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29.11.12

अफसोस...फिर हंगामे की भेंट चढ़ेंगे करोड़ों !


देर से ही सही आखिर संसद में एफडीआई पर बना गतिरोध समाप्त हो ही गया। लोकसभा में जहां नियम 184 के तहत एफडीआई पर विपक्ष की मांग को स्पीकर ने स्वीकार कर लिया है तो वहीं राज्यसभा में बहस के साथ ही वोटिंग के प्रावधान वाले नियम 168 के तहत एफडीआई पर चर्चा के लिए सरकार ने सहमति जता दी है। एफडीआई पर गतिरोध समाप्त होने के बाद भी सदन के दोनों सदनों में कार्यवाही सुचारु रूप से चल पाएगी इस पर संशय बरकरार है। हालांकि भाजपा ने सदन को सुचारु रूप से चलने देने का भरोसा तो दिलाया है...लेकिन सरकार के खार खाए बैठी तृणमूल कांग्रेस क्या सदन में चुप बैठेगी ये बड़ा सवाल है...जो आज गुरुवार को देखने को भी मिला जब लोकसभा में नियम 184 के तहत चर्चा के स्पीकर के निर्देश क बाद भी टीएमसी ने जमकर हंगामा किया और सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। ठीक इसी तरह यूपी में कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर बसपा का हंगामा तो गैस सिलेंडर पर सपा का हंगामा एफडीआई के मुद्दे से अलग सामने आ चुका है...ऐसे में शीतकालीन सत्र आगे भी सुचारु रूप से चल पाएगा इस पर सवाल बने हुए हैं। वैसे नियम लोकसभा में नियम 184 के तहत और राज्यसभा में नियम 168 के तहत एफडीआई पर बहस और वोटिंग के बाद की स्थिति पर भी काफी कुछ सदन की कार्यवाही निर्भर करेगी। अगर वोटिंग में सरकार को पर्याप्त समर्थन मिलता है...जैसी कि उम्मीद है तो क्या उसके बाद विपक्षी दलों की बौखलाहट बाहर निकल कर नहीं आएगी...?  ऐसे में क्या वे सदन में एफडीआई पर फिर हंगामा नहीं करेंगे इसकी क्या गारंटी है…? यानि की विपक्ष की मांग भले ही स्वीकार कर ली गई हो...लेकिन इसके बाद भी शीतकालीन सत्र के आगे सुचारु रूप से चलने के आसार बहुत ज्यादा नजर नहीं आ रहे हैं। एफडीआई के अलावा कई और ऐसे बड़े मुद्दे हैं जिनको लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में विपक्ष हैं तो सरकार लोकपाल बिल, भूमि अधिग्रहण बिल, खाद्य सुरक्षा कानून और बीमा और पेंशन सुधार बिल समेत कई अहम बिल सरकार इस सत्र में पास कराना चाहती है...लेकिन सरकार की ये हसरत तभी पूरी होगी जब सदन में हंगामा न हो और सरकार पहली और सबसे बड़ी बाधा एफडीआई से संसद में पार पा ले। बीते मानसून सत्र हंगामे का एक दौर सदन में हम देख चुके हैं...ऐसे में शीतकालीन सत्र में एफडीआई पर गतिरोध समाप्त होने के बाद भी सत्र के सुचारु रूप से चलने की उम्मीद बहुत कम ही है...जिससे एक बार फिर से सदन की कार्यवाही पर खर्च होने वाले करोड़ों रूपए की बर्बादी साफ नजर आ रही है...लेकिन अफसोस न तो सरकार और न ही विपक्ष को इसकी कोई चिंता है।   

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