मित्रों,हो सकता है और हो सकता है क्या हो भी रहा है कि नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य के दर्जें के मुद्दे पर गंदी राजनीति कर रहे हैं। जो मुद्दा साढ़े 10 करोड़ लोगों का है उसे उन्होंने सिर्फ अपना और अपनी पार्टी का मुद्दा बनाने का महापाप किया है। यहाँ तक कि उन्होंने बिहार के गौरवपूर्ण विकास की महागाथा लिखने में सहयोगी रहे दल भाजपा को भी इस मुद्दे से अलग-थलग किया हुआ है। क्या इस तरह की कुत्सित राजनीति करने से मिलेगा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा? कदापि नहीं। वह तो तभी मिलेगा जब एक साथ पक्ष-विपक्ष के सारे बिहारी उठ खड़े होंगे और एक साथ दिल्ली में डेरा डाल देंगे,संसद को जाम कर देंगे।
मित्रों,क्या आपने कभी दो मिनट के लिए सोंचा है कि अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए को क्या-क्या हो सकता है? तब देश-विदेश के सारे उद्योगपतियों का गन्तव्य बिहार हो जाएगा। जब सिर्फ आलू और बालू (लालू अब अतीत बन चुके हैं) के बल पर बिहार ने 15-16% का विकास दर प्राप्त करके दिखाया है तो अगर उसे विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो संभव है कि वह 50 या 100% की विकास दर भी प्राप्त कर ले और पूरी दुनिया के लिए संपूर्ण विनाश के बाद विकास का एक अद्वितीय उदाहरण बन जाए। इस मामले में केंद्र सरकार का हठ बेवजह है। क्या बिहार की जीडीपी के और तेज बढ़ने से भारत की जीडीपी भी तेज गति से नहीं बढ़ेगी? क्या बिहार भारत से बाहर है? भारत की जीडीपी को फिर से दहाईं अंकों में लाने का रास्ता आँखों के सामने है फिर भी केंद्र सरकार वैश्विक मंदी,राजस्व और राजकोषीय घाटे का रोना रो रही है और जनता पर बोझ-पर-बोझ डाले जा रही है। बल्कि उसको तो बिहार को एक अवसर की तरह लेना चाहिए और लपक लेना चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो विकास और अर्थव्यवस्था संबंधी उसकी सारी चिंताएँ व्यर्थ हैं,ढोंग और स्वांग हैं। वह नहीं चाहती कि भारत मंदी की अंधेरी सुरंग बाहर आए और पूरी दुनिया का आर्थिक महाशक्ति बनकर नेतृत्व करे। बल्कि यह तो वही बात हो गई कि बुढ़ा रही दुल्हन के दरवाजे पर बाँका जवान बारात लिए खड़ा हो और दुल्हन कहती हो कि अभी तो मुझे नींद आ रही है। अगर ऐसा है तो सोने दीजिए भारतीय अर्थव्यवस्था को और गोंता लगाने दीजिए जीडीपी की विकास दर को। मैं कहता हूँ कि सिर्फ एक बार आप बिहार को मौका तो दीजिए और फिर भूल जाईए जीडीपी की चिंता को और पीछे वर्णित दुल्हन की तरह पैरों में शुद्ध सरसों का ईंजन छाप तेल लगाकर सो जाईए। केंद्र की नकारा सरकार को यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि बिहार ऐसे ही विशेष राज्य का दर्जा नहीं मांग रहा है अपितु उसने प्रकाश झा की फिल्म अपहरण के अजय देवगन की तरह पहले हुनर दिखाया है,खुद को विशेष सिद्ध किया है तब जाकर विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो इसका यह भी मतलब होगा कि उसको गोबर के उपले में घी सुखाने में मजा आता है अर्थात् आप भोंदू विद्यार्थी को तो भरपूर छात्रवृत्ति दे रहे हैं और जो यूनिवर्सिटी टॉपर है उसको गालियाँ देकर हतोत्साहित कर रहे हैं।
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