राजनीति में नेताओं
का चरित्र इतनी तेजी से बदलता है...जितनी तेजी से शायद गिरगिट भी रंग न बदल पाती
हो। संसद के शीतकालीन सत्र का ही उदाहरण सामने है...विपक्ष लगातार नियम 184 के तहत
एफडीआई पर चर्चा की मांग कर रहा था तो वोटिंग से घबराई सरकार नियम 193 पर बहस के
लिए तैयार थी...जिसमें वोटिंग का प्रावधान नहीं है। तब शायद सरकार को इस बात का डर
था कि अपने पत्ते बंद करके बैठे उनके सहयोगी 184 के तहत चर्चा के बाद वोटिंग में
अपना पाला न बदल लें...इसलिए ही सरकार नियम 184 से बचना चाह रही थी...लेकिन जैसे
ही सरकार की सबसे बड़ी सहयोगी द्रमुक ने एफडीआई पर सरकार के साथ आने की बात कही और
सपा- बसपा ने भी वोटिंग की बजाए सिर्फ चर्चा पर जोर दिया तो सरकार को मानो ऑक्सीजन
मिल गई और बदल गई सरकार के मंत्रियों की जुबान। कहने लगे सरकार एफडीआई पर किसी भी
नियम के तहत चर्चा के लिए तैयार है। और तो और खामोश रहने वाले हमारे प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह भी शोले फिल्म के गब्बर सिंह की तरह दहाड़ते नजर आए- “हमारे पास नंबर है”। अब ये नंबर एक दिन पहले तक होने के बावजूद सरकार के पास नहीं था...या यूं
कहें कि सरकार को खुद के साथ ही अपने सहयोगियों पर भरोसा नहीं था...तो नियम 193 पर
ही एफडीआई पर संसद में सरकार बहस के लिए तैयार थी...लेकिन जैसे ही सहयोगी दलों के
रूख में एफडीआई पर नरमी हुआ सरकार की जुबान के साथ ही बॉडी लेंग्वेज में गर्मी आ
गयी...और सरकार पूरे विश्वास के साथ किसी भी नियम के तहत चर्चा के लिए राजी हो गई।
सहयोगियों की नरमी से सरकार भले ही किसी भी नियम के तहत चर्चा के लिए तैयार हो गई
हो...लेकिन एफडीआई पर सहयोगियों की नाराजगी अभी भी बनी हुई है। सरकार को बाहर से
समर्थन दे रही सपा जहां एफडीआई पर कड़ा रूख अख़्तियार किए हुए है तो सरकार की सबसे
बड़ी सहयोगी द्रमुक सिर्फ इसलिए इस मुद्दे पर सरकार के साथ आई है ताकि भाजपा की
ताकत न बढ़े...यानि कि सपा और द्रमुक सदन में वोटिंग की स्थिति में कभी भी अपना
पाला बदल सकती हैं...हालांकि इसकी संभावना काफी कम है लेकिन ये राजनीति है...यहां
अपने सियासी फायदे के लिए कब कौन किसका दोस्त बन जाए....कब कौन किसका दुश्मन बन
जाए...कुछ नहीं कहा जा सकता। अब टीएमसी से बड़ा उदाहरण और क्या होगा...कुछ दिन
पहले तक सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली टीएमसी को आज इससे ज्यादा
खराब सरकार नजर ही नहीं आती।
deepaktiwari555@gmail.com
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