भीड़ तंत्र
वो -
काले दाग,
जो सत्य की कब्र में दफन थे,
एक मुँह फट की बदोलत,
सफेद खादी के घेरे को तोड़,
देश भर में बिखर गए हैं।
किसी अकेले के दाग होते
तो-
लीप पोत कर साफ कर देते ;
मगर-
ये तो भ्रष्ट मोतियों की लड़ी है,
जिसका धागा,मोती और पेंडल
सब काला और वक्र है।
एक काला दुसरे को काला बता रहा है!
एक चोर दुसरे को चोर बता रहा है !
असमंजस में आम आदमी ?
चोरो से वफा की बातें सुन रहा है!
और वो काला-
किराये की भीड़ को,
खुद की बेगुनाही का चाँद
खुद के हाथ में दिखा रहा है!
मगर-
भीड़ को
उसकी कहाँ परवाह,
कि,
वह काला है या सफेद?
वह तो टकटकी बांधे
उस ओर देख रहा है,
जो -
चंद नोटों से इन्हें खरीद लाया है।
No comments:
Post a Comment