मित्रों,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई बराबर एक कालोत्तीर्ण उक्ति
कहा करते थे कि अगर गंगा को साफ करना है तो पहले हमें गंगोत्री को साफ करना
होगा। वाजपेई खुद भी कुछ समय के लिए भारतीय राजनीति के शीर्ष पर पहुँचे
लेकिन वे भी गंगोत्री को साफ नहीं कर सके और उनके हटने के बाद तो गंगोत्री
पूरी तरह से गंदी ही हो गई। यहाँ गंगोत्री से मेरा आशय केंद्र सरकार से है
और वाजपेई जी का भी यही मतलब था। वर्तमान काल में केंद्र की सत्ता संभाल
रही कांग्रेस पार्टी इस कदर लुटेरी (सिर्फ भ्रष्ट कहना अब पर्याप्त नहीं रह
गया है) और बेशर्म हो चुकी है कि पूरी दुनिया आश्चर्यचकित है कि क्या यह
सचमुच वही कांग्रेस पार्टी है जिसका नेतृत्व कभी महात्मा गांधी के हाथों
में था और जिसको कभी इंदिरा कांग्रेस के नाम से जाना जाता था। इंदिरा गांधी
तानाशाह थीं पर भ्रष्ट नहीं थीं और अगर उनके समय में भ्रष्टाचार था भी
परदे के पीछे था। इसके साथ ही इंदिरा जी देशभक्त भी थीं। जब प्रश्न देश की
प्रतिष्ठा का होता था तब इंदिरा दुर्गा बन जाती थीं (जैसा कि इंदिरा के धुर
विरोधी माननीय अटल जी ने उनके लिए कहा था)। इंदिरा का 30 अक्तूबर,1984 को
दिया गया उनका अंतिम संबोधन तो आपको याद होगा ही जिसमें उन्होंने कहा था कि
मेरे खून का एक-एक कतरा मेरे देश के काम आएगा। परन्तु यह देखना हमारे लिए
काफी दुःखद है कि आज उनकी बहू सोनिया ने हालाँकि अपने मुँह से तो ऐसा नहीं
कहा है लेकिन उनकी करनी को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे कि मानों वे कह रही
हों कि मेरे देश का एक-एक कतरा मेरे खून के काम आएगा। आज इंदिरा कांग्रेस
बिल्कुल भी इंदिरा कांग्रेस नहीं रह गई है और पूरी तरह से सोनिया कांग्रेस
बन गई है। इस सोनिया कांग्रेस का देशभक्त होना तो जैसे कल्पना ही लगता है।
यह सोनिया कांग्रेस पूरी तरह से भ्रष्ट और देशविरोधी है। इसके सारे कदम देश
को कमजोर करनेवाले होते हैं,देशविरोधी होते हैं। लगभग रोज-रोज ही केंद्र
सरकार में एक नया घोटाला सामने आ रहा है। फिर भी सोनिया कांग्रेस
भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में कोई कदम उठाने की कोशिश तक नहीं कर रही है
बल्कि उल्टे भ्रष्टाचारियों को प्रोन्नत्ति देकर सम्मानित किया जा रहा है।
मित्रों,दुर्भाग्यवश इस समय कभी वाजपेई की रही मुख्य विपक्षी दल भाजपा का दामन भी भ्रष्टाचार के छींटों से दागदार है और इस बात का भरपूर फायदा उठा रही है सोनिया कांग्रेस। वह यह तो मानती है कि वह भ्रष्ट है लेकिन साथ में यह कहना भी नहीं भूलती कि उसको भ्रष्ट कहने वाला विपक्ष भी भ्रष्ट है। वर्तमान में उसकी काफी शक्ति सिर्फ विपक्ष को भ्रष्ट साबित करने में खर्च हो रही है। उसे लगता है कि भ्रष्ट होते हुए भी चुनाव को जीता जा सकता है बस विपक्ष को भी किसी तरह से भ्रष्ट सिद्ध कर दो। उसे यह मुगालता भी हो गया है कि उसके ऐसा करने से देश का शहरी और ग्रामीण मध्यमवर्ग जो उसके शासनकाल में सबसे ज्यादा घाटे में रहा है असमंजस और किंकर्त्तव्यविमूढ़ता का शिकार हो जाएगा और फिर से उसी को वोट दे देगा। ऊपर से वह प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम के माध्यम से जमकर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करने में लगी हुई है और फिर भी खुद को मात्र धर्मनिरपेक्ष ही नहीं महाधर्मनिरपेक्ष मानती है। इसके साथ ही उसका उत्तरी राज्यों की जनता पर बिल्कुल भी यकीन नहीं रह गया है और उसकी चुनावी रणनीति का पूरा नहीं तो ज्यादातर दारोमदार दक्षिणी राज्यों पर टिका हुआ है। तभी तो उसने केंद्रीय कैबिनेट को आंध्र प्रदेश कैबिनेट बना कर रख दिया है और चुनावी दृष्टिकोण से अतिमहत्त्वपूर्ण बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को एक बार फिर से अंगूठा दिखा दिया है। फिलहाल सोनिया कांग्रेस की रणनीति 2014 के लोकसभा चुनावों में हिट होती है या फ्लॉप यह तो आनेवाले साल ही बतायेंगे मगर उसकी दूषित राजनीति और रणनीति से देश और देशवासियों का और भी नैतिक स्खलन होगा इसमें संदेह की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है क्योंकि जनता और नीचे के लोग आमतौर पर वही करते हैं जो ऊपर के लोग करते हैं। सोनिया कांग्रेस न जाने