लीबिया: डेढ़ सौ अरब डॉलर की चोरी कैसे की गई?
1.11.2012, 15:14
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© Collage: «The Voice of Russia»
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लीबिया में नाटो सैन्य अभियान के दो परिणाम उल्लेखनीय हैं। पहला परिणाम यह था कि नाटो गठबंधन के विमानों द्वारा की गई बमबारी से इस देश का उस नुकसान से भी सात गुना अधिक नुकसान हुआ जितना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी फील्ड मार्शल रोमेल के विमानों ने किया था। दूसरा परिणाम यह निकला कि विदेशी बैंकों में जमा डेढ़ सौ अरब डॉलर के मूल्य की लीबियाई संपत्ति के सभी काग़ज़ात भी कहीं गायब हो गए। ये आँकड़े रूस के प्राच्यविद्या संस्थान के एक वरिष्ठ शोधकर्ता अनातोली येगोरिन की पुस्तक "मुअम्मर गद्दाफ़ी का तख़्ता पलटः लीबिया डायरी, 2011-2012" में दर्ज हैं। इस पुस्तक का विमोचन अभी हाल ही में मास्को में किया गया था। लीबियाई त्रासदी पर रूस में लिखी गई यह ऐसी पहली पुस्तक है।
यह बात स्पष्ट है कि किसी भी युद्ध का परिणाम क्षति में ही निकलता है। हालांकि, यदि हम इस बात को याद रखें कि नाटो को लीबिया के आकाश में एक उड़ान निषिद् क्षेत्र स्थापित करने का काम ही सौंपा गया था, जिसे पूरा करते समय लीबिया का इतना भारी नुकसान नहीं होना चाहिए था। लेकिन इस के बावजूद भी, विदेश में लीबिया की डेढ़ सौ अरब डॉलर के मूल्य की चुराई गई संपत्ति अब इस देश के नुकसान की काफ़ी हद तक भरपाई कर सकती थी। लेकिन यह पैसा तो अब गायब हो चुका है। अब सवाल उठता है कि यह सब कैसे हुआ? इस संबंध में "लीबिया डायरी" के लेखक अनातोली येगोरिन ने कहा-
जब मुअम्मर गद्दाफ़ी के खिलाफ़ अभियान शुरू हुआ और यह बात स्पष्ट हो गई कि नाटो गठबंधन गद्दाफ़ी को सत्ता में बने रहने नहीं देगा तो यह पैसा गायब होना शुरू हो गया। यह पैसा कहाँ और कैसे ग़ायब हुआ, इस बात को कोई भी पूरी तरह से नहीं जानता है। हाँ, मीडिया में कुछ ऐसी ख़बरें छपी हैं कि इस पैसे को विदेशी कंपनियों और पश्चिमी बैंकरों की मदद से देश से बाहर भेजने का काम शुरू हो गया था। अब इस बात की बहुत कम संभावना है कि यह पैसा वापस लौटाया जा सकता है। इस लूटपाट के लिए अकेले पश्चिमी देशों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ख़ुद लीबियावासियों ने भी, जिनका संबंध गद्दाफ़ी से भी था और विपक्ष के साथ भी था, ख़ूब लूट मचाई थी। उन्होंने डॉलरों और सोने से भरे वाहनों को रेगिस्तान के रास्ते विदेशों में पहुँचाया था।
लीबिया में लोकतंत्र की स्थापना के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ की प्रमुख फ़ातिमा अबू अल-निरान की भी ऐसी ही राय है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा-
वास्तव में, लीबिया में जो कुछ भी लूटा जा सकता था, लूटा गया। और यह सब कुछ सारी दुनिया की आँखों के सामने हुआ। किसी ने भी इस लूट के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई। लूट करने के ये आरोप निराधार नहीं हैं। इससे पहले, इस बात की पुष्टि लीबिया के केंद्रीय बैंक के पूर्व प्रमुख द्वारा भी की गई थी। विदेशी खातों में जमा महज 150 अरब डॉलर की ही लूट नहीं की गई। आज भी पैसा अवैध ढंगों से देश से बाहर भेजा जा रहा है। और ऐसा तब किया जा रहा है जब इस देश की कई जनजातियों और स्थानीय लड़ाकों के बीच झड़पें हो रही हैं। वे सभी सत्ता हथियाने के लिए लड़ रहे हैं। वे एक दूसरे के साथ कुछ भी करने के लिए तैयार हैं और वे ऐसा कर भी रहे हैं। अब पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि नाटो ने इस देश में हस्तक्षेप यहाँ लोकतंत्र की स्थापना के लिए नहीं किया था। हालांकि नाटो गठबंधन के नेता इसी बात का ढढोरा पीट रहे थे। लेकिन अब हर कोई देख सकता है कि नाटो गठबंधन का असली उद्देश्य इस देश की लूटपाट करना ही था।
इसी लिए, अब यह बात पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हो गई है कि पश्चिम को लीबिया के भाग्य में अब कोई विशेष दिलचस्पी नहीं रही है। और लीबिया के नए शासक पिछले पूरे एक साल से आपस में मंत्रालयों के बाँटवारे में ही उलझे हुए हैं। उनके पास अपने पूर्व आकाओं से इतनी बात पूछने का भी समय नहीं है कि 150 अरब डॉलर की धनराशि कहाँ गई, जिसकी इस ग़रीब देश को अब बहुत ज़रूरत है।
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