सलीम अख्तर सिद्दीकी
अखबार की नौकरी की सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि रात को अक्सर देर हो ही जाती है। आज भी आॅफिस से निकलते-निकलते रात के 11 बज गए थे। आज कोई वाहन भी नहीं था। यही सोचकर दिमाग चकरा रहा था कि अगर सवारी नहीं मिली तो क्या होगा। आॅफिस से बाहर आया तो चारों ओर घुप अंधेरा था। बिजली गई हुई थी। आसपास की दुकानें भी बंद हो चुकी थीं। सिर्फ एक खाने का ढाबा खुला था। यूं भी वह रातभर खुला रहता है। मैं उस ढाबे के सामने खड़ा होकर सवारी मिलने का इंतजार करने लगा। काफी देर इंतजार करता रहा। वक्त बढ़ता जा रहा था। मैंने कुछ सोचकर कारों को हाथ देना शुरू किया। कार पास से गुजरती और मेरे चेहरे पर नजर डालकर गुजर जाती। थोड़ी देर बाद दूर से आते एक वाहन पर पड़ी। यूं दूर से उसे पहचानना मुश्किल था कि वह कौनसा वाहन था, लेकिन उसकी चाल बता रही थी कि वह कोई थ्री व्हीलर था। थोड़ी देर बाद ही वह वाहन लड़खड़ता हुआ सा ठीक ढाबे के सामने आकर रुका। मेरा अंदाजा सही था, वह थ्री व्हीहलर ही था। उसे देखकर मुझे थोड़ी आस बंधी। उसमें से चार पुलिस वाले उतरे, जिनके कंधों पर पुरानी बंदूकें लटक रही थीं। एक के हाथ में वाकी-टॉकी था। चारों पुलिस वाले ढाबे के अंदर चले गए। मैंने थ्री व्हीलर चालक से दरयाफ्त किया, ‘भैया क्या आगे भी जाओगे?’ उसने मुझे ऊपर से नीचे देखते हुए कहा, ‘मैं तो बेगार पर हूं, पता नहीं ये पुलिस वाले कहां चलने के लिए कह दें, उन्हीं से पूछ लो।’ शब्द ‘बेगार’ सुनकर मैं चौंका। मैंने फिर उससे मुखातिब होते हुए पूछा, ‘ये बेगार क्या बला है?’ उसने जवाब दिया, ‘मेरे पास थ्री व्हीलर चलाने का परमिट नहीं है। हम जैसे लोगों को पुलिस वाले कभी भी अपनी बेगारी में ले लेते हैं और रातभर गश्त करते हैं। यह बिना परमिट थ्री व्हीलर चलाने की सजा है हमारी।’ ‘डीजल वगैरहा यही डलवाते हैं?’ उसने मायूसकुन लहजे में कहा, ‘नहीं, वह भी हमें ही डलवाना पड़ता है।’ वह थ्री व्हीलर पर कपड़ा मारने लगा और मैं ढाबे के अंदर इस आस में पुलिस वालों के पास गया कि शायद वह मुझे ले जाएं। मैं उनके करीब पहुंचा। चारों खाने में व्यस्त थे। कांच के गिलासों में शराब पड़ी हुई थी। मैंने अभी कुछ कहने के लिए मुंह ही खोला था कि वॉकी-टॉकी से संदेश प्रसारित होने लगा। उस पर लोकेशन बताकर कहा जा रहा था कि एक एक्सीडेंट हुआ है, जल्दी पहुंचे। संदेश सुनकर एक सिपाही, जो शराब के गिलास को मुंह के तरफ ले जा रहा था, ने गिलास मेज पर पटक दिया। उसका चेहरा बता रहा था कि संदेश उसके लिए कबाब में हड्डी की तरह आया है। दूसरे सिपाही ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, ‘अरे बंद कर इसे सारा मूड खराब कर दिया। साले सड़कों पर मरते रहते हैं, मजा हमारा खराब करते हैं।’ मैं बाहर आकर फिर किसी वाहन की तलाश में लग गया था।
