बनाई पहचान॥
राजा हैं पर रहे घुमंतू, आदिम जाति में साख।
जंगल-जंगल करी रिपोर्टिंग, खूब जमाई धाक।।
नक्सलवादी मुद्दों पर जिनका नहीं दूसरा सानी।
धारदार लिखने में माहिर, किंतु नहीं अभिमानी।
गुरु, फिर से करो कोई कमाल शुरू॥
कामेडी के किंग कभी थे, अब संजीदा काम।
नई पीढी के पत्रकारों में खूब कमाया नाम।।
थोड़े-थोड़े बाल हैं, खूब चबाते मूंछ।
भास्कर में गुमनाम थे, अब सभी रहे हैं पूछ।।
प से उनका नेम, श्री से शुरू सरनेम।
- अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
1 comment:
क्या लिखते हो खां,
इन महानुभावों के नाम भी लिख देते तो अच्छा होता,
कर्मवीरों की तारीफ़ सिर्फ़ इशारों में नही करना चाहिए
खुलकर भावनाओं का इजहार करो तभी तो ये दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनेंगे
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