कुलदीप कुमार विश्वकर्मा
गर्व से गौरान्वित करने वाले पौराणिक संस्कृति की धरोहरों से सुसज्जित इस हिन्दुस्तान की अपनी एक अलग छवि है पुरे विश्व में जो पुरे विश्व को बरबस ही अपनी संस्कृति की ओर आकर्षित कर खुद की तरफ बुलाती है वही दूसरी ओर यहाँ के चारों स्तंभों के कमजोर और जर्जर हो चुके न्याय प्रणाली और उस बची कूची जीवित और न्याय संगत गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अपने कर्तव्यों को बखूबी ईमानदारी से निभाने वाले लोगों को साम, दाम, दंड और भेद से कमजोर कर उन्हें उनके नेक कार्यों के लिए रोड़ा खड़ा करने वाले दूषित मिलावटी खून वालों के वजह से जो कानून व्यवस्था भारत में बेपटरी हुई है उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के साख जिस तरह से धूमिल हो रही है उस ओर लोग अपने निज स्वार्थ के लिए ध्यान नहीं दे रहे है और भ्रष्टाचार और अपराध जैसे अति संवेदनशील विषयो पर कोई भी जमीनी स्तर पर गंभीर नहीं है चाहे वो भारत के प्रधानमंत्री जी हो या किसी भी प्रदेश के शासन प्रशासन में बैठे लोग या फिर सिस्टम में अच्छी घुसपैठ रखने वाले लोग।
सब के सब देशहित और जनहित को दरकिनार करते हुए निजस्वार्थ के लिए देश और संस्कृति के साथ जिस तरह खिलवाड़ करते हुए उसका बलात्कार कर रहे है, वो दिन दूर नहीं होगा जब खुले आम उन्ही के माँ बहनो की इज्जत आबरू सरे आम बीच चौराहों पर लूटी जायेगी और वही सक्षम और अच्छी घुसपैठ रखने वाले लोग कुछ नहीं कर पाएंगे और खुद को उस बुरे दिन को लाने के लिए कोसेंगे पर उस समय यह कहावत याद कर शायद वो रोये की अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।
सम्पूर्ण हिंदुस्तान फैले भ्रष्टाचार और अपराध के मकड़जाल की सबसे जहरीली जानलेवा समझदार मकड़ीयों ने विभिन्न स्तिथि परिस्थितियों के हिसाब से अपने प्रजातियों को बहुत ही व्यापक तौर पर विकसित कर लिया है। भारत में व्यापक रूप से फैले भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों का जो तानाबाना बना होता है वो कहीं न कही से भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, भ्रष्ट सरकारी अथवा अर्धसरकारी कर्मचारी तथा भ्रष्ट प्रणाली के अंतर्गत संचालित होता है और मकड़जाल बुनने वाली मकड़ी के ऊपर ही उसके जाल में फंसने वाले शिकार की जिंदगी या मौत का समय निर्धारित होता है। वह अपने भूख के हिसाब से उस फंस चुके शिकार के मारने की तिथि निर्धारित करती है जिससे वह जिन्दा रह सके।
मकड़ियों की विभिन्न प्रजातियों का क्षेत्र वहां के पारिस्थितिकी तंत्र के अनुसार अलग अलग होता है जैसे: मोहल्ला/क़स्बा, नगर, गांव, शहर, जिला, मंडल, राज्य तथा इन सबको मिलाने से बनने वाला हिंदुस्तान। अब क्षेत्रानुसार मकड़ियों की प्रजाति को बताना भी आवश्यक होगा जिनके जाल में फंसे शिकार का मरना लगभग तय होता है परन्तु समय सीमा मकड़ी के ऊपर निर्धारित होती है और उनको कुछ इस तरह से पुकारा जाता है, मोहल्ले का सभासद, नगर पंचायत अध्यक्ष, उस नगर/क्षेत्र