क्यों जबसे सत्ता में आई है सामाजिक,राजनैतिक और न्यायिक सुधार की बात बिल्कुल भी नहीं कर रही है और उसका सारा जोर सिर्फ आर्थिक सुधार पर है मानो सिर्फ देश को देशी-विदेशी निजी हाथों में बेच देने से ही देश महाशक्ति बन जाएगा। बाँकी के सुधार भी कम जरूरी नहीं है बल्कि अपेक्षाकृत ज्यादा आवश्यक हैं लेकिन यह उसकी प्राथमिक सूची में तो दूर उसकी सूची में ही नहीं है जिससे देश में निश्चित रूप से निकट-भविष्य में अराजकता में वृद्धि होगी। आज के भारत को खतरा बाहरी शक्तियों से नहीं है बल्कि आंतरिक शक्तियों से है,दिनों-दिन बढ़ती अराजकता से है। मैं तो यहाँ तक मानता हूँ कि अमीर लेकिन आध्यात्मिक रूप से पतित राष्ट्र से बेहतर होता है भौतिक दृष्टि से गरीब परन्तु नैतिक रूप से उन्नत राष्ट्र। इसके साथ ही उसके कृत्यों से भारत की अंतर्राष्ट्रीय संभावनाओं को भी पलीता लगेगा क्योंकि सोनिया कांग्रेस आगे भी निश्चित रूप से ऐसे ही कदम उठाने जा रही है जिससे देश कमजोर होगा,उसकी एकता और अखंडता कमजोर होगी भले ही कांग्रेस को इससे छोटा-मोटा तात्कालिक लाभ प्राप्त हो जाए।
मित्रों,दुर्भाग्यवश इस समय कभी वाजपेई की रही मुख्य विपक्षी दल भाजपा का दामन भी भ्रष्टाचार के छींटों से दागदार है और इस बात का भरपूर फायदा उठा रही है सोनिया कांग्रेस। वह यह तो मानती है कि वह भ्रष्ट है लेकिन साथ में यह कहना भी नहीं भूलती कि उसको भ्रष्ट कहने वाला विपक्ष भी भ्रष्ट है। वर्तमान में उसकी काफी शक्ति सिर्फ विपक्ष को भ्रष्ट साबित करने में खर्च हो रही है। उसे लगता है कि भ्रष्ट होते हुए भी चुनाव को जीता जा सकता है बस विपक्ष को भी किसी तरह से भ्रष्ट सिद्ध कर दो। उसे यह मुगालता भी हो गया है कि उसके ऐसा करने से देश का शहरी और ग्रामीण मध्यमवर्ग जो उसके शासनकाल में सबसे ज्यादा घाटे में रहा है असमंजस और किंकर्त्तव्यविमूढ़ता का शिकार हो जाएगा और फिर से उसी को वोट दे देगा। ऊपर से वह प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम के माध्यम से जमकर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करने में लगी हुई है और फिर भी खुद को मात्र धर्मनिरपेक्ष ही नहीं महाधर्मनिरपेक्ष मानती है। इसके साथ ही उसका उत्तरी राज्यों की जनता पर बिल्कुल भी यकीन नहीं रह गया है और उसकी चुनावी रणनीति का पूरा नहीं तो ज्यादातर दारोमदार दक्षिणी राज्यों पर टिका हुआ है। तभी तो उसने केंद्रीय कैबिनेट को आंध्र प्रदेश कैबिनेट बना कर रख दिया है और चुनावी दृष्टिकोण से अतिमहत्त्वपूर्ण बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को एक बार फिर से अंगूठा दिखा दिया है। फिलहाल सोनिया कांग्रेस की रणनीति 2014 के लोकसभा चुनावों में हिट होती है या फ्लॉप यह तो आनेवाले साल ही बतायेंगे मगर उसकी दूषित राजनीति और रणनीति से देश और देशवासियों का और भी नैतिक स्खलन होगा इसमें संदेह की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है क्योंकि जनता और नीचे के लोग आमतौर पर वही करते हैं जो ऊपर के लोग करते हैं। सोनिया कांग्रेस न जाने क्यों जबसे सत्ता में आई है सामाजिक,राजनैतिक और न्यायिक सुधार की बात बिल्कुल भी नहीं कर रही है और उसका सारा जोर सिर्फ आर्थिक सुधार पर है मानो सिर्फ देश को देशी-विदेशी निजी हाथों में बेच देने से ही देश महाशक्ति बन जाएगा। बाँकी के सुधार भी कम जरूरी नहीं है बल्कि अपेक्षाकृत ज्यादा आवश्यक हैं लेकिन यह उसकी प्राथमिक सूची में तो दूर उसकी सूची में ही नहीं है जिससे देश में निश्चित रूप से निकट-भविष्य में अराजकता में वृद्धि होगी। आज के भारत को खतरा बाहरी शक्तियों से नहीं है बल्कि आंतरिक शक्तियों से है,दिनों-दिन बढ़ती अराजकता से है। मैं तो यहाँ तक मानता हूँ कि अमीर लेकिन आध्यात्मिक रूप से पतित राष्ट्र से बेहतर होता है भौतिक दृष्टि से गरीब परन्तु नैतिक रूप से उन्नत राष्ट्र। इसके साथ ही उसके कृत्यों से भारत की अंतर्राष्ट्रीय संभावनाओं को भी पलीता लगेगा क्योंकि सोनिया कांग्रेस आगे भी निश्चित रूप से ऐसे ही कदम उठाने जा रही है जिससे देश कमजोर होगा,उसकी एकता और अखंडता कमजोर होगी भले ही कांग्रेस को इससे छोटा-मोटा तात्कालिक लाभ प्राप्त हो जाए।
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