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20.9.15

भागीरथ प्रयास एक बार फिर जन अभियान का शुभारम्भ : गंगा को बचने के लिए उसे बाधों से मुक्त करना होगा.



निर्मल पुकार! अविरल हो गंगधार

19 सितम्बर 2015 वाराणसी गंगा आह्वान, साझा संस्कृति मंच एवं गंगा रक्षा आन्दोलन द्वारा आयोजित गंगा रक्षा हेतु राष्ट्रीय जन अभियान‘भागीरथ प्रयास’ गोष्ठी का आरम्भ आज दुर्गाकुण्ड स्थित धर्मसंघ के सभागार में गंगा पूजन तथा स्वामी निगमानंद सरस्वती व बाबा नागनाथ के चित्रोंपर माल्यार्पण के साथ आरम्भ हुआ। प्रथम सत्र में काशी विद्वत सभा के प्रवक्ता पण्डित कमलाकांत त्रिपाठी ने कहा कि नदी तभी गंगा है जब वहहिमालय से गंगा सागर तक अविरल रहती है।  गंगा आमजन की है। उससे इनको वंचित करना अन्याय व अधर्म है। श्री काशी पण्डित सभा की ओरसे पण्डित महेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि बांधों से गंगा नदी का पावन स्वरूप नष्ट हो रहा है। यह गंगा जल को गंदा जल बना देता है।



 सांग्यवेदविद्यालय के पण्डित त्रिलोचन शास्त्री ने कहा कि बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए सरकार को मलजल शोधन व्यवस्था को वैज्ञानिक तरीके सेउन्नत करना चाहिए जिससे गंगा को बचाये रखना चाहिए। इसके पश्चात मुख्य अतिथि इलहाबाद के पूर्व सांसद रेवती रमण सिंह ने कहा कि काशीपवित्र भूमि है। जहां आकर गंगा भी उत्तरवाहिनी हो जाती है। गंगा जितना दुनिया में किसी और नदी का महत्व नहीं है। गंगा के विलुप्त होने केकगार पर होना कोई दैवीय आपदा नहीं है। इसका कारण हम मनुष्य ही हैं। गंगा हमारी पहचान व संस्कृति है। यह लोगों के जनजीवन से जुड़ा है।

सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि गंगा पर मंत्रालय बनाकर इसको निर्मल नहीं किया जा सकता। जब धारा ही नहीं रहेगी तो कौन से निर्मलगंगा की बात कही जा रही हैं। इसके लिए जनआंदोलन की आवश्यकता है। टिहरी व अन्य लगभग 70 बांधों के निर्माण को अविलम्ब रोककर गंगा कोप्रवाहमान करना चाहिए। गंगा की धारा की खासियत है कि उसका जल 40 किलो मीटर पर परिमार्जित हो स्वतः शुद्ध हो जाता है। इसके साथ हीउन्होंने आमजन से जागरूक भागीदारी द्वारा गंगा प्रदूषण को रोके जाने की अपील की ताकि हम आने वाली पीढ़ी को निर्मल गंगा नहीं अविरल गंगाप्रदान कर सकें। शांतिलाल जैन ने गंगा के पौराणिक महत्व को बताते हुए प्रधानमंत्री से गंगा के अविरलता को पुनः स्थापित करने का निवेदन किया।

    द्वितीय सत्र में गंगा की ‘व्यथा कथा’ पर बोलते हुए के0 चन्द्रमौली ने गंगा के आध्यात्मिक महत्व के साथ ही गंगा के किनारे बसे लोगों के गीत,लोकगीत, त्यौहार व जनजीवन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि गंगा में अविरलता आनी ही चाहिए, गंगा को बचाकर हम भारत की सभ्यता वसंस्कृति को बचा सकते हैं। इसके पश्चात अपूर्व नारायण तिवारी ने गंगा प्रदूषण के कारण विलुप्त हो गये जीवों के बारे में बताया। गंगा क्षेत्र केभौगोलिक विस्तार की चर्चा की तथा गंगा के सांस्कृतिक महत्व को बताकर इसके अविरलता को रोकने पर चिंता जताई। त्रिभुवन नारायण सिन्हा नेकहा कि सरकार को नैतिकता के आधार पर संतुलित विकास करना चाहिए। जिससे की प्रकृति का भी नुकसान न हो। अविरलता प्रकृति की देन है, औरहमें गंगा के साथ अविरलता चाहिए। उत्तराखण्ड के शिवानन्द, सुशीला भण्डारी, सावित्री देवी, बसन्ती देवी ने भी गंगा के अविरलता को लेकर अपनेविचार व्यक्त किये।

गोष्ठी में जितेन्द्र नाथ ने ‘किनका से कहे महारानी......’ व ‘केकरा के का कही, देखि देखि दुःख सही। मईया के पनिया, बचा ला मोरे बिरना।।’तथा उत्तराखण्ड से आयी सुशीला भण्डारी ने गंगा पर लोकगीत प्रस्तुत किया। इस प्रकार वक्ताओं ने गंगा की संस्कृति व इसके हिमालयी पर्यावरण केसाथ इसके उद्गम स्थल से ही चल रहे निर्मम खेलवाड़ की विभीषिका व्यक्त की और जनमानस से यह अपील कि अतिशीघ्र प्रधानमंत्री जी को इसकीसंवेदनशीलता से अवगत कराकर गंगा को हिमालय से ही अविरल एवं निर्मल स्वरूप में लाना गंगा रक्षा हेतु प्राथमिक कार्यवाही होनी चाहिए। इस अवसर पर वल्लभाचार्य पाण्डेय, कपिन्द्र तिवारी, डॉ त्रिलोचन शास्त्री , मल्लिका भनोट, डॉ आनंद प्रकाश तिवारी , मीता ,रिंकू सहगल, धनंजय त्रिपाठी, विनय सिंह, दीनदयाल, हेमंत ध्यानी ,रामानंद तिवारी , डॉ इन्दु पाण्डेय , चिंतामणि सेठ ,प्रेम सोनकर, विरेन्द्र निषाद, प्रदीप सिंह, सूरज, गिरिशन्त , पारमिता, सतीश सिंह ,  जाग्रति राही, अपूर्व तिवारी ,संजय शुक्ल आदि लोग उपस्थित थे।

भवदीय:
आयोजक मंडल
सम्पर्क न.
कपीन्द्र तिवारी: 9305498331
डा. आनंद प्रकाश: 9839058528
वल्लभाचार्य पाण्डेय : 9415256848
भागीरथ प्रयास....एक बार फिर
(19-20 सितम्बर धर्म संघ,  दुर्गाकुंड वाराणसी)

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