का सीओ/एसएचओ/एसआई/चौकी इंचार्ज या अन्य जिम्मेदार अधिकारी व जनप्रतिनिधि, गांव का प्रधान, शहर का मेयर/ पार्षद/ विधायक/ सांसद/ जिला पंचायत अध्यक्ष/ जिला पंचायत सदस्य/ जिलाधिकारी/ पुलिस अधीक्षक/ पत्रकार/ समाजसेवी के नाम पर दलाल व कुकर्मी लोग तथा अन्य सरकारी/ अर्द्धसरकारी विभाग के मुखिया/ सदस्य/ कर्मचारीगण, प्रदेश के मुख्यमंत्री/ राज्यपाल/ आयोग/ सचिव, अलग-अलग विभाग के प्रादेशिक अधिकारी एवं नेता तथा अंत में विधायको, सांसदों के द्वारा राज्य तथा केंद्र में बनने वाली सरकार के मंत्री, उस मत्रिमंडल में मुखिया प्रधामन्त्री, केंद्र के पुरे हिंदुस्तान के सभी राज्यों के लिए बनायीं जाने वाली योजनाओं की मॉनिटरिंग करने वाले समूह/ विभागों के अधिकारीगण और सबसे आखिर में उन जनप्रतिनिधियो को चुनने वाले हम आम जनता जिससे ये पूरा समाज बना है। निर्विवाद रूप से उन सभी में अपवाद स्वरुप ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ लोग हर जगह मौजूद है पर उनके कार्यो से खुश होकर उनलोगों को जो इनाम दिया जाता है वो अमिताभ ठाकुर, नूतन ठाकुर, दुर्गा शक्ति नागपाल के रूप में सबके सामने है और फिर इन्ही लोगो के समर्थन में नेताओं और अपने निजस्वार्थं के लिए जानवरों की तरह अपने मालिक के डंडे के आगे नाच कर हो हल्ला तथा हिंसा भड़काने वाली भीड़ न जाने कहाँ अदृश्य हो जाती है। और उन्ही भीड़ में रहने वाले वही जानवर पान की दूकान, चौराहों, सोशल नेटवर्किंग साईट पर या पेड न्यूज़ के जरिये अपनी वाहवाही करवाने में जी जान से जुटी नजर आती है।
यदि छोटे क्षेत्रों से बड़े बढ़ते हुए क्षेत्रों के क्रम में सभी जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारीगण अपने नैतिक जिम्मेदारियों, कर्तव्यों और कर्मो को ध्यान में रखते हुए, भगवान द्वारा दिए गए इंसानी रूप में जन्म के महत्व और उसके उद्देश्य को समझते हुए देश और देशवासियों के हित में कार्य करेंगे तो हमारा हिन्दुस्तान सिर्फ कुछ ही समय में पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार मुक्त और अपराधमुक्त हो जायेगा और संस्कृति के वजह से बनी पहचान से हटकर दुनिया एक नए हिंदुस्तान से आकर्षित हो रूबरू होना चाहेगी और वो हमसे सीखने आएंगे की ऐसा हिन्दुस्तानियो के पास क्या है जो वो किसी भी असंभव चीज को संभव कर लेते है, पर उसके लिए हमारी अंतरात्मा, मानवता और संवेदना का जिन्दा रहना भी बहुत जरुरी है क्योकिं लाशों के रूप में जिन्दा मुर्दे नुकसान और हानि पहुंचाने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकते है। बदलाव लाने के लिए खुद को जिन्दा करना होगा और खुद को जिन्दा करने के लिए खुद को जगाना होगा और अपनी संस्कृति और इतिहास से सीख लेते हुए खुद के परिवार को भयमुक्त और संस्कारित वातावरण देने के लिए संकल्प करना होगा, तभी जाकर हमारा और हमसे देश का विकास संभव होगा।
1.9.15
भ्रष्टाचार और अपराध के मकड़जाल की उपज कौन।
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