अखबार की नौकरी की सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि रात को अक्सर देर हो ही जाती है। आज भी आॅफिस से निकलते-निकलते रात के 11 बज गए थे। आज कोई वाहन भी नहीं था। यही सोचकर दिमाग चकरा रहा था कि अगर सवारी नहीं मिली तो क्या होगा। आॅफिस से बाहर आया तो चारों ओर घुप अंधेरा था। बिजली गई हुई थी। आसपास की दुकानें भी बंद हो चुकी थीं। सिर्फ एक खाने का ढाबा खुला था। यूं भी वह रातभर खुला रहता है। मैं उस ढाबे के सामने खड़ा होकर सवारी मिलने का इंतजार करने लगा। काफी देर इंतजार करता रहा। वक्त बढ़ता जा रहा था। मैंने कुछ सोचकर कारों को हाथ देना शुरू किया। कार पास से गुजरती और मेरे चेहरे पर नजर डालकर गुजर जाती। थोड़ी देर बाद दूर से आते एक वाहन पर पड़ी। यूं दूर से उसे पहचानना मुश्किल था कि वह कौनसा वाहन था, लेकिन उसकी चाल बता रही थी कि वह कोई थ्री व्हीलर था। थोड़ी देर बाद ही वह वाहन लड़खड़ता हुआ सा ठीक ढाबे के सामने आकर रुका। मेरा अंदाजा सही था, वह थ्री व्हीहलर ही था। उसे देखकर मुझे थोड़ी आस बंधी। उसमें से चार पुलिस वाले उतरे, जिनके कंधों पर पुरानी बंदूकें लटक रही थीं। एक के हाथ में वाकी-टॉकी था। चारों पुलिस वाले ढाबे के अंदर चले गए। मैंने थ्री व्हीलर चालक से दरयाफ्त किया, ‘भैया क्या आगे भी जाओगे?’ उसने मुझे ऊपर से नीचे देखते हुए कहा, ‘मैं तो बेगार पर हूं, पता नहीं ये पुलिस वाले कहां चलने के लिए कह दें, उन्हीं से पूछ लो।’ शब्द ‘बेगार’ सुनकर मैं चौंका। मैंने फिर उससे मुखातिब होते हुए पूछा, ‘ये बेगार क्या बला है?’ उसने जवाब दिया, ‘मेरे पास थ्री व्हीलर चलाने का परमिट नहीं है। हम जैसे लोगों को पुलिस वाले कभी भी अपनी बेगारी में ले लेते हैं और रातभर गश्त करते हैं। यह बिना परमिट थ्री व्हीलर चलाने की सजा है हमारी।’ ‘डीजल वगैरहा यही डलवाते हैं?’ उसने मायूसकुन लहजे में कहा, ‘नहीं, वह भी हमें ही डलवाना पड़ता है।’ वह थ्री व्हीलर पर कपड़ा मारने लगा और मैं ढाबे के अंदर इस आस में पुलिस वालों के पास गया कि शायद वह मुझे ले जाएं। मैं उनके करीब पहुंचा। चारों खाने में व्यस्त थे। कांच के गिलासों में शराब पड़ी हुई थी। मैंने अभी कुछ कहने के लिए मुंह ही खोला था कि वॉकी-टॉकी से संदेश प्रसारित होने लगा। उस पर लोकेशन बताकर कहा जा रहा था कि एक एक्सीडेंट हुआ है, जल्दी पहुंचे। संदेश सुनकर एक सिपाही, जो शराब के गिलास को मुंह के तरफ ले जा रहा था, ने गिलास मेज पर पटक दिया। उसका चेहरा बता रहा था कि संदेश उसके लिए कबाब में हड्डी की तरह आया है। दूसरे सिपाही ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, ‘अरे बंद कर इसे सारा मूड खराब कर दिया। साले सड़कों पर मरते रहते हैं, मजा हमारा खराब करते हैं।’ मैं बाहर आकर फिर किसी वाहन की तलाश में लग गया था।
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