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25.11.12

ये पब्लिक है...सब जानती है


राम के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा ने आखिर राम को ही राम राम बोल दिया। भाजपा ने जिस राम को बाय बाय बोला वो राम पार्टी की नैया पार लगाने की बजाए पार्टी की नैया डुबाने में लगे हुए थे...ऐसे में मिशन 2014 की तैयारी में लगी भाजपा ने नैया डुबाने वाले राम(जेठमलानी) को बाय बाय बोलने में ही भलाई समझी। भाजपा के लिए अपने बयानों से कांग्रेस नेताओं ने उतनी मुश्किल खड़ी नहीं कि उनकी पार्टी के ही वरिष्ठ नेता राम जेठमलानी ने। राम जेठमलानी ने भाजपा के किसी नेता पर नहीं बल्कि सीधे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर ही ऊंगली उठाते हुए इस्तीफे का मांग कर डाली। गडकरी के बचाव में एक तरफ संघ के साथ पूरी भाजपा खड़ी थी तो दूसरी तरफ गडकरी का इस्तीफा मांगकर जेठमलानी ने पार्टी की जमकर किरकिरी कराई। जेठमलानी यहीं नहीं रूके...उन्होंने सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा की नियुक्ति का विरोध कर रही भाजपा के खिलाफ जाकर सिन्हा की नियुक्ति को सही ठहराते हुए पार्टी नेताओं की ही आलोचना शुरु कर दी। यहां तक तो पार्टी ने बर्दाश्त कर लिया लेकिन जेठमलानी कुछ ज्यादा ही ताव में आ गए और उन्होंने पार्टी को उनके खिलाफ कार्रवाई करने की चुनौती देते हुए कह डाला कि- भाजपा के किसी नेता में उनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस ही नहीं है...अब पानी सिर के ऊपर से निकल गया तो भाजपा ने जेठमलानी को राम राम करने में ही भलाई समझी। भाजपा ने भले ही अनुशासन तोड़ने...पार्टी लाइन के खिलाफ बयान देने के साथ ही पार्टी के अध्यक्ष गडकरी पर ऊंगली उठाने पर जेठमलानी को राम राम बोला हो...लेकिन इसके साथ ही कई और सवालों ने जन्म ले लिया है कि क्या भाजपा जेठमलानी के खिलाफ ही कार्रवाई करेगी या फिर यशवंत सिन्हा और शत्रुघन सिन्हा सरीखे नेताओं के खिलाफ भी कोई एक्शन लेगी...जिन्होंने जेठमलानी के सुर में सुर मिलाए थे...? वैसे लगता नहीं कि भाजपा इतना साहस जुटा पाएगी कि जेठमलानी के साथ यशवंत सिन्हा और शत्रुघन सिन्हा जैसे पार्टी के दिग्गज नेताओं पर कार्रवाई करे...वो भी ऐसे वक्त पर जब पार्टी की निगाहें मिशन 2014 पर हैं। लेकिन अनुशासित पार्टी होने का दम भरने वाली भाजपा अगर ऐसा कदम उठाती है और अध्यक्ष के खिलाफ बोलने वालों को पार्टी से बाय बाय बोलती है तो सवाल ये भी उठता है की भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की कीमत पर पार्टी आखिर कितने नेताओं की बलि लेगी...वो भी सिर्फ इसलिए कि गडकरी पर संघ का आशीर्वाद जमकर बरस रहा है। खैर ये सब पार्टी के खिलाफ, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ बोलने वाले उन नेताओं पर भी निर्भर करता है कि क्या वे जेठमलानी चैप्टर से सबक लेते हैं या नहीं। जेठमलानी की विदाई के साथ ही एक और प्रश्न खड़ा होता है कि राजनीति में खुद पर लगे आरोपों पर तो आप पर्दा डालते हैं...जबकि विपक्षियों पर ऐसे ही आरोप लगने पर आप बवंडर खड़ा कर देते हैं…? जेठमलानी के भाजपा से निष्कासन के बाद तो कम से कम ऐसा ही लगता है। भाजपा अध्यक्ष पर लगे आरोपों पर पार्टी का ही कोई नेता सवाल उठाता है तो आपको ये बर्दाश्त नहीं होता...और आप उसको निष्कासित कर देते हैं...लेकिन आपके विपक्षी पर ये आरोप लगते हैं तो आप जमकर हो हल्ला मचाते हैं...ऐसे में आप में और सामने वाले में फर्क ही क्या रह गया…? खैर ये राजनीति है इसे जितना समझने की कोशिश करेंगे उतना उलझते जाएंगे क्योंकि राजनीति में नेताओं की चाल औऱ चरित्र हर पल बदलते रहते है...बस इन्हें आपना फायदा नजर आना चाहिएलेकिन नेता जी ये मत भूलिए ये पब्लिक है...ये सब जानती है...आज नहीं तो क्या वक्त आने पर चुनाव में आपको सब समझा देगी।
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