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3.12.11

आख़री रस्म । (गीत)





आख़री रस्म । (गीत)



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मेरे    जनाज़े   को   ज़रा,  हाथ   तो   लगा   दीजिए ।

आख़री    रस्म   है   बाक़ी,  साथ  तो  निभा  दीजिए ।


अंतरा-१.


अंदाज़   निराले   हैं  आप   के, रोने  के  आज  भी..!!

शक्ल  छुपाकर ताल में, न आज  तो हँसा कीजिए..!!

आख़री   रस्म    है  बाक़ी, साथ  तो  निभा  दीजिए ।

( ताल = हथेली )


अंतरा-२.


दिल  से  निकाला  आप  ने , रहा  न  कोई  घर  मेरा ।

अब नया  घर, किसी और का, आप तो बसा  लीजिए ।

आख़री    रस्म    है   बाक़ी,   साथ तो निभा  दीजिए ।


अंतरा-३.


लेते  रहे  थे  इंतहा, तुम अवम दम  तक, रिश्तों  का ।

बेक़रारी   चरम   पर   है,  लाश  को  बिदा  कीजिए ।

आख़री   रस्म   है  बाक़ी, साथ  तो   निभा  दीजिए ।

( अवम = अंतिम;  चरम = पराकाष्ठा


अंतरा-४.


बेसुध नहीं हूँ  इतना  भी  कि, ये  न जान पाऊं  मैं..!!

रोना-धोना  क्या,कहीं  भी, मुझ  को  दबा  दीजिए..!!

आख़री   रस्म   है   बाक़ी, साथ  तो  निभा  दीजिए ।


मार्कण्ड  दवे । दिनांक-०३-१२-२०११.

1 comment:

Shikha Kaushik said...

bahut khoob .badhai