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6.11.12

‘राज’नीति



ज्यादा दिन नहीं हुए जब हरियाणा के सूरजकुंड में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में नितिन गडकरी के दोबारा भाजपा अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया था...और कार्यसमिति के सभी सदस्यों ने हाथ उठाकर इसका अनुमोदन किया था...दरअसल संघ की मंशा थी कि भाजपा हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ ही 2013 में 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2014 के आम चुनाव को गडकरी के नेतृत्व में लड़े...लेकिन गडकरी पर उठी एक ऊंगली ने भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर मिशन 2014 की तैयारी में लगी भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पहले कांग्रेस की नींद उड़ा चुके सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल की एक प्रेस कांफ्रेंस ने भाजपा के मिशन 2014 के सपनों पर मानो कुठाराघात कर दिया...रही सही कसर पूरी कर दी उन मीडिया रिपोर्टों ने जिसमें गडकरी की कंपनी में फर्जी कंपनियों के हुए निवेश को उजागर किया गया। भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से घिरी कांग्रेस को तो मानो गडकरी पर आरोप लगने के बाद संजीवनी मिल गयी। पहले कांग्रेस ने घेरा तो भाजपा ने जमकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का बचाव किया...लेकिन इसके बाद गडकरी अपनी ही पार्टी में घिरते चले गए। हालात ऐसे हो गए कि गडकरी पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता गया और कई बड़े भाजपा नेता गडकरी से किनारा करने लगे...हालांकि खुलकर किसी भी भाजपा नेता ने इस बात को नहीं कहा सिवाए राम जेठमलानी और उनके बेटे महेश जेठमलानी के...लेकिन अपने ही घर में गडकरी बुरी तरह घिर गए। राजनीति में सियासी दलों और नेताओं की चाल, चरित्र और चेहरे कैसे बदल जाते हैं, इसका अंदाजा गडकरी के मामले से आसानी से लगाया जा सकता है। गडकरी पर उठी एक ऊंगली ने गडकरी को अर्श से फर्श पर पहुंचाने की पूरी रूप रेखा तय कर दी...जो पार्टी अपने निजाम के साथ कदम से कदम मिलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान शुरु करने का दम भरते हुए सत्ता में लौटने का ख्वाब देख रही थी...उस पार्टी के निजाम ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गए तो ऐसा होना ही था। लेकिन आखिर में दिनभर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार भाजपा ने खुद ही गडकरी को क्लीन चिट देते हुए गडकरी के नेतृत्व पर पूरा भरोसा होने का ऐलान करने के साथ ही गडकरी के इस्तीफे की अटकलों को खारिज कर दिया। सवाल ये भी है कि जो पार्टी विपक्ष में रहते हुए विरोधियों पर आरोप लगने पर उनके इस्तीफे की मांग करती है वो पार्टी अपने ऊपर बात आने पर अपने नेता को पूरा संरक्षण देते हुए खुद ही उसे क्लीन चिट दे देती है। शायद यही राजनीति है...राज करना है तो समय के साथ अपनी सुविधानुसार नीति को ही बदल डालो और राज करो...वैसे गौर कीजिए भाजपा हो या कांग्रेस या कोई और राजनीतिक दल सभी जगह तो यही हो रहा है।
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