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8.11.12

क्या सच बोल रहे हैं आडवाणी ?


देर से ही लेकिन कम से कम भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने खुद पर लगे पीएम इन वेटिंग के तमगे को धो ही डाला। इसके लिए आडवाणी ने मौका भी बेहतरीन चुना और अपने 85वें जन्मदिन पर ये कहकर इन अटकलों पर विराम लगाया कि भाजपा और देश ने उन्हें बहुत कुछ दिया है...और ये प्रधानमंत्री की कुर्सी से भी बढ़कर है। इससे पहले आडवाणी को लेकर सियासी गलियारों में ये चर्चाएं गर्म रहती थी कि आडवाणी आजीवन पीएम इन वेटिंग ही रहेंगे। चार बार राज्यसभा और पांच बार लोकसभा सांसद रहे आडवाणी प्रधानमंत्री न बन पाए तो क्या हुआ 29 जून 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में आडवाणी उप प्रधानमंत्री तो बन ही गए। कोशिश इसके बाद भी उन्होंने काफी की लेकिन ये सुनहरा अवसर आडवाणी के राजनीतिक जीवन में नहीं आया। खैर उम्र के साथ ही राजनीति के अंतिम पड़ाव में खड़े आडवाणी शायद इस बात को अच्छी तरह समझ गए होंगे कि पीएम की दौड़ शायद अब उनके बस की नहीं रही क्योंकि भाजपा में ही उनके पीछे उनकी तरह ऊंची राजनीतिक महत्वकांक्षाओं वाले नेताओं की फौज खड़ी है जो राजनीति के सर्वोच्च शिखर देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे हैं...और आडवाणी के राजनीति से रिटायरमेंट का इंतजार में बैठे हैं। जिसमें सबसे आगे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिया जा रहा है...इसके अलावा सुषमा स्वराज, अरूण जेटली सरीखे तमाम और नेता हैं जो मन में एनडीए की सरकार बनने पर पीएम बनने के सपना संजए बैठे हैं। ऐसे में आडवाणी को अपने 85वें जन्मदिन पर शायद ये बेहतर मौका लगा कि कम से कम राजनीति के अंतिम पड़ाव में अपने ऊपर उपहास उड़ाते सरीखे लगे तमगे को धो दिया जाए। आडवाणी भले ही अब कह रहे हों कि प्रधानमंत्री पद से ज्यादा उनको भाजपा और देश ने दिया...लेकिन आडवाणी की पीएम बनने की चाहत किसी से छिपी नहीं है...ज्यादा पीछे न जाएं तो 2009 के आम चुनाव को ही ले लें...तो देखने में आया था कि किस तरह आम चुनाव से पहले आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा निकाली थी। लेकिन आडवाणी के दुर्भाग्य से कहें कि 2009 में जनता ने यूपीए सरकार पर ही भरोसा जताया और आडवाणी का पीएम बनने का सपना एक बार फिर बिखर गया। 2009 में भाजपा की पराजय के बाद से ही उतार पर आए आडवाणी के राजनीतिक करियर का ही असर कहें की आडवाणी ने अपने 85वें जन्मदिन में एक तरह से राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया...और ये कहकर पीएम इन वेटिंग के तमगे को धो दिया कि उन्हें पार्टी और देश ने इससे कहीं ज्यादा दिया है...आडवाणी भले ही पीएम पद की लालसा न होने की बात कह गए हों...लेकिन कहीं न कहीं आडवाणी के दिल में इसकी कसक जरूर रही होगी। खैर हम तो यही कह सकते हैं देर आए दुरुस्त आए।

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