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16.11.12

लीबिया में अब क्या होगा?


लीबिया में अब क्या होगा?

 
2.11.2012, 14:31
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Photo: EPA
लीबिया में पिछले डेढ़ साल से विभिन्न अर्द्धसैनिक समूहों के बीच झड़पों, रक्तपात, नागरिकों की हत्याओं, युद्ध के नियमों और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों के उल्लंघनों का दौर-दौरा जारी है। जिस लोकतंत्र की स्थापना के लिए मुअम्मर गद्दाफी को अपदस्थ किया गया था अब उस लोकतंत्र का प्रतीक है- हाथ में बंदूक पकड़े हुए लंबी दाढ़ी वाला एक आदमी, जो सभी दिशाओं में गोलियों की वर्षा कर रहा है। इस संदर्भ में सन् 2011 तक लीबिया में रूस के राजदूत रहे व्लादिमीर चामफ़ ने रेडियो रूस को बताया-
दुर्भाग्य से लीबिया में घटनाक्रम बहुत ही नकारात्मक रहा है। बानी वालिद में घटी हाल की घटनाओं सहित पूरे देश में पिछले कुछ समय से हो रही घटनाएँ आशाजनक बिलकुल नहीं हैं। आजकल कुछ लोगों द्वारा इस स्थिति को अक्सर सामान्य रूप में देखने-दिखाने की कोशिश की जा रही है। यह कहा जा रहा है कि कुछ पूर्व विद्रोहियों और गद्दाफ़ी के समर्थकों के बीच झड़पें मात्र ही होती हैं। लेकिन बात इतनी ही नहीं हैं। स्थिति इससे कहीं अधिक जटिल है। देश के कई क़बीलों के बीच घमसान का संघर्ष जारी है। किसी समय इस देश में राष्ट्रीय एकजुटता बनाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन गद्दाफ़ी को अपदस्त किए जाने के बाद यह देश टुकड़े-टुकड़े होने के कगार पर पहुँच चुका है। नई संसद के चुनाव के परिणामों ने दर्शाया है कि इस देश में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच नहीं बल्कि विभिन्न क़बीलों के बीच संघर्ष चल रहा है। और बेशक, उन जनजातियों के प्रतिनिधियों ने ही ये संसदीय चुनाव जीते हैं जो बहुमत में हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता है कि सब कुछ सामान्य ही हो रहा है। लोगों का जीवन वहाँ पहले से कहीं दूभर हो गया है। लोगों का जीना बहुत ही जटिल बन गया है। पहले ऐसा नहीं था। लोगों की स्मृति में अभी भी पुरानी यादें ताज़ा हैं। आजकल ट्यूनीशिया में लीबिया के छह लाख से दस लाख शरणार्थी हैं, मिस्र के शहरों काहिरा और अलेक्ज़ाद्रिया में पाँच लाख लीबियाई शरणार्थी मौजूद हैं। कुल मिलाकर 15 लाख शरणार्थी हैं। यदि ये आंकड़े सही हैं तो 60 लाख की आबादी वाले देश लीबिया से इतने लोगों का पलायन कर जाना एक भयानक त्रासदी नहीं है तो और क्या है!
इस देश में स्थिति अति नाटकीय बनी हुई है, अलगाववादी भावनाएं बढ़ती जा रही हैं। हाल ही में इस देश की सरकार के गठन के समय यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई थी। इसने दिखा दिया था कि इस देश में कोई प्रभावी केंद्रीय सरकार नहीं है। इस सब के बाबजूद व्लादिमीर चामफ़ के अनुसार, लीबिया जैसे देश का पतन होने की बात करना अभी भी समय से पहले की बात है। इस संबंध में रूसी राजनयिक ने कहा-
मुझे ऐसा नहीं लगता है कि यह देश अब ख़त्म हो चुका है। लेकिन इस देश को एक बहुत ही कठिन दौर से गुज़रना होगा, इस देश के लोगों को एक दूसरे की बात सुननी होगी, एक दूसरे की बात माननी होगी, एक दूसरे की बात सहनी होगी, आपसी सहमति हासल करनी होगी। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इस इस देश के तीन नहीं, कई टुकड़े होंगे। लेकिन मुझे आशा है कि ऐसा नहीं होगा। हम इराक का उदाहरण ले सकते हैं। इस देश में भी पिछले 7-8वर्षों से लीबिया जैसी ही स्थिति बनी हुई है। फिर भी यह देश एकजुट बना हुआ है। इसके टुकड़-टुकड़े नहीं हुए हैं। संभव है कि भविष्य में इराक भी और लीबिया भी एक संघीय या महासंघीय देश बन जाएंगे। लेकिन इस बात का फैसला इन देशों के लोगों को ही करना होगा। अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लीबिया के विभिन्न क़बीले एक दूसरे से लड़ें नहीं बल्कि देश के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को सुलझाने के लिए एक दूसरे से सहयोग करें।
लीबिया के पड़ोसी देशों- ट्यूनीशिया और मिस्र के लोगों को भी लीबिया जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस सिलसिले में व्लादिमीर चामफ़ ने कहा-
जिन देशों में क्रांतियों की प्रक्रियाएं सम्पन्न हो गई मालूम पड़ती हैं, वहाँ भी स्थिति सुखद नहीं है। इतिहास हमें सिखाता है कि क्रांतियों का विकास अच्छी तरह से परिभाषित और ठोस नियमों के अनुसार ही होता है। ऐसे नियमों को हमें बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। इन्हें समझने के लिए हमें फ्रांसीसी क्रांति के इतिहास को और रूस में हुई दो क्रांतियों के इतिहास को बहुत ध्यान से पढ़ना चाहिए।
व्लादिमीर चामफ़ ने यह भी कहाः यकीनन उन लोगों की बात सही है जो कहते हैं कि लीबिया के इतिहास में एक नया दौर शुरू हो चुका है। लेकिन कोई भी पूरे विश्वास से नहीं कह सकता है कि यह दौर कैसा होगा। बेशक, इस दौर की शुरूआत उत्साहजनक नहीं है!

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