१ - मुक्त विचारक और वामपंथी जन जो राष्ट्रवाद की अवधारणा पर मुंह सिकोड़ते हैं , उन्हें ज्ञात होना चाहिए की उदाहरनार्थ , भारत एक राष्ट्र है , और इसी नाते तसलीमा नसरीन को यहाँ की नागरिकता नहीं मिल रही है , जैसा कि वे अपने मुस्लिम वोटरों के दबाव में चाहते हैं | यह राष्ट्र न होता तो उन्हें भारत भ्रमण अथवा निवास से कौन रोक सकता था | तब न उनकी इच्छा पूरी होती ,न दकियानूसी मुसलमानों कि | अतः आप कि इच्छा पूर्ति के लिए भी एक राष्ट्र आवश्यक है |
२ - मूल नागरिक संस्कृति संरक्षण
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कोई बुरा माना करे , लेकिन राष्ट्रों की तमाम समस्याएं आब्रजन जनित हैं , और इसका उपाय है प्रत्येक राष्ट्र के मूल नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण , या कह लें उनके विशेष अधिकारों का संरक्षण | मुझे इसमें कोई बुराई या इससे लोकतंत्र का कोई हनन होता दिखाई नहीं देता | सब अपने -अपने देश में विशेष अधिकार रखें |
ऐसा न हुआ तो सब में सबका घालमेल हो जायगा और कहीं शांति और सामंजस्य स्थापित न होने पायेगा | आब्रजन के मार्फ़त सभी जातियां सभी देशों में उत्पात करेंगी | ये अपने प्रसार के लिए प्रत्येक राष्ट्र की मूल संस्कृति पर अपनी धर्म - संस्कृति लादने और फ़ैलाने के प्रयास क्रम में प्रदूषित / मटियामेट करती रहेंगी | उदहारण किसी भी देश का लिया जा सकता है | लेकिन भारत - ब्रिटेन जैसे उदार पंथी देशों में इनके उत्पात ज्यादा स्पष्ट दिख सकते हैं | कट्टर मुस्लिम राष्ट्र अपने देशों में अपनी धर्म - संस्कृति की हिफाज़त का पूरा इंतजाम करके अपनी प्रभुता तो कायम रखते हैं , पर दूसरे देशों में उनकी लोकतान्त्रिक व्यवस्था व संस्थाओं का इस्तेमाल कर , उनकी सदाशयता का लाभ उठा कर घुसपैठ करने में सफल हो जाते हैं|
अतः अब लोकतान्त्रिक देशों को अपने मूल्यों की ही रक्षा के लिए आब्रजन की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए |
[ जैसा देश वैसा भेष / Live in Rome as Romans do ]
३ - जनता की भागीदारी
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जनता की भागीदारी के नाम पर भी जनता का शोषण होता है , इसकी ओर ध्यान खींचना है | वामपंथियों का सब काम ' जन ' शब्द से आद्यांत होता है और उससे अंततः जन का शोषण होता है , यही कहने का मेरा आशय नहीं है | हर टी वी सीरियल ,यथा बिग बोंस, हास्य -संगीत की प्रतियोगिता कार्यक्रमों में एस एम एस के द्वारा जनता की भागीदारी कराकर कम्पनियाँ करोड़ों की कमाई करती है , जो जनता की ही जेब से जाता है |
४ - राजस का विरोध
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मेरे विचारों / लेखों से कोई यह अर्थ निकाल सकता है की मैं मार्क्स व मुसलमान विरोधी हूँ | मुझे स्वयं कभी-कभी ऐसा आभास होता है | लेकिन जब शांत चित्त , धैर्य पूर्वक इसका विश्लेषण व अन्वेषण करता हूँ , तो पता हूँ कि ऐसा वास्तव में है नहीं | वस्तुतः मैं राजाओं , नवाबों और तानाशाहों का विरोध करता हूँ | मैं पाता हूँ कि ये दोनों लोग राजा खानदान के हैं , बिगड़े हुए राजकुमार हैं , इसलिए निश्चय ही इनकी मुखालफत करता हूँ |
कम्युनिस्टों को देखिये तो उनकी नज़र में केवल सत्ता और राज्य ही दिखाई पड़ता है | मनुष्य या व्यक्ति वहां नहीं है | है तो वह सामाजिक परिस्थितियों अथवा राज्य का दास है | उनका सर्वहारा ,प्रोलीटेरिएट भी तानाशाही ,डिक्टेटरशिप की मुद्रा में है , सामान्य जनता की स्थिति में नहीं |
लगभग यही हाल मुसलमानों की है | बिना सत्ता के वे चुपचाप रह ही नहीं सकते | उन्हें निजाम - ए -मुस्तफा चाहिए ही चाहिए | हिंदुस्तान पर हज़ार साल शाशन कर चुकने के दंभ ने उनका दिमाग और खराब किया हुआ है | यहाँ वे अल्पसंख्यक होने का रोना रोकर विशेषाधिकार की स्थिति में हैं और उसे मज़बूत बनाने के प्रयास में लगे रहते है | उनका अलग ही तंत्र है , न्याय और सामाजिक व्यवस्था है | वे धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र में अपना अनुकूलन करने के बजाय , लोकतंत्र का दुरूपयोग इस्लामी राज्य के लिए करने के फिराक में हमेशा रहते हैं |
इसीलिये मैं इन राजसी प्रवृत्तियों का विरोध करता हूँ | वरना मार्क्सवादी या मुसलमान ही क्यों हम मानववादियों के लिए तो सभी मनुष्य समान और सम्मान्य है |
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9.1.11
मुक्त विचारक / संस्कृति संरक्षण / जन भागीदारी / राजस का विरोध
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