ब्लॉग लिखे हुए बहुत समय हो गया है । फिर से लिखना क्रम टूट जाने के कारण थोडा ज्यादा कठिन हो जाता है । इस बीच देख रहा हूँ कि मेरे नायक का व्यक्तित्व मन्दप्रभ हो गया है । जिस पर कभी मुझे गुरूर हुआ करता था वह अब कुछ दिनों से मेरे आदर्श महा नायक से पृथक हो चुके उसके अर्जुन के हिट एंड रन policy या bombard on headquarter सिद्धांत की आतिशी चमक के आगे हतप्रभ हो चुका है। अब ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जहां पर कभी कभी मुझे खुद चिंता होने लगी है कि आखिर आगे क्या होगा ? मुझे तो उत्सुकता होनी चाहिए थी लेकिन जितनी उत्सुकता होती है उससे ज्यादा चिंता सताने लगती है । मेरे आदर्श महा नायक ने अपने अर्जुन से अंगूठा मांग कर उसे एकलव्य की श्रेणी में ला खडा किया है और अब उस अर्जुन को अपने इस द्रोणाचार्य की प्रतिमा को हृदय में रख कर ही अपने आगामी सफ़र को जारी रखना होगा । उसे इस बात की भी इजाजत नहीं मिली है कि वह अपने इस गुरु की प्रतिमा को कही ऑफिस में लगा सके । दर्द उसे भी होगा लेकिन राजनीति दर्द सहना सिखा देती है। अब उसे चुनाव लड़ना है और मुद्दों को गर्म रखना है । उसने एक एक करके कई हमले किये और वह कुछ हद तक सफल भी हुआ है । लेकिन मन अशांत सा है । क्या राजनीति के इस कुचक्र में वह सफल हो भी पाएगा ? ज्यादा कड़े नियम कई बार घातक साबित हो जाते हैं । क्या मात्र पच्चीस हज़ार रुपये तनख्वाह से कोई विधायक अपने घर का खर्च चला पायेगा ? एक प्राथमिक विद्यालय का अध्यापक भी आज पच्चीस हज़ार रुपये ले रहा है । आप गाडी सुरक्षा गार्ड बंगला आदि भी नहीं लेंगे । ये क्या ? उत्तराखंड के खंडूरी में क्या कमी थी ? उनकी इमानदारी का डंका पक्ष विपक्ष में सब जगह बजा और इस अर्जुन से एकलव्य बन चुके राजनीति के कीचड़ में अरविन्द की तरह खिले केसरी के भी पसंदीदा राजनीतिक जनों में उनकी गिनती थी फिर क्या हुआ ? वह मेरा भी पसंदीदा है । मैं भी चाहता हूँ कि उसके इस राजनीतिक अभियान का हिस्सा बनूँ लेकिन मैं सोच रहा हूँ कि मेरी तो तनख्वाह कम हो जायेगी । घर में लोग सोचने लगे हैं कि इतनी तनख्वाह में क्या होगा ? बच्चों की फीस , घर का तमाम खर्च कैसे चलेगा ? हर किसी की पत्नी तो आई आर एस नहीं है , सर्विस में नहीं है तो फिर , ना बाबा ना । लेकिन यह मेरे लिए दुखद है । उसे तनख्वाह तो पूरी लेनी ही चाहिए ? यह सही है कि इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती लेकिन समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो सिर्फ इसलिए चोरी करता है क्योंकि उसके खर्च सामान्य खर्च ही पूरे नहीं होते । छः सौ रुपये प्रतिमाह पाने वाला एक ग्रामप्रधान सिर्फ इस पैसे से क्या अपने घर का खर्च चला पायेगा ? तो फिर राजनीति की इस प्राथमिक पाठशाला में ही चोरी करने की उसकी आदत इसी कम तनख्वाह के कारण पनप जाती है । वह ग्राम विकास का ही हिस्सा खाकर अपना खर्च चलाता है । तो राजनीति के कीचड़ को साफ़ करने निकला यह अरविन्द क्या अपने छत्रपों को इस सामान्य भूख से बचा भी पायेगा ? फिर भी उम्मीद है कि दिल्ली विधानसभा के चुनावों में यदि इसके कुछ भी विधायक जीत दर्ज कर पाते हैं तो शायद वे बाकी विधायकों का जीना आसान नहीं रहने देंगे । यदि उन्होंने थोडा भी सिद्धांत वादी क्रियात्मक दिशा में कार्य किया तो यह शायद बाकी विधायकों के लिए एक चुनौती की तरह होगा । खैर , खुदा खैर करे । मेरी क्या , देश के पचास प्रतिशत से ज्यादा लोगों की इच्छा मोदी को पी एम् बनता देखने की है । यह मैं नहीं कह रहा बल्कि ज्यादातर सर्वे बता रहे हैं तो फिर राजनीति के अरविन्द का क्या होगा ? क्या मोदी का यह तिलिस्म हर किसी पर भारी पड़ने वाला हैं ? यह एक ऐसी चुनौती है जिससे निपटना शायद बहुत मुश्किल साबित होगा इस अरविन्द के लिए । देखते हैं उसकी साधना क्या रंग लाती है ?
20.11.12
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